by Som Sahu October 20, 2017 आलेख, जानकारियां 305
शिवहरे वाणी नेटवर्क
शिवहरे वाणी पोर्टल इन दिनों श्रृंखलाबद्ध तरीके से भगवान कार्तवीर्य सहस्त्रबाहु अर्जुन के प्रताप से आपको परिचित करा रहा है। ऐसे में जबकि, संपूर्ण कलचुरी समाज भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन की जयंती मनाने जा रहा है, हम आपको बता दें कि जयंती समारोहों के साथ ही कार्तिक मास में दीपदान करने का भी विशेष महत्व होता है। दरअसल भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन को कार्तिक मास का अधिपति और दीपदान का स्वामी माना गया है। साथ ही भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन एकमात्र अनिष्ट रक्षक देव हैं, जिनका नाम स्मरण करने मात्र से न केवल धन नष्ट होने से बच जाता है, बल्कि नष्ट धन भी पुनः प्राप्त हो जाता है। इसलिये हमें पूरे कार्तिक मास यानी दीपावली से पूर्णिमा तक अथवा सप्तमी से पूर्णिमा तक दीपदान अवश्य कर देवता को प्रसन्न करना चाहिये। हाथरस स्थित श्री कार्तवीर्य नक्षत्र ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य श्री विनोद शास्त्रीजी ने इस वर्ष भगवान सहस्त्रबाहु जयंती आयोजन के विभिन्न पहलुओं पर धर्म और ज्योतिष की दृष्टि से विश्लेषित किया है, जिसे हम प्रस्तुत कर रहे हैं।
27 अक्टूबर को ही माना जयंती की श्रेयस्कर तिथि
भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन का जन्म त्रेता काल के आरंभ में जब सूर्य तुला राशि और चंद्रमा मकर राशि में विराजमान थे। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी, श्रवण नक्षत्र, गर करण, दिन रविवार को ऊषाकाल में आनंद योग से हुआ था। परंतु इस वर्ष सहस्त्रबाहु अर्जुन जयंती ग्रह गोचर-योग परिवर्तन के कारण दिनांक 27 अक्टूबर शुक्रवार को मनाना श्रेयस्कर होगा। इस बात सप्तमी तिथि गुरुवार यानी 26 अक्टूबर को दोपहर 12.15 बजे से शुरू होकर अगले दिन शुक्रवार 27 अक्टूबर को दोपहर 02.44 बजे तक रहेगी। वहीं श्रवण नक्षत्र 27 अक्टूबर की मध्यरात्रि के बाद 02.41 से आरम्भ होकर अगले दिन शनिवर को रात्रि 05:02 बजे तक रहेगा। गर नाम का करण तो नवमी तिथि को पड़ेगा यानी कई योग इस दिन इकट्ठे नही पड़ रहे हैं। इस कारण 27 अक्टूबर को उदया तिथि मान्य रहेगी और पूरे दिन श्री सहस्त्रबाहु जयंती धूम-धाम से मना सकते हैं।
विशेष कामना हेतु दीपदानः समय एवं तिथि
श्री विनोद शास्त्रीजी के अनुसार, यदि विशेष कामना हेतु कार्तवीर्य दीपदान करना हो तो पूरे कार्तिक मास दीपदान श्रेयस्कर है विशेष कर त्रयोदशी, अमावस्या, सप्तमी तथा पूर्णिमा तिथि को दीपदान अति लाभकारी माना गया है। यदि विशेष योग की बात करें तो 26 अक्टूबर को दोपहर 12:15 से अगले दिन शुक्रवर को दोपहर 02:44 तक तथा 27 अक्टूबर को रात्रि 02:41 से अगले दिन 28 अक्टूबर को रात्रि उपरान्त 05:02 मिनट तक दीपदान कर सकते हैं। वही मेष, कर्क, सिंह, कन्या, धनु, मकर, कुंभ लग्नों मे भी दीपदान करना प्रशस्त रहेगा। प्रातःकाल एवं सांय काल में दीपदान करना उत्तम है तथा प्रदोष काल निशीथ काल तथा ऊषा काल के आरम्भ मे दीपदान् करना अत्यन्त ही प्रशस्त माना गया है। फिर भी तत्काल किसी कार्य हेतु तत्काल दीपदान भी किया जा सकता है।
कैसे करे दीपदान
दीपदान करने से पूर्व पूजा की सभी वस्तुएं एकत्र कर पहले गणेश पूजन कर भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन को स्नान करा नवीन वस्त्र धारण कराकर पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करें तथा हाथ मे जल, अक्षत् पुष्प लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करेः-
ॐ आं हृीं कार्त्तबीर्यार्जुनाय महिष्मति नाथाय सहस्रबाहवे सहस्रक्रतुदीक्षिताय दत्तात्रेय प्रियाय आत्रेय अनुसूईयागर्भरत्नाय हुँ हृीं इमं दीप गृहाण मां रक्ष रक्ष दुष्टान्न नाशय नाशय पातय पातय ध्रुबं हृीं क्रीं स्वाहा, अनेन दीप वर्येण पश्चिमाभिमुखेन दीपेन मां रक्ष रक्ष ….देबदत्त…..वरप्रदानाय हं हं हृीं ॐ क्रीं स्वाहा
उक्त मन्त्र उच्चारण कर जल भूमि पर गिरा दे। देवदत्त के स्थान पर दीपकर्ता के नाम का उच्चारण करें। उक्त मंत्र का पूर्ण उच्चारण कर दीप दान करें, फिर ‘ॐ क्रीं स्वाहा’ का पूर्व की भांति संकल्प करें, जल छोडे फिर नाद स्वर मे ‘तं थं दं धं नं पं फं वं भं मं ॐ स्वाहा’ का उच्चारण कर पश्चिमाभि मुख करके हाथ जोड लें, फिर ‘ॐ हृीं चक्राय नमः’ का एक हजार जाप करें तथा ‘ॐ कार्त्तवीर्याजुनाय नमः’ का जाप करें।
इन बातों का रखें ध्यानः-
दीपक सोने, चाँदी, अथवा तांबे का होना चाहिए। दीपक मे शुद्ध गाय का घी अथवा कलावे की बत्ती का प्रयोग करना चाहिए।
सामान्य दीपदान में तांबे के दीपक तथा तिल के तेल का प्रयोग प्रयोग कर सकते है।
Leave feedback about this