…भगवान श्री दत्तात्रेय जयंती पर विशेष…
अत्रीकुलोत्पन्न भगवान श्री दत्तात्रेय, भगवान श्री अर्जुन कार्तवीर्य जिनका उल्लेख हमारे सनातन हिंदू धर्मग्रंथों में कार्तवीर्यार्जुन, सहस्रार्जुन और सहस्रबाहु के नाम से भी किया गया है, के गुरु थे और अर्जुन कार्तवीर्य गुरु भगवान दत्तात्रेय जी के विशेष कृपापात्र व प्रिय शिष्य थे। उन्होंने अर्जुन कार्तवीर्य की भक्ति और सेवा से प्रसन्न होकर उनको सर्वाधिक सिद्धि एवं वरदान दिए थे। सहस्रबाहु अर्थात हजार हाथ के समान बलशाली होने का वरदान भी भगवान दत्तात्रेय ने ही अर्जुन को दिया था, जिसके बाद महाराजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण अर्जुन को जो पहले अर्जुन कार्तवीर्य और कार्तवीर्यार्जुन कहलाते थे, सहस्रार्जुन एवं सहस्रबाहु कहा जाने लगा। हैहय वंशीय क्षत्रियों के आराध्य योगयोगेश्वर भगवान श्री सहस्रार्जुन के गुरुवर्य भगवान श्री दत्तात्रेय की जयंती अग्रहण (अगहन, मार्गशीर्ष) माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है, इस पूर्णिमा को दत्त पूर्णिमा भी कहा जाता है।
इस वर्ष दत्त जयंती, दत्त पूर्णिमा, मार्गशीर्ष मास की पूनम, कलचुरि संवत् 1778 तदनुसार 04 दिसंबर 2025, गुरुवार को है। हैहय क्षत्रिय वंश के कुलदीपक और कलाल, कलार, कलवार, कलचुरियों के आराध्य और पूर्वज भगवान श्री अर्जुन कार्तवीर्य के गुरुवर्य भगवान श्री दत्तात्रेय हम सभी के लिए परम पूजनीय है क्योंकि श्री सहस्रार्जुन को देवत्व गुरुदेव श्री दत्तात्रेय के आशीर्वाद के कारण ही प्राप्त हुआ था।
महाराष्ट्र में दत्त पूर्णिमा बहुत ही भक्तिभाव से मनाई जाती है। महाराष्ट्र में भगवान श्री दत्तात्रेय के बहुत मंदिर है और अन्य देवी-देवता के मंदिर में भी श्री दत्त गुरु की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित है। महाराष्ट्र में दत्तमार्गी संप्रदाय को मानने वाले भी बहुतायत में है, इसी कारण मार्गशीर्ष एकादशी से ही महाराष्ट्र में दत्त जन्मोत्सव का प्रारंभ हो जाता है। महाराष्ट्र में दत्त से संबंधित कई तीर्थस्थल और दत्त अवतार संतों के तीर्थक्षेत्र है।
महाराष्ट्र की राजभाषा मराठी में लिखे हुए ‘श्रीदत्त महात्म्य’ ग्रंथ में शिष्य श्री अर्जुन कार्तवीर्य और गुरु श्री दत्तात्रेय का कई अध्यायों में विस्तृत वर्णन किया गया है। जिसमें भक्ति, वरदान और श्री सहस्रार्जुन की विरक्ति के समय भगवान श्री दत्तात्रेय द्वारा श्री सहस्रार्जुन को दो बार दिए गए आलिंगन और एक बार श्री सहस्रार्जुन के मस्तक पर अपना हाथ रखकर ज्ञान प्रदान का भी उल्लेख किया गया है। इसमें उल्लेखनीय है कि भगवान श्री सहस्रार्जुन ही एकमात्र है जिनको भगवान श्री दत्तात्रेय ने आलिंगन दिया है।
‘श्रीदत्त महात्म्य’ ग्रंथ का अंश…
म्हणोनि नमस्कारी ॥५६॥
प्रभू म्हणे हे दिले वर।
तूं होसी सप्तदीपेश्वर।
ऐसें बोलता योगेश्वर।
फुटले सुंदर दोन भुज ॥५७॥
मग प्रेमें दाटून।
इढ घेई देवाचे आलिंगन।
आलिंगिता द्वैतभान।
जाऊन निश्चळ राहिला ॥५८॥
ओळखोनी अंतःस्थिती।
वरदान आणूनी चित्तीं।
त्यावरी माया सोडिती।
पुनः उठविती तयातें ॥५९॥
श्रीदत्त म्हणे तयासी।
त्वां जावोनि माहिष्मती।
राज्याभिषेक आपणासी।
करवी विधिसी मदाज्ञनें ॥६०॥
तथास्तु म्हणोन अर्जुन।
भावें नमन करून।
म्हणे शिरसा मान्य वचन।
विस्मरण न व्हावें तुमचे ॥६१॥
माझें असावें स्मरण।
आपले हे चरण।
हेंचि माझें जीवन।
येथें प्रमाण मन तुमचें ॥६२॥
भगवान श्री दत्तात्रेय के अनन्य भक्त और प्रिय शिष्य थे भगवान श्री अर्जुन कार्तवीर्य। जो हैहय क्षत्रिय वंश के कुलदीपक और कलचुरियों (कलाल, कलार, कलवार) के पूर्वज एवं आराध्य हैं। श्री सहस्रार्जुन को हमारे धर्मग्रंथों में भगवान श्री विष्णु के सुदर्शन चक्र का अवतार माना गया है जो हैहयवंशी महाराजा कृतवीर्य और महारानी पद्मिनी के सुपुत्र और भगवान दत्तात्रेय के विशेष कृपापात्र शिष्य थे। भगवान श्री सहस्रार्जुन, परम पावन सलिला माँ नर्मदा तट पर स्थित अपनी राजधानी माहिष्मती (कुछ इसे महेश्वर, जिला खरगोन मध्यप्रदेश तो कुछ इसे मध्यप्रदेश की ही नगरी मंडला, जिला मंडला को मानते है। दोनों ही स्थान नर्मदा नदी के तट पर स्थित है।) के कारागृह में दशानन लंकेश रावण को बंदी बनाकर रखने वाले चक्रवर्ती महाराज थे। कई राजसुय यज्ञ करनेवाले बाहुबली, सप्तदीपेश्वर, हैहयवंशी सम्राट, तंत्र-मंत्र के जनक भगवान योगयोगेश्वर कार्तवीर्यार्जुन (कई ग्रंथों और पुराणों में कार्तवीर्यार्जुन, सहस्रबाहु और सहस्रार्जुन भी लिखा हुआ है।) का जन्म कार्तिक शुक्ल सप्तमी, सहस्रार्जुन सप्तमी को हुआ था। कालांतर में श्री सहस्रार्जुन को अपना पूर्वज और आराध्य माननेवाले वीर, प्रतापी वंशजो ने कलचुरि राज की स्थापना कर कलचुरि संवत् का प्रारंभ किया और 1200 साल तक आर्यावर्त के बहुत बड़े भूभाग पर शासन किया। दीपावली बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (पाड़वा, एकम) से कलचुरि नवसंवत् का प्रारंभ होता है। अभी कलचुरि संवत् 1778 चल रहा है।
-पवन नयन जायसवाल
राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष- अखिल भारतीय जायसवाल (सर्ववर्गीय) महासभा
सुसंवाद, संदेश- 94217 88630
अमरावती, विदर्भ, महाराष्ट्र









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