November 22, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार समाज

लक्ष्मीजी-गणेशजी के साथ भगवान सहस्रबाहु का भी करें पूजन; इन तीन कारणों से दीपावली पर कलचुरी समाज में नई शुरुआत का आह्वान

आगरा।
हम भले ही अलग-अलग वर्गों और उपनामों में बंटे हुए हैं, लेकिन हैं सब कलचुरी…, ‘काल को चूर-चूर करने वाले’ एक महाप्रतापी चक्रवर्ती सम्राट के वंशज। जी हां, हम हैं राजराजेश्वर भगवान श्री सहस्त्रबाहु अर्जुन की संतति…, जिनका जन्मोत्सव हर वर्ष कार्तिक शुक्ल की सप्तमी को मनाया जाता है जो इस वर्ष 8 नवंबर को पड़ रही है। कलचुरी समाज के सभी वर्ग इस बार भी बड़े उत्साह के साथ अपने आराध्य देव का जन्मोत्सव मनाने की तैयारी में जुटे हैं। कहीं एक दिवसीय उत्सव है, तो कहीं साप्ताहिक या पाक्षिक आयोजन भी हो रहे हैं।

हर वर्ष भगवान सहस्रार्जुन अर्जुन के जन्मोत्सव पर होने वाले इन आयोजनों के माध्यम से कलचुरी समाज की एकता के दर्शन होते हैं। इस बार भी देश के उत्तरी छोर से लेकर दक्षिणी सिरे तक और पश्चिम में गुजरात से लेकर सुदूर पूर्वोत्तर राज्यों तक में भगवान सहस्रार्जुन जन्मोत्सव की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। इन सबके बीच एक आह्वान समाज के सभी ग्रुपों में सर्कुलेट हो रहा है जिसमें समाजबंधुओं से इस बार दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश के पूजन में ही भगवान सहस्रबाहु अर्जुन की मूर्ति रखकर पूजा करने का आह्वान किया जा रहा है।

  1. इसके पक्ष में एक बात तो यह कि हम कलचुरी हैं और भगवान सहस्रबाहु हमारे आराध्य देव, हमारे कुलदेवता हैं। अतः दीपावली पर कुलदेवता की भी पूजा होनी चाहिए। हर पूजा में सबसे पहले कुलदेवता का आह्वान होता है।
  2. दूसरी बात यह है कि भगवान सहस्रबाहु को भी धन का देवता माना गया है। श्री यंत्र’ जो लक्ष्मी प्राप्ति की ‘तंत्र-विद्या’ का ‘यंत्र-राज’ है, जिसके द्वारा ललिता व त्रिपुरी सुन्दरी (जो अपने उपासकों को धन, ऐश्वर्य प्रदान करती है) की उपासना की जाती है, उस ‘श्री यंत्र’ में पूर्व की ओर ‘जय राजराजेश्वरयैः नमः’ अंकित है, जो श्री सहस्रार्जुन का ही एक नाम है। इसीलिए दीपावली पर भगवान सहस्रबाहु की पूजा करना फलदायी होगा।
  3. तीसरी बात यह कि भगवान सहस्रबाहु ही हैं जिन्हें प्रथम दीपावली का जनक माना गया है। पौराणिक आख्यान है कि जब श्री सहस्रार्जुन ने युद्ध में रावण को परास्त तक उसे बंदी बनाकर अपने राज दरबार में प्रस्तुत किया, तो विजयोत्सव मनाने के लिए रावण के दस सिरों पर दस दीपक जलवाकर रखवाए। इस तरह दीपकों की एक कतार बनई गईं, यहीं से दीपकों को कतार में रखकर जलाए जाने की परंपरा कालान्तर में दीपावली उत्सव कहलाई। यानी प्रथम दीपावली श्री सहस्रार्जुन के राज दरबार में मनाए जाने की घटना घटी।

प्रयागराज के वरिष्ठ समाजसेवी एडवोकेट टीएन जायसवाल ने दीपावली पर सहस्रबाहु पूजन के आह्वान के साथ यह भी घोषणा की है कि जिस समाजबंधु के पास पूजा में रखने के लिए भगवान सहस्रबाहु की तस्वीर या मूर्ति नहीं है, तो उनसे प्राप्त कर सकते हैं।

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