श्योपुर।
कलचुरी समाज के प्रतिष्ठित कथावाचक संत श्री अभिरामदासजी महाराज इन दिनों भगवान राजेश्वर श्री सहस्रबाहु अर्जुन की यश-कीर्ति और कृपा को जन-जन तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। वह सात दिनी रामकथा में एक भगवान सहस्रबाहु के बारे में विस्तार से बताते हैं।
शुक्रवार को सहस्रबाहु अर्जुन जन्मोत्सव पर उनके गृहनगर श्योपुर में होने वाले मुख्य कार्यक्रम में वह सहस्रबाहु समाज के आराध्य देव की कथा की संगतमयी प्रस्तुति देंगे। ळ्योपुर के 150 से अधिक गंव-मजरों में रहने वाले कलचुरी समाजबंधु उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
आपको बता दें कि श्योपुर निवासी संत श्री अभिरामदासजी महाराज जिनका वास्तविक नाम श्री बाबूलाल शिवहरे है, एक उभरते हुए रामकथा वाचक हैं। उनकी श्रीमुख से रामकथा की संगीतमयी और भावपूर्ण प्रस्तुति से श्रोता भाव-विभोर हो उठते हैं। लेकिन, करीब दो वर्ष पूर्व प्रयागराज के जायसवाल समाज के आग्रह पर उन्होंने रामकथा का एक दिन भगवान सहस्रबाहु अर्जुन को समर्पित करने का निर्णय़ लिया। खास बात यह है कि भगवान सहस्रबाहु की कथा की पहली प्रस्तुति भी उनहोंने प्रयागराज में कटघर स्थित जायसवाल धर्मशाला में ही दी थी।
श्री अभिरामदासजी महाराज ने बताया कि प्रयागराज के श्री कमलेंद्र जायसवाल और समाज के अन्य लोगों ने उन्हें इसका सुझाव दिया था। साथ ही इलाहाबाद के वरिष्ठ समाजसेवी एवं बीएसएनएल से रिटायर्ड इंजीनियर रामलखन जायसवालजी द्वारा रचित सहसस्त्रबाहु कथा एवं सहस्त्रबाहु चालीसा भी दी थी जिसे आधार बनाकर उन्होंने सहस्रबाहु कथा का वाचन शुरू किया। श्री अभिरामदासजी बताते हैं कि वैसे तो सहस्त्रबाहु कथा भी भागवत कथा की तरह सप्ताहभर की होती सकती है लेकिन उन्होंने इसे एक दिन में समाहित करने का प्रयास किया है जिसमें आराध्य देव के जन्म की कथा, रावण से युद्ध की कथा, उनके जीवन से जुड़े अन्य प्रेरक प्रसंगों और मंत्रों को शामिल किया है। कथा के बीच-बीच में भगवान सहस्रबाहु के मंत्रों और भजनों की संगीतबद्ध प्रस्तुति भी वह देते हैं।
कौन हैं अभिराम दासजी महाराज
56 वर्षीय संत अभिराम दासजी महाराज का मूलनाम बाबूलालजी शिवहरे है जो मध्य प्रदेश के श्योपुर के रहने वाले हैं और गृहस्थ संत हैं। जन्म श्योपुर के गांव प्रेमसर में हुआ, पिता स्व. श्री मदनलाल शिवहरे किसान थे, माताजी श्रीमती परताबाई गृहणी थीं। गांव में ही संत श्री श्री 1008 संत शिरोमणि श्री जानकीदासजी महाराज का आश्रम था, जहां बचपन से जाते थे। 16 साल की आयु में कैलाशीबाई से विवाह हुआ। उनका परिवार अब श्योपुर में रहता है। उनके तीन पुत्र देवेश, गौरव कृष्ण, रवि शिवहरे और सबसे छोटी पुत्री भारती शिवहरे (17 वर्ष) हैं। देवेश विवाहित हैं और भाई गौरव के साथ मिलकर मोटर पार्ट्स की दुकान करते हैं। रवि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, जबकि बेटी हाईस्कूल में है। बेटी के जन्म के बाद श्री बाबूलालजी का मन रामकथा और रामभक्ति में रम गया, और अपने गुरु संत शिरोमणि श्री जानकीदासजी महाराज के आदेश पर उन्होंने भगवा धारण कर लिया। गुरुजी ने ही अध्यात्म की दुनिया में उनका नामकरण ‘संत श्री अभिरामदासजी महाराज’ कर दिया। तब से वह श्री राम कथा का वाचन कर रहे हैं। वह चित्रकूट में दो बार रामकथा कह चुके हैं, जिसका आयोजन शिवहरे समाज द्वारा किया गया। इसके अलावा देशभर में कई अन्य जगहों पर असंख्य बार श्री रामकथा का वाचन कर चुके हैं। भजनों की संगीतमयी प्रस्तुति उनकी रामकथा का विशेषता है।
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