January 20, 2025
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार साहित्य/सृजन

सर्दियों में खस्ता गजक खाए जाओ…सीताराम शिवहरे के गुण गाए जाओ; जिन्होंने सबसे पहले बनाई थी गुड़ की तिलकुटिया गजक

आगरा/मुरैना।
सर्दी बढ़ने के साथ ही बाजार में गजक की दुकानें सज गई हैं। जिस तरह गर्मियों के मौसम में हर घर में आम आते हैं, वैसे की सर्दियों में गजक भी हर घर में जाती है। गजक अपने गुणों और स्वाद के चलते हर किसी की फेवरेट है, और गजक यदि मुरैना की हो तो कहना ही क्या। लेकिन, तिल और गुड़ से बनी खस्ता गजक खाते हुए क्या कभी आपने सोचा है कि इसे सबसे पहले किसने बनाया था? कब बनाया था?

यूं तो गजक का प्रचलन सदियों से है लेकिन तब इसका स्वरूप अलग था। यह गुड़ और तिल को कूटकर बनती थी, और घरों में ही बन जाती थी। बाजार में तिलबुग्गे के रूप में बिकती थी। लेकिन 1946 में मुरैना के सीताराम शिवहरे ने पहली बार गुड़ की चाशनी और तिल से ऐसी खस्ता तिलकुटिया गजक तैयार की, कि जिसने पूरे देश में गजक को नई पहचान दे दी। दरअसल चंबल नदी का शुद्ध और मीठा पानी तिल की पैदावार के लिए बहुत मुफीद है और यही कारण है कि भिंड और मुरैना शुरू से ही तिल की पैदावार के प्रमुख केंद्र रहे हैं और बताते हैं कि तिल व गुड़ से बनी गजक की शुरुआत भी यहीं से हुई थी। 1940 के दशक में जब चंबल क्षेत्र डकैतों के आतंक के कारण पूरे देश में कुख्यात था, तब मुरैना में सीताराम शिवहरे नाम का एक युवक चंबल की नैसर्गिक मिठास को दुनिया के पटल पर लाने की कोशिश में लगा था। बताते हैं कि सबसे पहले उन्होंने ही गुड़ और तिल को मिलाकर कूटने के बजाय गुड़ की चाशनी और तिल को मिलाया, फिर चाशनी सूखने पर उसे दीवार पर लगी कील पर लटकाकर जमकर फिंटाई की। खस्तापन आने पर उसकी पट्टियां तैयार कर लीं। आधुनिक गजक का यह पहला स्वरूप था जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया।

जल्द ही यह आइडिया दूसरे शहरों में भी पहुंच गया। इसके बाद सीताराम शिवहरे ने ही चाशनी में साबुत तिल के बजाय कुटे हुए तिल मिलाना शुरू किए और बाकी वही प्रक्रिया दोहराते हुए तिलकुटिया गजक तैयार की। इस गजक ने लोकप्रियता के शिखर को चूमा और पूरे देश में मुरैना की गजक छा गई। सीताराम शिवहरे अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी बनाई खस्ता गजक आज विदेशों तक जा रही है। मुरैना में उनका गजक का कारोबार उनके बेटे संभाल रहे हैं।

आज मेरठ, चंदौसी, लखनऊ और आगरा भी गजक कारोबार का बड़ा केंद्र हैं। पेठे की तर्ज पर ही गजक भी अब नए-नए स्वरूप में आ रही है। खासकर मुरैना और ग्वालियर में तमाम तरह की वैरायटीज मिल जाएंगी। क्वालिटी के मामले में बंगलुरू की गजक भी काफी नाम कमा रही है लेकिन गजक के दीवानों के लिए मुरैना आज भी किसी ‘तीर्थ’ से कम नहीं हैं जहां से ‘सीताराम शिवहरे का प्रसाद’ यानी गजक मंगाने को वे लालायित रहते हैं। तो आप भी हर सर्दी गजक के सेवन से पहले स्व. श्री सीताराम शिवहरे के योगदान का स्मरण करें, जीवन को अनूठी मिठास देने के लिए उनका आभार व्यक्त करना न भूलें।.लोग अपने बच्चों के लिए जमीन-जायदाद छोड़ जाते हैं, लेकिन सीताराम शिवहरे हम सबके लिए छोड़ गए हैं सर्दियों की मिठास…जिसका आनंद आने वाली पीढ़ियां भी लेती रहेंगी।

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