आगरा।
आज विश्व कैंसर दिवस है। कैंसर जैसी बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने, इसकी पहचान, रोकथाम और उपचार को प्रोत्साहित करने के लिए हर साल 4 फरवरी को ‘विश्व कैंसर दिवस’ मनाया जाता है। इस मौके पर हम एक ऐसी कैंसर पीड़िता के बारे में बताने जा रहे है जिसने अपनी प्रबल इच्छाशक्ति के बल पर इस बीमारी को न सिर्फ हरा दिया, और आज अन्य कैंसर पीड़ितों के लिए प्रेरणा बन गई हैं।
यह हैं श्रीमती आरती शिवहरे उर्फ मीनू। लोहामंडी में आलमगंज फाटक निवासी श्री राजकुमार शिवहरे की पत्नी श्रीमती आरती शिवहरे को अक्टूबर 2022 में छाती के कैंसर (ब्रेस्ट कैंसर) की बीमारी होना का पता चला। वह छाती में उभर आई एक गांठ को लेकर चिकित्सकीय परामर्श के लिए एसएन मेडिकल कालेज के ओपीडी में गई थीं, जहां प्रारंभिक परीक्षण के बाद चिकित्सकों ने उन्हें कैंसर विभाग भेज दिया दिया। ईएनटी विभाग के कर्मचारी श्री सरजू गुप्ता (शिवहरे) ‘काके’ की सहायता से मरीजों की भारी भीड़भाड़ वाले कैंसर विभाग में चिकित्सकों से मिलीं, बायोप्सी में उन्हें ब्रेस्ट कैंसर की पुष्टी हुई।
कैंसर का नाम सुनते ही परिवार में हायतौबा मच गई। पति श्री राजकुमार शिवहरे एक साधारण परचून की दुकान चलाकर किसी तरह परिवार चला पाते हैं, उनके लिए कैंसर ऐसी बीमारी थी जिसका इलाज बहुत अधिक महंगा होता है, कम से कम उनकी क्षमता से तो बाहर की बात थी। घर परिवार के लोग तरह-तरह की सलाहें देने लगे, कोई देशी नुस्खा बताता, तो कोई किसी वैद्यजी का नाम सुझाता, झाड़-फूंक कराने तक की सलाहें मिलीं। आरती जीना चाहती थी, अभी कच्ची गृहस्थी थी। बेटी कशिश इंटरमीडियेट में पढ़ रही थी, बड़ा बेटा आदित्य थर्ड स्टैंडर्ड और छोटा बेटा देव पहली कक्षा में था। बच्चों के लिए जीना होगा, यह सोचकर आरती ने दकियानूसी सलाहों को दरकिनार कर अपना इलाज कराने की ठानी। सरजू गुप्ता ‘काके’ से बात की, काके भाई ने एसएन में ही इलाज कराने की बात कही, ‘यहां बहुत कम पैसों में काम हो सकता है, और रही बात कैंसर विभाग में भारी भीड़-भाड़ और असुविधा की तो मैं हू न…!’
‘मैं हूं न..’ काके भइया के इन शब्दों ने मीनू के इरादों को ताकत दी और अगले ही दिन वह एसएन पहुंच गई। काके भाई ने मीनू का कार्ड बनवाया जिसके माध्यम से उसके सारे टेस्ट एसएन में पूरी तरह निःशुल्क हो सकते थे। कैंसर विभाग की प्रमुख डा. सुरभि से मुलाकात कराई। कभी परामर्श तो कभी जांच, एक्सरे या एमआरआई वगैरह के लिए आरती को लगभग रोज ही एसएन जाना पड़ता था। सुबह खाना बनाकर अकेले नौ बजे तक एसएन पहुंचना और देर शाम 4-5 बजे तक घर लौटना…यह उसकी दिनचर्या बन गई थी। कई जांचें प्राइवेट भी करानी पड़ीं। तमाम प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद एसएन के चिकित्सकों ने आपरेशन की डेट दे दी, 20 दिसंबर 2022..।
कैंसर के सफल आपरेशन के बाद आरती को एसएन में ही 15 कीमोथैरेपी और 18 सिकाई लेनी पड़ी। अप्रैल 2023 में कैंसर विभाग ने उन्हें पूरी तरह फिट करार दे दिया। हालांकि अब भी उनका नियमित ट्रीटमेंट चल रहा है। हर 15-20 दिन में उन्हें एसएन में डा. सुरभि से मिलना होता है। नियमित टेस्ट होते हैं, रोज दवाएं लेनी पड़ती है। कुछ दवाएं जिंदगीभर लेनी होंगी। लेकिन, आरती कैंसर से गिरफ्त से पूरी तरह आजाद होकर अब सामान्य जीवन जी रही है। शिवहरेवाणी से बातचीत में आरती ने बताया कि उसने अकेले यह जंग लड़ी और जीती, परिवार ने साथ दिया लेकिन सबसे बड़ा साथ मिला काके भइया का। एसएन के कैंसर विभाग का माहौल हताश कर देने वाला था। मरीजों की भारी भीड़, लंबी-लंबी तारीखें, दिनभर लाइन में लगना…। काके भइया का सहयोग नहीं होता तो हिम्मत टूट जाती।


आरती बताती हैं कि बेशक कैंसर का उपचार बहुत महंगा होता है, लेकिन उसने सरकारी सुविधा को चुना। यहां उपचार अपेक्षाकृत बहुत कम पैसों में हो जाता है, बशर्ते मरीज मजबूत इच्छाशक्ति और धैर्य रखे। आरती बताती है कि कैंसर के आपरेशन और उपचार के बाद मरीज को वो सारी ऐहतियातें बरतनी चाहिए जो डाक्टरों ने तज्वीज की हैं। आमतौर पर मरीज आपरेशन और उपचार के बाद लापरवाही बरतने लगता है, पूरी दवाएं नहीं लेता जो खतरनाक साबित हो सकता है। आपरेशन के बाद आरती की सेहत में प्रगति और दवाओं व दिनचर्या को लेकर उसकी सजगता से एसएन के चिकित्सक भी प्रभावित हैं। आरती ने मुश्किल आर्थिक हालात में जिस दृढ़ता के साथ कैंसर से जंग लड़ी और जीती है, उससे वह उन तमाम लोगों के लिए जीती-जागती मिसाल बन गई है जो कैंसर को मौत समझकर हिम्मत हार जाते हैं।


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