by Som Sahu October 13, 2017 आलेख, घटनाक्रम 360
शिवहरे वाणी नेटवर्क
कलचुरी समाज के आराध्य भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन की जयंती मनाने की तैयारियां पूरे देश में जोर-शोर से चल रही हैं। खास बात यह है कि ऐसे आयोजन और उनकी भव्यता वर्ष दर वर्ष बढ़ रही है, जिसे अपने गौरवशाली अतीत से जुड़ने और गौरवशाली पहचान को वापस पाने की कलचुरी समाज की कोशिश के रूप में भी देखा जाता है।
आगरा में शिवहरे समाज की प्रमुख धरोहर मंदिर श्रीदाऊजी महाराज की प्रबंध समिति की पहल पर इस बार पहली दफा सहस्त्रबाहु जयंती मनाने का निर्णय को समाज की ओर से व्यापक स्वीकृति मिलती प्रतीत हो रही है। हालांकि कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इतिहास को पकड़ बैठे रहने से कुछ नहीं होने वाला, बदलते वक्त के साथ चलने से ही समाज का विकास संभव है। उनको मेरा यही जवाब है कि हम इतिहास को नहीं पकड़ते, बल्कि हमारा इतिहास हमारे साथ चलता है, हमारी मौजूदा समस्याओं का कारण भी कहीं न कहीं हमारे इतिहास में ही छिपा होते है। हमारा अतीत, वर्तमान और भविष्य..हमारे जीवन के अलग-अलग चरण जरूर हैं, लेकिन इनमें कोई भी स्वतंत्र नहीं है। हमारा वर्तमा हमारे अतीत से प्रभावित होता है और भविष्य को प्रभावित करता है। एक व्यक्तिगत उदाहरण से यूं समझें, कि हम डाक्टर के पास जाते हैं, तो डाक्टर भी हमसे कुछ ऐसा सवाल पूछता है जो हमारे इतिहास से जुड़े होते हैं। मसलन डायबिटीज के मरीजे से चिकित्सक जानना चाहेगा कि आपके पिताजी या माताजी को भी डायबिटीज थी, या नहीं। बुखार है तो डाक्टर के लिए यह जानना जरूरी है कब से है, या अक्सर बुखार रहता है, ठंड लगकर आया था…आदि ऐसे तमाम सवाल होते हैं, जिनके जवाब से ही चिकित्सक निर्णय करता है कि कौन सी दवा देनी चाहिए। सच तो यह है कि जिस व्यक्ति को अपना अतीत या इतिहास नहीं मालूम, उसकी स्थिति एक लावारिस की तरह होती है जिसे पता नहीं होता कि उसके मां-बाप कौन हैं, उसका परिवार और समाज क्या है। ये बात एक व्यक्ति पर भी फिट बैठती है और एक समाज के लिए भी। विकास के रास्ते और तौर-तरीके हर समाज अपनी परंपराओं, मान्यताओं और अपनी ऐतिहासिक प्रवृत्तियों के अनुसार चुनता है। इसीलिए यदि हम अपने समाज का इतिहास नहीं जानते हैं, तो जानना चाहिए।
पहले हमें सहस्त्रबाहु अर्जुन जिन्हें कार्तवीर्यार्जुन भी कहते हैं, को लेकर पौराणिक उल्लेखों के बारे में जानते हैं, जो हमारे लिए भगवान सहस्त्रबाहु के प्रारंभिक परिचय के पाठ के रूप में उपयोगी हो सकते हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो उनके बारे में बिल्कुल नहीं जानते, या कम जानते हैं। श्रीमदभागवत के स्कन्द 9 अध्याय 15 में निम्न प्रकार वर्णन है:-
यमाहुवार्षु देवांश हैहय नां फुर्लात्कम।
हैहया नामी धिपतिरर्जुन: क्षत्रियर्षम।।
अर्थात, महाराजा ययाति के यहां वासुदेव के अंश से हैहय नामक पुत्र हुआ, जिनके वंश में कार्तवीर्यार्जुन क्षत्रिय हुए है।
श्री कार्तवीर्यार्जुन ने दस हजार वर्षो की कठिन तपस्या के पश्चात् श्री भगवान् दत्तात्रेय से दस (10) वरदान प्राप्त किये थे, जिनका उल्लेख वे वरदान निम्न प्रकार से है:-
1-ऐश्वर्य शक्ति प्रजा पालन के योग्य हो, किन्तु वह अधर्म न बन जाए।
2- दूसरो के मन की बात जानने का ज्ञान हो।
3- युद्ध में कोई समानता न कर सके।
4- युद्ध के समय सहस्त्र भुजाएं प्राप्त हो, लेकिन उनका तनिक भी भार न लगे।
5-पर्वत, आकाश, जल, पृथ्वी और पाताल में गति हो।
6-मेरी मृत्यु अधिक श्रेष्ठ के हाथो से हो।
7-कुमार्ग में प्रवृत्ति होने पर सन्मार्ग का उपदेश प्राप्त हो।
8-श्रेष्ठ अतिथि की निरंतर प्राप्ति होती रहे।
9-निरंतर दान से धन न घटे।
10-स्मरण मात्र से धन का आभाव दूर हो जाये एवं भक्ति बनी रहे।
श्री माकंर्डेय पुराण अध्याय-18
यदि देव प्रसंन्त्वं तत्प्रयाच्छाधि मुक्त माम।
यथा प्रजा पाल्यायेम न चा धर्मं मवाप्नुयाम।।
परानुस्मरण ज्ञान म प्रति द्वन्दतांरणे।
सहस्त्रमाप्तु भिच्छामि बाहुना लघुता गुणाम ।।
असँगा गतय: सन्तु शौला काशम्बु मूमिसु।
पातालेषु च सवेर्षु वधश्चाप्याधि कान्नरात।।
तथा माग प्रवृ तस्य सन्तु सन्मार्ग देशिवा :।
संतुमें तिथय -शलाघ्य वित्तवान्य तथा क्षयं ।।
अन्स्ट द्रव्यता रास्ट्रे मामनुस्मरणेन च ।
त्वयि भक्तिश्च देवाश्तु नित्यं मव्यभि चारणी ।।
लखनऊ के पंडित रवींद्र कुमार तिवारी सुपुत्र स्वर्गीय राजेंद्र प्रकाश तिवारी उपरोक्त श्लोक की व्याख्या करते हुए लिखते है:-
श्री सहस्त्रबाहु के उच्च आदर्श विचार दस वरदानो के प्रगट होते है। ये दस गुण एक राजा एवं एक क्षत्रिय के लिए ही आवश्यक नहीं, अपितु प्रत्येक मानव के लिए संग्रहणीय है। जहां बल, विजय, विभूति, ऐश्वर्य आदि की अभिलाषा हो वहां अधर्म एवं कुमार्ग का भय तथा दीनो पर प्रेम, त्याग एवं भक्ति भावनाओ का होना परम आवश्यक है। इन दस गुणों के आ जाने पर मानव के लिए हजार साथियों का साथ हाथ के रूप में प्राप्त हो जाता है। यही श्री सहस्त्रबाहु जी के दस उपदेशो द्वारा मानव कल्याण को सुन्दर संकेत है।
साधक सिद्ध बिमुक्त उदासी, कवी कोविद कृतग्य सन्यासी ।
जोगी शूर सुतापस ज्ञानी, धर्म निरत पंडित विज्ञानी।।
तरहि न बिनु सेएँ मम स्वामी, राम नमामि नमामि नमामि नमामि ।।
क्रमशः
(इंटरनेट पर विभिन्न साइट्स पर उपलब्ध सामग्री से संकलित)
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