आगरा।
4 दिसंबर…दाऊजी की पूर्णिमा…वर्ष के सबसे पवित्र माह मार्गशीर्ष का अंतिम दिन, जिस दिन चंद्रमा को अमृत से सिंचित किया गया था। हम आगरा के शिवहरे समाज के लोगों के लिए अवसर है कि इस महान उपलक्ष्य को अपनी प्रमुख धरोहर के स्वामी दाऊजी महाराज की उपासना से सार्थक बना दें। मंदिर श्री दाऊजी महाराज मंदिर परिसर में सुबह 7 बजे से शहनाई की गूंज के बीच बलदाऊ की पूजा-अर्चना करें, मोहनबाटी का प्रसाद ग्रहण करें और महाआरती को अपनी उपस्थिति से अद्भुत छटा प्रदान कर चिरस्मरणीय क्षणों के भागीदार बनें। दाऊजी मंदिर प्रबंध समिति ने समाजबंधुओं से मंदिर में 4 दिसंबर को होने वाले दाऊजी पूनो महोत्सव में आमंत्रित किया है।
मंदिर में पूजा-पाठ का क्रम सुबह 7 बजे से शुरू हो जाएगा, मंदिर के मुख्य द्वार पर शहनाई से ब्रजराज के दरबार में श्रद्धालुओं का स्वागत किया जाएगा। ब्रजराज दाऊजी महाराज फूलबंगले में भक्तो को अदभुत दर्शन देंगे। इस अवसर पर मंदिर समिति की ओर से विशेष तैयारियां की गई हैं। मंदिर में सभी देव प्रतिमाएं एक जैसी आकर्षक सतरंगी पोशाक में सुसज्जित नजर आएंगी। दाऊजी महाराज श्रद्धालुओं को ‘रिटर्न गिफ्ट’ में मोहन-बाटी का प्रसाद प्रदान करेंगे। मंदिर समिति के अध्यक्ष श्री बिजनेश शिवहरे ने समाजबंधुओं को आमंत्रित करते हुए आग्रह किया है कि वे इस आय़ोजन को लेकर शिवहरेवाणी में प्रकाशित होने वाले समाचार को मंदिर प्रबंध समिति की ओर से व्यक्तिगत निमंत्रण की मान्यता प्रदान करें।
बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि मंदिर श्री दाऊजी महाराज में विराजमान दाऊजी महाराज की प्रतिमा उनके प्राचीनतम मुद्रा में है, जो केवल बृज में मिलती है, वह भी कहीं-कहीं। बता दें कि दाऊजी महाराज की सबसे प्राचीन मूर्तियां मथुरा और ग्वालियर क्षेत्र में ही प्राप्त हुई थीं, और ये सभी मूर्तियां शुंगकालीन और कुषाणकालीन हैं। कुषाणकालीन मूर्तियों में दाऊजी महाराज द्विभुज हैं और उनका मस्तक मंगलचिह्नों से शोभित सर्पफनों से अलंकृत है। बलराम का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में उठा हुआ है और बायें में मदिरा का चषक है। बाद में ऐसी मूर्तियां बनीं जिनमें दाऊजी महाराज बायें हाथ में हल-मूसल लिए हुए हैं, और अब इसी प्रकार की मूर्तियां अधिक पाई जाती हैं। लेकिन, सौभाग्य है कि सदरभट्टी स्थित शिवहरे समाज की धरोहर मंदिर श्री दाऊजी महाराज में विराजमान दाऊजी महाराज की मूर्ति उनकी प्राचीनत मुद्रा में हैं, जो ब्रज क्षेत्र में भी कहीं-कहीं दिखाई जाती है, ब्रज के बाहर तो इसे दुर्लभ भी कहा जा सकता है। मंदिर में दाऊजी की पूर्णिमा का यह 134वां समारोह है।
सनातन धर्म से जुड़ी मान्यताओं में दाऊजी की पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन से मार्गशीर्ष माह का आरंभ हो रहा है। मान्यता है कि सतयुग काल का आरंभ देवताओं ने मार्गशीर्ष माह की पहली तिथि को किया था। इस पूर्णिमा का उल्लेख सभी पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। ब्रज में यह दाऊजी की पूर्णिमा के नाम से मनाई जाती है। भगवान श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बल्देव को प्रेम से दाऊ कहते थे। दाऊजी पूर्णिमा को गद्दल पूनो के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इस दिन से दाऊजी महाराज को सर्दी से बचाने के लिए रजाई ओढ़ाई जाती है। इस तरह वह सभी ब्रजवासियों को संदेश देते हैं कि अब सर्दी से बचने के लिए उन्होंने स्वयं भी रजाई ओढ़ ली है, अतः भक्तगण भी सर्दी से बचाव की तैयारी कर लें।
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दाऊजी पूनो महोत्सव में आपका इंतजार; 4 दिसंबर को सुबह 7 बजे से पूजा-अर्चना; आकर्षक फूल-बंगले में दर्शन देंगे दाऊजी महाराज
- by admin
- December 3, 2025
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