भोपाल।
समय के साथ हर समाज आगे बढ़ रहा है, सीख रहा है और तरक्की कर रहा है। यहां तक कि इतिहास में सबसे निचली पायदानों पर रहे जातीय समाज भी आज सामाजिक भेदभाव और शोषण की जंजीरों को तोड़ प्रगति के पथगामी हैं। और, इसमें उस समाज की महान विभूतियों, सामाजिक संगठनों व संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
जहां तक कलचुरी समाज (कलार, कलाल, कलवार) की बात है तो लंबे समय तक भेदभाव, शोषण और उपेक्षा का शिकार रहने के बावजूद आज इसकी गिनती उन जागरूक जातीय समाजों में होती है जहां सामाजिक सुधार की प्रक्रिया सबसे पहले शुरू हुई। ‘अखिल भारतवर्षीय हैहय कलचुरी महासभा’ नाम की संस्था दरअसल सामाजिक सुधार, शिक्षा और प्रगति को लेकर कलचुरी समाज की जागृत चेतना की जीती-जागती मिसाल है, जो 2 अगस्त व 3 अगस्त 2025 को भोपाल में अपना 90वां स्थापना दिवस समारोह मनाने जा रही है। कलचुरी समाज की शैक्षिक-जागृति का प्रतीक बन चुकी एलएनसीटी यूनीवर्सिटी के ‘जेके ऑडीटोरियम’ में होने वाले इस समारोह में केंद्रीय मंत्री श्रीपाद नाइक समेत देशभर से कई स्वजातीय मंत्रियों, जनप्रतिनिधि, बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और विभिन्न क्षेत्रों की नामचीन हस्तियों के शिरकत करने की संभावना है।


खास बात यह है कि समारोह ऐसे वक्त में हो रहा है जब जातिगत जनगणना के संदर्भ में कलचुरी समाज के अंदर‘एक पहचान’को लेकर विमर्श तेज हो चला है, और इसमें बड़ी भूमिका‘अखिल भारतवर्षीय हैहय कलचुरी महासभा’के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जयनारायण चौकसे की रही है। ऐसे में माना जा रहा है कि समारोह में‘एक पहचान’को लेकर एक सहमति बन सकती है। और, यदि ऐसा होता है तो इसका मजबूत संदेश पूरे देश में जाएगा। साथ ही, महासभा जैसी ऐतिहासिक संस्था के लिए उसके 90वें स्थापना-दिवस समारोह की यह ब़ड़ी उपलब्धि होगी।


महासभा भले ही अपना 90वां स्थापना दिवस मनाने जा रही है, लेकिन सही मायनों में यह 100 वर्षों से भी अधिक पुरानी संस्था है, और राष्ट्रीय स्तर पर कलचुरी समाज की पहली रजिस्टर्ड संस्था होने का गौरव भी इसे ही हासिल है। हालांकि कलचुरी समाज की कई इससे पुरानी संस्थाएं भी थीं लेकिन उनका कार्यक्षेत्र स्थानीय स्तर पर ही रहा। इस संस्था का रजिस्टर्ड नाम ‘अखिल भारतवर्षीय हैहय कलचुरी महासभा’ है जिसका इतिहास कहीं न कहीं प्रयागराज की सबसे पुरानी सामाजिक संस्था ‘श्री हैहय क्षत्रिय जायसवाल सभा, प्रयाग’ से एक खास नाता है।


‘श्री हैहय क्षत्रिय जायसवाल सभा, प्रयाग’ की स्थापना तत्कालीन समाज सुधारक लाला हनुमान प्रसाद जायसवाल (बहादुरगंज), छोटे लाल महाजन (हिम्मतगंज) द्वारा 1905 में की गई थी। इसका कार्यक्षेत्र प्रयागराज और आसपास के क्षेत्र में जायसवाल समाज के मानव एवं सामाजिक विकास के उद्देश्य से किया गया था। इस संस्था के गठन के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसी ही संस्था के गठन का विचार भी प्रतिपादित हुआ। लेकिन इस दिशा में कोई ठोस पहल होने में 6 वर्ष लग गए।


1911 में प्रयागराज में स्व. श्री कुंदनलाल जायसवाल (दिल्ली) और स्व. श्री फूलचंद्र जायसवाल (नीमच) की अध्यक्षता में हुए हैहय क्षत्रिय समाज के महाधिवेशन में ‘अखिल भारतवर्षीय हैहय क्षत्रिय महासभा’ का गठन हुआ। इसके बाद इस नवगठित संस्था के कई राष्ट्रीय अधिवेशन हुए। इसी क्रम में एक महत्वपूर्ण सम्मेलन 26 से 28 सितंबर, 1926 को जबलपुर में हुआ था जिसकी अध्यक्षता महान इतिहासकार डा. काशीप्रसाद जायसवाल ने की थी, और सचिव थे जाने-माने पुरातत्वविद एवं विद्वान ‘राय बहादुर’ डा. हीरालाल राय। संस्था ने अगले कुछ वर्षों का सफर इन्हीं दो महान विभूतियों के मार्गदर्शन और नेतृत्व में तय किया। 1933 में डा. हीरालाल राय के मार्गदर्शन महासभा के पंजीकरण की रूपरेखा तैयार हुई और 3 अगस्त, 1935 को महासभा का पंजीकरण हुआ। पंजीकरण के बाद डा. महान गणितज्ञ गोरख प्रसाद जायसवाल इसके पहले अध्यक्ष बने थे जो अपने पूर्ववर्ती अध्यक्षों डा. काशीप्रसाद जायसवाल एवं राय बहादुर डा. हीरालाल राय के समान ही अपने क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात थे। डा. गोरख प्रसाद जायसवाल और उनके बाद के अध्यक्षों के कार्यकाल में महासभा राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक उत्थान के अपने उद्देश्य पर समर्पित भाव से काम करती रही।
महासभा के मौजूदा अध्यक्ष श्री जयनारायण चौकसे भी एक जाने-माने शिक्षाविद और समाजसेवी व समाज-सुधारक हैं। उनके नेतृत्व में महासभा राष्ट्रीय स्तर पर ‘एक नाम, एक लोगो, एक ध्वज’ के माध्यम से समाज की एक पहचान स्थापित करने के रोडमैप पर आगे बढ़ रही है जो गत वर्ष 89वें स्थापना दिवस समारोह में तय हुआ था। और, 90वां स्थापना दिवस समारोह इस रोडमैप का ‘पहला पड़ाव’ साबित होगा।


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