यह सच है कि मंच, माला, माइक की महत्वकांक्षा पूरी करने के लिए अखिल भारतीय संगठन बनाकर और उसके स्वयंभू सर्वेसर्वा बनकर जीवन सार्थक करने की मनोकामना बहुत से लोगों में होती है लेकिन यह समाज के एकीकरण में बाधक होती है और मजे की बात यह है कि यही तथाकथित समाजसेवी मंचों और मीडिया से समाज के सामने एकीकरण की बात करते हैं। समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर अपने फोटो के साथ प्रचरित कर मन ही मन गुब्बारे बने रहते हैं। वर्ष 2025 फिर एक बार इस तरह की घटनाओं का साक्षी बनने जा रहा है।
मीडिया में महान बने रहनेवाले ऐसे लोगों का देशभर के गांव-देहात के समाज के लोगों से कितना जुड़ाव और उनकी समस्याओं की कितनी जानकारी है और उसके लिए उनके पास क्या कार्यक्रम है यह शोध का विषय है लेकिन संगठन का नाम अखिल भारतीय होना जरूरी है और यह भी आवश्यक है कि उसमें अलग-अलग राज्यों के नामधारी, निष्क्रिय लेकिन महत्वकांक्षी लोग हो।
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक लाभ के लिए तो कभी अपने नाम के शिलालेख लिखवाने के लिए ऐसी इच्छा जीवन के उत्तरार्ध में बहुत से लोगों में बलवती हो जाती है और वह उसे पूरा करने में जी-जान से पूरी तरह समर्पित हो जाते हैं लेकिन इसके साथ समाज की उन्नति, प्रगति, विकास और उत्थान के कुछ योजनाएं क्रियान्वित हो, समाज में अंतिम पंक्ति के सदस्यों का भी कुछ भला हो तो ही ऐसे संगठनों की सार्थकता है। अन्यथा कुछ दिनों बाद ही संगठन के अंदर ही आपसी वाद-विवाद और फिर एक नए संगठन को जन्म देने के लिए बीजारोपण का कार्य समाज को धोखा देने से ज्यादा कुछ नहीं है ऐसा मुझे लगता है। इसी कारण बीते कुछ वर्षों में ऐसे कई संगठनों को बनते और उनकी कार्यप्रणाली को देखते हुए मैंने अपनी भावना आपके समक्ष व्यक्त की है।
ॐ स्वस्ति अस्तु।
पवन नयन जायसवाल
साहित्यकार एवं समाजसेवी
संदेश- 94217 88630
अमरावती, विदर्भ, महाराष्ट्र
समाचार
साहित्य/सृजन
क्या समाज को और नए सामाजिक संगठनों की आवश्यकता है?
- by admin
- December 28, 2024
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- 3 weeks ago
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