आगरा।
दीपावली को यूं तो पंचोत्सव का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है लेकिन, जहां तक ब्रज क्षेत्र की बात है तो यहां ‘अन्नकूट एवं गोवर्धन पूजा’ को पंचोत्सव का सबसे अहम दिन माना जाता है। अन्नकूट एवं गोवर्धन पूजा सामूहिकता की परंपरा से जुड़ी पूजा है। घर-परिवार, कुल और समाज, तीनों स्तरों पर यह पर्व मनाने की ‘अनिवार्य’ परंपरा रही है।
आगरा के शिवहरे समाज का सौभाग्य है कि यहां उसकी दो ऐसी धरोहरें हैं जहां हर वर्ष दीपावली के बाद ‘गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट’ महोत्सव का आयोजन होता है। लिहाजा आगरा के शिवहरे समाज बंधुओं के लिए हमेशा एक अवसर रहता है इस सामाजिक पूजा में भाग लेकर अपने प्रकाशपर्व को पूर्णता प्रदान करने का। इस बार भी आगरा में शिवहरे समाज की दोनों धरोहरों में बुधवार 22 अक्टूबर को अन्नकूट एवं गोवर्धन पूजा की तैयारी हो चुकी है। सदरभट्टी चौराहा स्थित मंदिर श्री दाऊजी महाराज में सायं 6 बजे से गोवर्धन पूजा के बाद सायं 7 बजे अन्नकूट का प्रसाद वितरण किया जाएगा। वहीं लोहामंडी में आलमगंज स्थित राधाकृष्ण मंदिर में शाम 7 बजे गोवर्धून पूजा के पश्चात अन्नूटक प्रसादी का वितरण होगा।


मंदिर श्री दाऊजी महाराज प्रबंध समिति के अध्यक्ष श्री बिजनेश शिवहरे एवं उनकी कार्यकारिणी ने सभी समाजबंधुओं से समारोह में शामिल होकर धर्मलाभ लेने और स्वादिष्ट अन्नकूट ग्रहण करने का अनुरोध किया है। वहीं राधाकृष्ण मंदिर समिति के अध्यक्ष श्री अरविंद गुप्ता समेत संपूर्ण समिति ने समाजबंधुओं को गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट समारोह में भाग लेने का अनुरोध किया है।


दिवाली से पुरानी है गोवर्धन पूजा की परंपरा
जानकारों का मानना है कि ब्रज में दिवाली मनाने की परंपरा बमुश्किल 400 वर्ष पहले से शुरू हुई होगी। इससे पहले गोवर्धन पूजा का त्योहार ही दिवाली की तरह मनाया जाता था। लोग मंदिरों में दीये जलाते थे और गोवर्धन पूजा के बाद अन्नकूट का वितरण हुआ करता था, जो आज भी प्रचलित है। ब्रज में गोवर्धन पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। इससे पहले ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थी। मगर भगवान कृष्ण ने लोगों से कहा कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं प्राप्त होता। वर्षा करना उनका कार्य है और वह सिर्फ अपना कार्य करते हैं जबकि गोवर्धन पर्वत गौ-धन का संवर्धन एवं संरक्षण करता है, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है। इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए। इसकी जानकारी होने इंद्र ने भारी वर्षा कर ब्रजवासियों को डराने का प्रयास किया, लेकिन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर ब्रजवासियों को उनके कोप से बचा लिया। सब ब्रजवासी सात दिन गोवर्धन पर्वत की शरण मे रहे। इन सातों दिनों ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे मिलजुल कर भोजन तैयार किया और सामूहिक रूप से ग्रहण किया। इसके बाद से ही इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का विधान शुरू हो गया है।
गोवर्धन पूजा का उद्देश्य
माना जाता है कि भगवान कृष्ण का इंद्र के मान-मर्दन के पीछे उद्देश्य था कि ब्रजवासी गौ-धन एवं पर्यावरण के महत्व को समझें और एकजुट होकर उनकी रक्षा करें। वहीं अन्नकूट शब्द का अर्थ होता है अन्न का समूह। विभिन्न प्रकार के अन्न को समर्पित और वितरित करने के कारण ही इस उत्सव या पर्व को नाम अन्नकूट पड़ा है। अन्नकूट में अन्न और शाक-पकवान भगवान को अर्पित किये जाते है और वह सर्वसाधारण में वितरण किया जाता है।








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