भोपाल।
स्वजातीय संत श्री श्री 1008 श्री महामंडलेश्वर स्वामी संतोषानंद देव महाराज को भोपाल स्थित एलएनसीटी यूनीवर्सिटी द्वारा पीएचडी (डॉक्टरेट) की मानद उपाधि प्रदान की गई है। मध्य प्रदेश शासन के शिक्षा मंत्री मोहन यादव एवं एलएनसीटी के चेयरमैन श्री जयनारायण चौकसे ने एक भव्य समारोह में संतश्री को यह उपाधि प्रदान की। इस अवसर पर संतश्री ने शिक्षाविद श्री जयनारायण चौकसे का आभार व्यक्त किया और अपने संबोधन में भारतीय धर्म एवं संस्कृति की महानता के विभिन्न पहलु उजागर किए। श्री जयनारायण चौकसे ने कहा कि श्री संतोषानंद देवजी जैसे महान संत संपूर्ण कलचुरी समाज का गौरव हैं, और उन्हें पीएचडी की मानद उपाधि प्रदान कर यूनीवर्सिटी ने स्वयं को गौरवान्वित किया है।
अवधूत मंडल आश्रम के अध्यक्ष स्वामी संतोषानंद देवजी ने अपना संपूर्ण जीवन जन-जन में धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में समर्पित कर दिया है। महापुराणों के ज्ञाता स्वामी सत्यदेव के परमशिष्य स्वामी संतोषानंद देवजी स्वयं भी वेद-पुराणों के प्रकांड विद्वान हैं। स्वामी संतोषानंद देवजी का जन्म बाबा काशी विश्वनाथ की पावन भूमि वाराणसी के उच्च कुलीन कलचुरी परिवार में हुआ। माताजी श्रीमती चंद्रदेवी शांत स्वभाव की महिला थीं, पिताजी ईश्वरचंद्रजी प्रतिष्ठित व्यवसायी थे। उनका लालन-पालन बड़ी सहानुभूति के साथ हुआ। बाल्यावस्था में ही वह पढ़ाई-लिखाई के लिए कलकत्ता चले गए जहां उन्हें गुरूजी सत्यदेव महाराज का पावन सानिध्य प्राप्त हुआ।
गुरुजी के सानिध्य में धर्म और संस्कृति के प्रति उनमें विशेष रुझान जागृत हुआ। उन्होंने वेद-पुराणों का गहन अध्ययन किया और 1993 में बसंत पंचमी के दिन गुरुदेव स्वामी सत्यदेवजी महाराज से संन्यास दीक्षा ग्रहण की और स्वामी संतोषानंद देवजी के नाम से अलंकृत हुए। स्वामी संतोषानंद देवजी ने इसके बाद स्वयं को धर्म एवं संस्कृति के प्रचार-प्रसार में समर्पित कर दिया। उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की साइकिल यात्रा की। भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन किएष कैलाश पर्वत, मानसरोवर, अमरनाथ, अमरकंटक आदि धार्मिक स्थलों पर तपस्या की और फिर अपने गुरुस्थान अवधूत मंडल आश्रम को अपनी तपोस्थली बनाया।
स्वामी संतोषानंद देवजी महाराज के बारे में कहा जाता है कि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर हनुमानजी ने स्वयं स्वप्न में उन्हें दर्शन दिए, जिसके बाद स्वामीजी ने श्री बद्रीनाथ में हनुमानजी की उपासना की और कई वर्षों तक अन्न ग्रहण नहीं किया। अनेक दुर्गम स्थानों पर रहकर हनुमानजी की तपस्या की जिसके बाद वह हनुमानजी के परमभक्त के रूप में प्रतिष्ठापित हुए। उनके बारे में माना जाता है कि स्वामीजी की वाणी हनुमानजी द्वारा सिद्ध है। वर्ष 2004 की 23 मई को स्वामी सतोषानंद देवजी के गुरुजी स्वामी सत्यदेवजी ब्रह्मलीन हो गए। अनवरत धर्मनिष्ट रहकर ‘सर्वभूत हितेरतः’ को सार्थक करते हुए अनेक यज्ञ-अनुष्ठानों का परायण करने वाले स्वामी संतोषानंद देवजी महाराज को उनके गुरुदेव का उत्तराधिकारी माना गया और उन्होंने अवधूत मंडल आश्रम संस्था के श्रीमहंत एवं अध्यक्ष का कार्यभार ग्रहण किया। वर्ष 2007 में प्रयागराज महाकुंभ में छह जनवरी को त्रिवेणी संगम पर उदासीन बड़ा अखाड़ा द्वारा उन्हें महामंडलेश्वर के पद पर अभिशक्त किया गया।
सवामी संतोषानंद देवजी महाराज के नेतृत्व और मार्गदर्शन में स्वामी अवधूत मंडल आश्रम संस्था द्वारा संचालित आश्रमों (गोपालधाम आश्रम जस्सा राम रोड हरिद्वार, अवधूत मंडल आश्रम केसरी बाग अमृतसर, अवधूत मंडल आश्रम उजेली उत्तरकाशी) को उन्नति पथ पर अग्रसर हैं। इन आश्रमों में दीन-दुखियों के लिए अस्पताल, संस्कृत शिक्षा, छात्रावास, गौशाला, संतसेवा, संतनिवास, अतिथि सत्कार आदि की व्यवस्थाओं में निरंतर विस्तार हो रहा है। अब बद्रीनाथ, केदारनाथ, अलवर, गुजरात आदि स्थानों पर आश्रमों के नवनिर्माण का संकल्प उन्होंने लिया है।
बता दें कि अवधूत मंडल आश्रम की स्थापना 13 अप्रैल, 1830 में हुई थी। इसकी स्थापना ब्रह्मलीन बाबा सरयूदासजी ने की थी और उनके उत्तराधिकारियों बाबा हीरादास जी, गोपालदेव जी, चेतनदेव जी, रामेश्वरदेव जी, महेश्वरदेव जी और स्वामी सत्यदेव जी ने उत्तरोत्तर इसकी प्रतिष्ठा में अभिवृद्धि की। अब स्वामी संतोषानंद देवजी महाराज के कुशल नेतृत्व में अवधूत मंडल आश्रम भारतीय धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में अपना अमूल्य योगदान दे रहा है।
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