नई दिल्ली।
कल शनिवार यानी 2 नवंबर, 2024 को कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से कलचुरी संवत 1777 शुरू हो रही है। वैसे तो कलचुरी संवत की हमारे दैनिक जीवन में कोई उपयोगिता नहीं रही, लेकिन कलचुरी राजवंश के गौरवशाली इतिहास का एक अहम अध्याय है।
सभी जानते हैं कि वर्तमान में दो संवतें ही प्रमुख रूप से प्रचलन में हैं-विक्रम संवत और शक संवत। लेकिन वर्ष-गणना के मामले में भारतवर्ष दुनिया में सबसे आगे रहा है। यहां विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कालखंडों में भिन्न-भिन्न संवत चलते रहे हैं जिनमें से ज्यादातर का चलन लगभग लुप्तप्रायः हो गया है। इन्हीं में एक है कलचुरी संवत जो प्राचीन एवं मध्ययुगीन भारत के अधिकांश क्षेत्र में शासन करने वाले कलचुरी राजवंश द्वारा चलाया गया।
माना जाता है कि कलचुरी संवत की शुरूआत पश्चिम के आभीर क्षत्रप ईश्वरसेन ने ईस्वी सन 249-50 में किया था। आभीर राजवंश की उत्पत्ति हैहयवंश से हुई जिसमें ‘कलचुरी वंशाधिपति’, महिष्मति नरेश सम्राट सहस्त्रबाहु अर्जुन का जन्म हुआ था। बाद में ईश्वरसेन के वंशज महाराज इंद्रदत्त ने तीन पर्वतों की श्रृंखला के मध्य त्रैयकुटा पर्वत पर त्रैयकुटक साम्राज्य की स्थापना की।
कलचुरी संवत दरअसल वर्ष गणना की एक हिन्दू प्रणाली है। इसे हैहय संवत भी कहा जाता है। यह चंद्रसौर पद्धति पर आधारित कैलेंडर है। कलचुरी संवत को लेकर इतिहास में तमाम उल्लेख मिले हैं। विभिन्न इतिहासकारों ने कलचुरी साहित्य, ताम्रपत्र, शिखालेख, दस्तावेज, परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं के आधार पर कलचुरी संवत पर अपने-अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं। इनमों फिट्स एडवर्ड, कनिंघम, भगवानलाल इंद्रजी, कीलहार्न, अमलादेव घोष, रायबहादुर डा. हीरालाल जैसे महान इतिहासाकर एवं पुरातत्वविद् शामिल हैं। इनके आधार पर सात शताब्दियों (700 वर्ष) तक प्रचलन में रहे कलचुरी संवत की तिथियों को दो समूहों में विभाजित किया जा सकता हैः-
1.. वे प्रारंभिक तिथियां जो 490 ई. तक मिलती हैं और पश्चिम (गुजरात व महाराष्ट्र) से आती हैं।
2.बाद वाली तिथियां जो 722 से 969 ई. तक मिलती हैं और विंध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से आती हैं। इन क्षेत्रों में यह संवत कलचुरी साम्राज्य के विस्तार के साथ पहुंचा था।
इतिहासकार कीलहार्न का मानना था कि दोनों समूहों की तिथियों की गणना के लिए एक समान सूत्र का प्रयोग नहीं किया जा सकता। तदनुसार, संवत की प्रारंभिक तिथियों की गणना के लिए सूत्र-1 के अनुसार कलचुरी संवत 0= 248-49 ईस्वी होगा। बाद की तिथियों के लिए यह कलचुरी संवत 0= 248-48 होगा। दोनों के लिए कलचुरी संवत का प्रारंभ कार्तिक सुदी एकम से हुआ है। परंतु संवत की प्रारंभिक तिथियों मे माह सामान्यः अमान्त अथवा अमावस्या वाला होता है, जबकि दूसरी मे पूर्णिमान्त अथवा पूर्णिमा वाला होता है। एक मत अश्विन सुदी प्रतिपदा को कलचुरी नवसंवत्सर मानता है।
जो भी हो, ज्यादातर विद्वान कार्तिक सुदी एकम को कलचुरी नवसंवत्सर मानते हैं, और इस लिहाज से 2 नवंबर, 2024 को कलचुरी नवसंवत 1777 का पहला दिन होगा। सभी कलचुरी समाजबंधुओं को कलचुरी नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएं।
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