by Som Sahu September 21, 2017 घटनाक्रम 266
सोम साहू
ये दिन मातृशक्ति के नाम हैं। शारदीय नवरात्र पर घर-घर में देवी का पूजन हो रहा है, बड़े सामाजिक आयोजन भी चल रहे हैं लेकिन जरा सोचिये… समाज में क्या हम मातृशक्ति को वो सम्मान दे पाए हैं, जिसकी वह हकदार है। रोज सुबह के अखबार महिलाओं के प्रति अत्याचारों और हिंसा की खबरों से भरे होते हैं। मातृशक्ति आज खुद असुरक्षित है, घर के अंदर भी और घर के बाहर भी।
क्या ऐसी खबरें आपके मन-मस्तिष्क को झकझोरती हैं, क्या ये हालात आपको शर्मिंदा करते हैं, क्या आप महिलाओं के प्रति समाज के नजरिये को बदलना चाहते हैं, क्या आप अपना नजरिया बदल पाए हैं, क्या आप महिलाओं को बराबर का सम्मान देते हैं, क्या आप महिलाओं के सम्मान को समाज में पुनःस्थापित करने के लिए दिल से कुछ करना चाहते हैं? इन सब सवालों का जवाब यदि ‘हां’ में है तो आप सही मायने में हकदार हैं नवरात्र में मातृशक्ति की पूजा करने के। देवी की कृपा आप पर बनी रहेगी।
भिंड शहर की श्रीमती लक्ष्मी शिवहरे (काल्पनिक नाम) ने एक गंभीर सवाल खड़ा किया है। यहां चतुर्वेदी नगर में रहने वाले रंजन शिवहरे (काल्पनिक नाम) की पहली पत्नी की मौत हो गई थी जिससे उसके दो बच्चे हैं। रंजन ने दूसरी शादी छतरपुर निवासी लक्ष्मी शिवहरे से 20 जून 2014 को की थी। लक्ष्मी का कहना है कि वह शादी के बाद 3 बार गर्भवती हुई, लेकिन हर बार पति अपने परिजन के साथ मिलकर कमरे में बंद करते हैं और गर्भपात की दवा खिला देते हैं। गर्भपात की दवा खिलाए जाने से उसकी हालत मरणासन्न् हो जाती है। पति कहता है पहली पत्नी के बच्चों की सेवा के लिए तुझसे शादी की है। तुझसे बच्चा नहीं चाहिए। अब लक्ष्मी ने पुलिस से शिकायत की है जो मामले की जांच कर रही है।
सवाल यह है क्या किसी महिला से मां बनने से हक छीना जा सकता है? प्रकृति ने महिला को ही ममता का भाव दिया है, जो हर महिला में किसी भी बच्चे के प्रति होता है, चाहे वह अपना हो या पराया। यही वजह है कि एक महिला दूसरी पत्नी बनकर अपने पति की पहली पत्नी की संतानों को पालने का माद्दा रखती है। लेकिन ममता अगर नारी को महान बनाती है तो मातृत्व में उसे पूर्णता का अहसास भी होता है। यह पूर्णता उसका हक है। हर देश का कानून महिला के इस हक की रक्षा के लिए है। मगर अपने इस हक के लिए पति और सुसराल के खिलाफ कानून के दर पर दस्तक देने की हिम्मत लक्ष्मी शिवहरे जैसी कुछ ही महिलाएं कर पाती है।
लक्ष्मी शिवहरे अकेली नहीं है, उस जैसे तमाम मामले समाज में आए दिन सामने आते हैं। इस तरह की घटनाओंं का सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण एक समान निष्कर्ष पर पहुंचता है जिसमें समाज की पुरुष प्रधान मानसिकता ही कटघरे में खड़ी होती है। लक्ष्मी के केस में हो सकता है कि रंजन आर्थिक मजबूरियों में और बच्चे न चाहता हो। हालांकि महिला आत्मनिर्भर बनकर परिवार में आर्थिक सहयोग करने की क्षमता हमेशा से रखती है, मगर पत्नी की आत्मनिर्भरता अक्सर पति के अहं को चोट करती है। महिलाओं के प्रति हिंसा, शोषण और अत्याचार के हर मामले के पीछे यही पुरुष प्रधान मानसिकता और श्रेष्ठता का भाव जिम्मेदार है। जब तक पुरुष प्रधान मानसिकता नहीं बदलेगी, मातृशक्ति को कभी उचित सम्मान नहीं मिल सकेगा
आज वक्त की जरूरत है कि मातृशक्ति के प्रति अपनी आस्था और सम्मान को पूजा-पाठ तक सीमित नहीं रखें, बल्कि से मंदिर से निकालकर अपने मन में, आचरण में, घर में, समाज में लागू करें। यही होगी सही मायने में देवी पूजा। हैप्पी नवरात्र।
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