November 1, 2024
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शख्सियत समाचार

बृजबिहारी प्रसाद..गरीब-वंचितों के मसीहा, पिछड़ा वैश्य वर्ग के शिखर पुरुष जिन्होंने बिहार में सामंतों को कमर तोड़ दी

पटना।
बृजबिहारी प्रसाद, बिहार की राजनीति का एक बड़ा नाम था जिन्हें लोग आज भी गरीब-वंचितों के मसीहा के रूप में याद करते हैं। शोषितों की मदद कर समाज में सामंती दबदबे को खत्म करने में उनका अहम योगदान रहा है। बिहार के बनिये, खासकर पिछड़ा वर्ग वैश्य उन्हें समाज में राजनीतिक चेतना जागृत करने वाले शिखर पुरुष के रूप में हमेशा याद करता रहेगा।
एक दौर था जब मुजफ्फरपुर और समस्त उत्तरी बिहार में सामंतों का अधिपत्य था। रंगदारी टैक्स, जमीनों पर अवैध तरीके से कब्जे होना आम सी बात हो गई थी। सामंतवाद तत्कालीन बिहार के विकास, गरीबी उन्मूलन और दलित उत्थान में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ था। ऐसे में एक कलवार परिवार में जन्मे बृजबिहारी प्रसाद ने 1984 में बिहार सरकार की अपनी इंजीनियरिंग की अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर सामंतों और बाहुबलियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। मुकाबला इस किया, कि सामंती तत्वों के हौसले चकनाचूर हो गए और वे भूमिगत हो गए।
राजनीति में बृजबिहारी प्रसाद का उदय 1990 के शुरुआती दौर में हुआ। यह वह समय था, जब पटना का गांधी मैदान राजनीतिक दलों की ताकत दिखाने का अखाड़ा बन गया था। इसी दौर में बृजबिहारी प्रसाद ने पटना के गांधी मैदान में वैश्य रैली आयोजित की और विशाल मैदान को वैश्यों से खचाखच भर दिया। इस रैली ने बिहार के राजनीतिक कद्दावरों को चौंका दिया। रैली में बृजबिहारी प्रसाद ने बनियों से ‘सोना बेचकर लोहा खरीदने’ की अपील की। इस रैली को राष्ट्रीय मीडिया में भी जोरदार कवरेज मिला। असर यह हुआ कि जो वैश्य समाज अब तक राजनीतिक दलों के लिए महत्वहीन था, उसे महत्व मिलने लगा। इसके बाद बृजबिहारी प्रसाद की (तत्कालीन जनता दल) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से करीबी बढ़ती गई औऱ वह उनकी पार्टी जनता दल से जुड़ गए। वह विधायक बने, तो उन्हें विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी विभाग का मंत्री बनाया गया। पूर्वी चंपारण से लेकर मुजफ्फरपुर तक प्रसाद का प्रभाव क्षेत्र था, खासकर ओबीसी के बीच वह बहुत लोकप्रिय थे। लालू प्रसाद यादव ने इन क्षेत्रों में चुनावी रणनीति में प्रसाद के प्रभाव का इस्तेमाल खूब इस्तेमाल किया।
प्रसाद ने उच्च जाति के मजबूत लोगों के खिलाफ कई पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की, जो अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में अपने प्रभाव और बाहुबल के कारण हावी थे। इन्हीं एक बाहुबली था मुन्ना शुक्ला, जिसे प्रसाद के उम्मीदवार केदार गुप्ता ने हराया था और एक अन्य रघुनाथ पांडे जिसे मुजफ्फरपुर निर्वाचन क्षेत्र से बिजेंद्र चौधरी ने हराया था। प्रसाद के उम्मीदवार बसावन भगत, महेश्वर यादव और रामविचार राय भी अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों से विजयी हुए। उनके राजनीतिक प्रभाव का चरमोत्कर्ष उनकी पत्नी रमा देवी के मोतिहारी से राधा मोहन सिंह को हराने के बाद देखा गया।
इसी दौर में बाहुबली देवेंद्रनाथ दुबे का उदय हो रहा था। चंपारण में उसका सिक्का चलता था। उन पर हत्या के 30 मामले दर्ज थे। रेलवे की ठेकेदारी के चलते देवेंद्र दुबे और गैंगस्टर प्रकाश शुक्ला की अच्छी दोस्ती थी। देवेंद्र दुबे बहुत तेजी से अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करने में जुटा था। इसी को लेकर बृजबिहारी प्रसाद और देवेंद्र दुबे आमने-सामने आ गए थे। 1998 में देवेंद्र दुबे मोतीहारी के गोविंदगंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते। इसके कुछ समय बाद ही अरेराज ब्लॉक में कुछ लोगों ने देवेंद्र नाथ की गोलियों से हत्या कर दी। हत्या का इल्जाम आया बृजबिहारी प्रसाद पर। हालांकि दुबे की हत्या को बिहार में अपराध के साम्राज्य के खात्मे की अहम घटना माना जा रहा है। इसी दौरान बृजबिहारी प्रसाद एक अन्य गैंगस्टर छोतन शुक्ला की हत्या के मामले में विवादों में आ गए। छोटन शुक्ला बिहार पीपुल्स पार्टी के नेता था और चुनाव प्रचार से लौटते समय उसकी हत्या कर दी थी। हत्या उन गुंडों ने की थी जिनके बारे में कहा जाता था कि वे कथित तौर पर प्रसाद के लिए काम करते थे।
इस बीच तकनीकी कालेजों में एडमिशन घोटाले का मामला सामने आया जिसमें कथित तौर पर बृजबिहारी प्रसाद की संलिप्तता के आरोप लगे। लालू यादव को अपनी सरकार की छवि बचानी थी, इसीलिए उन्होंने बृजबिहारी प्रसाद को इस्तीफा देने को कहा। इसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया। जेल में तबीयत खराब होने की शिकायत पर उन्हें कड़ी सुरक्षा में पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया। 13 जून, 1998 को प्रसाद बिहार सैन्य पुलिस के कमांडो से घिरे अपने वार्ड के बाहर टहल रहे थे, तो कुछ अज्ञात बंदूकधारियों ने प्रसाद पर गोलियां चला दीं। तीन कर्मियों की मौके पर ही गोली मारकर हत्या कर दी गई। प्रसाद के साथ उनके निजी अंगरक्षक लहमेश्वर शाह को की भी मौके पर ही मौत हो गई।
बृजबिहारी प्रसाद को वैश्य समाज खासकर ओबीसी वैश्य समाज का बड़ा नेता माना जाता था। यही कारण है कि उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर अब भी उनके कलवार समाज समेत सर्ववैश्य समाज के लोग उन्हें याद करते हैं और उनके लिए श्रद्धांजलि सभा का आयोजन करते हैं। उनकी हत्या के 26 वर्ष बाद सुप्रीमकोर्ट से दो आरोपियों को उम्रकैद की सजा के फैसले का कलवार समाज और वैश्य समाज ने स्वागत किया है।

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