by Som Sahu October 04, 2017 घटनाक्रम 520
- ग्वालियर में भतीजे ने फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र बनवा कर हड़प लिया मकान
- पिछले 21 वर्षों से न्याय के लिए दर-दर भटक रहे 78 वर्षीय रिटायर्ड डाककर्मी
शिवहरे वाणी नेटव्क
ग्वालियर।
78 वर्षीय ज्ञानचंद शिवहरे ज्ञानचंद्र बड़े विचित्र हालात में हैं। जिस शासन से वह पेंशन ले रहे हैं, वही फिलहाल उन्हें जिंदा मानने को तैयार नहीं है। पिछले 21 सालों से पुलिस और दूसरे सरकारी महकमों के आगे चीख-चीखकर कह रहे हैं- ‘मैं जिंदा हूं..मेरी बात सुनो..मुझे न्याय दो, मेरा मकान वापस दिलाओ…..या तो मुझे जिंदा मान लो या फिर मेरी पेंशन बंद कर दो’। लेकिन उस अंधी-बहरी व्यवस्था में उनकी कौन सुने, जिसने कागजों में उनकी मौत को सच मान लिया । ज्ञानचंद के भतीजे ने उन्हें मृत दर्शा कर उनका मकान हड़प लिया है, जबकि ज्ञानचंद दर-दर भटक रहे हैं।
मामला यूं है कि मूल रूप से ग्वालियर के निवासी श्री ज्ञानचंद ने 1957 में डाक विभाग में नौकरी शुरू की थी। पहली पोस्टिंग भिंड पोस्टऑफिस में हुई। लंबे समय तक भिंड में तैनात रहे, और फिर डबरा तबादला हो गया। 1997 में वह डबरा से ही रिटायर हुए। इस तरह उन्होंने अपनी पूरी नौकरी ग्वालियर से बाहर रहकर ही की और रिटायरमेंट के बाद अपने शहर, अपने घर लौटे। 1997 में ग्वालियर लौटे तो उनके पांव तले जमीन खिसक गई, जब पता कि उनका मकान अब उनका नहीं रहा और उनके भतीजे लक्ष्मण ने उनका फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकर उनका मकान हड़प लिया है।
खास बात यह है कि ज्ञानचंद के साथ उनके भाई दयाचंद शिवहरे का परिवार लगातार फर्जीवाड़ा कर रहा था, और उन्हें भनक तक नहीं लगी। बाद में खुद ज्ञानचंद इस मामले में लगे तो हैरान कर देने वाले कारनामे सामने आए। ज्ञानचंद का आरोप है कि वह जब भिंड में नौकरी कर रहे थे, तब उनके भाई दयाचंद ने ग्वालियर नगर पालिका में उनके दस्तावेजों के आधार पर फर्जी तरीके से नौकरी हासिल की थी। यही नहीं दयाचंद ने अपने बच्चों के अभिभावक के तौर पर दस्तावेजो में भी ज्ञानचंद का नाम दर्ज कराया। 1972 में नौकरी के दौरान ही दयानंद की मौत हो गई तो दयाचंद की पत्नी ने पति के तौर पर ज्ञानचंद का नाम दर्शाकर नर्स की नौकरी हासिल कर ली। ज्ञानचंद को इसकी भनक तक नहीं थी। ज्ञानचंद के मुताबिक, उनके रिटायरमेंट से एक वर्ष पूर्व 1996 में दयानंद के पुत्र लक्ष्मण शिवहरे ने ज्ञानचंद का मृत्यु प्रमाण पत्र बनवा लिया। चूंकि लक्ष्मण के दस्तावेजों में अभिभावक के तौर पर ज्ञानचंद का नाम पहले से चला आ रहा था, लिहाजा ज्ञानचंद को अपना पिता दर्शाते हुए लक्ष्मण ने मकान अपने नाम करवा लिया। पूरा मामला सामने आने के बाद ने पुलिस-प्रशासन से सहायता लेने का प्रयास किया। तब से पुलिस और अन्य संबंधित सरकारी महकमों के चक्कर लगा रहे हैं।
अब 21 वर्ष के संघर्ष के बाद न्याय मिलने की आस जागी है। ज्ञानचंद बुधवार 4 अक्टूबर को एसपी से मिले । एसपी ने ज्ञानचंद से पूरा मामला जाना। ज्ञानचंद ने फर्जीवाड़े की जांच की गुहार लगाई जिस पर एसपी ने उन्हें उचित कार्यवाही का भरोसा दिलाया है।
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