अखिल भारतीय जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा के अंबेजोगाई (महाराष्ट्र) के महाधिवेशन में सम्मिलित होने नांदेड़ से अंबेजोगाई यात्रा में वाट्सएप पर स्वजातीय समूह को देख रहा था कि एक पोस्ट को पढ़कर मैंने व्योम जायसवाल को दिल्ली फोन किया। व्योम ने बताया आज सुबह ही दादाजी को लगाया वेंटिलेटर हटा दिया गया है। आपके फोन से पहले अशोक चाचाजी (महासभा के अध्यक्ष) से भी मेरी बात हुई है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मैंने बात समाप्त की और कुछ दिन बाद 31 जनवरी 25 को उनके निधन का समाचार पढ़ने को मिला।
मुझे याद है, कोरोनाकाल चल रहा था। एक दिन फोन घनघनाया तो हैलो कहते ही एक गरिमापूर्ण आवाज सुनाई दी “दिल्ली से वेद कुमार जायसवाल बोल रहा हूँ।”
मैं आश्चर्यचकित। सम्हलकर जय सहस्रार्जुन कहते हुए प्रणाम किया तो बोले “जानते हो मुझे?” मैंने कहा “समाज और संगठन से जुड़ा कौन होगा जो आपको नहीं जानता? और मैं तो आपसे मिल भी चुका हूं।” यह कहते हुए मैंने याद दिलाया कि 2015 भोपाल में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के समय की गई निवास की व्यवस्था के बाहर जब सुबह की गुनगुनी धूप और जलते अलाव के पास देशभर से आए स्वजातीय बंधू भोपाल की ठंड में भी सामाजिक चर्चा कर रहे थे। सच तो यह है कि ज्यादातर समाजबंधु उनके अनुभव बहुत ही ध्यानपूर्वक सुनो रहे थे, उनमें एक मैं भी था।
मेरी बात सुनकर उन्होंने कहा था अब तो उम्र के कारण कहीं जाना संभव नहीं हो पाता। इस बात का दर्द उनकी आवाज में स्पष्ट झलक रहा था। फिर बोले- सोशल मीडिया पर आपको पढ़ता हूँ, अच्छा लिखते हो। लेखन चोरी पर आज जो बात आपने कविता के माध्यम से व्यंग्य करते हुए कही है वैसी ही एक घटना मेरे साथ भी घटी चुकी है।
बात यह थी कि मेरे हैहयवंश, भगवान श्री सहस्रार्जुन से संबंधित और सामाजिक लेख को कई स्वजातीय मेरे नाम को काटकर और उस जगह अपना नाम लिखकर प्रसारित करते हैं। किस-किस का नाम लें ? इनमें इधर-उधर उछल-कूद मचाने वालों के साथ मुफ्त की वाहवाही लूटने वाले और छपास रोग से ग्रस्त फोटोबाज, समाजसेवक, जनसेवक और समाज संगठन के पदाधिकारी भी शामिल हैं। मजे की बात यह है कि कभी-कभी यह चोरी मेरे पोस्ट करने के अगले मिनट में ही संचार क्रांति के कारण उसी समूह में चोरों के नाम से झलकती है। आखिर मैं भी एक व्यक्ति हूँ कब तक इसको सहन करता? एक दिन जब सहनशक्ति ने जवाब दे दिया तो ऐसे चोरों के चेहरे उजागर करनेवाली एक व्यंग्य कविता का सृजन हुआ जिसको पढ़कर वेद बाबूजी ने मुझे फोन किया था और बताया था कि मेरे भी एक लेख को समाज के ही एक प्रतिष्ठित व्यक्ति ने एक स्मरणीका में अपने नाम से छपवा लिया था और उसे अपना लिखा बताता रहा। बाद में जब सच्चाई सामने आई तो क्षमा मांगने लगा। (इस घटना का उल्लेख मैं पहले भी वेद बाबूजी के जन्मदिवस पर एक लेख में किया था।)
इसके बाद भी कभी-कभार उनसे फोन पर बात होती रही। ज्यादातर फोन उनका ही आता जो मेरे लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं होता। उनके उम्र को देखते हुए इच्छा होते हुए भी अपनी ओर से फोन करना मैं टाल देता लेकिन वह मेरा लेखन पढ़कर मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया करते थे। समाजिक विषयों के साथ साहित्य पर भी उनकी पकड़ थी और चर्चा भी उनके द्वारा समाज के एकीकरण के किए गए प्रवास, कार्य और अनुभव और लेखन पर ही होती थी। दो वर्ष पूर्व अखिल भारतीय जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा के दो दिवसीय जयपुर अधिवेशन में उनके पुत्र सीए राजीव जायसवाल और पौत्र व्योम से मेरी मुलाकात हुई तो बाबूजी की प्रोत्साहित करनेवाली इसी विशेषता पर बात हुई थी।
अपने जीवन के अंतिम दिनों तक अखिल भारतीय स्तर पर सर्ववर्गीय कलाल समाज के एकीकरण के प्रबल पक्षधर, जिनके अथक परिश्रम और दूरदृष्टी से किए गए कार्य के कारण आज समाज के विविध वर्गों में परिचय, मेल-मिलाप, एकजुटता की भावना प्रबल हुई, ऐसे हमारे समाज के मनीषी, बाबूजी वेद कुमार जायसवाल की आत्मा की शांति के लिए 12 फरवरी को दिल्ली में श्रद्धांजलि सभा और पगड़ी कार्यक्रम के अवसर पर उनकी पावन स्मृति को शत-शत प्रणाम।
पवन नयन जायसवाल
राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष- अखिल भारतीय जायसवाल (सर्ववर्गीय) महासभा
सुसंवाद, संदेश- 94217 88630
अमरावती, विदर्भ, महाराष्ट्र
समाचार
श्रद्धांजलिः वेद बाबूजी और मैं; पवन नयन जायसवाल की कलम से..
- by admin
- February 11, 2025
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- 2 days ago
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