by Som Sahu September 12, 2017 घटनाक्रम 160
- शिवहरे वाणी के संस्थापक स्व. उदित साहू के स्मृति समारोह में पत्रकारिता और कविता की चुनौतियों पर चर्चा
- देर शाम तक चला झकझोर देने वाली कविताओं, गीतों और गजलों का दौर
शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा
एक लंबे अर्से बाद आगरा में कविता केवल जनपक्ष के लिए अपना समर्पण दिखाती मिली। चार दशक पहले डा. रामविलास शर्मा और डा. रांगेय राघव के बीच कविता को लेकर होने वाली बहस रविवार (10 सितंबर) शाम चार बजे से न्यू आगरा कम्युनिटी पार्क में पढ़ी गई कविताओं से जीवन्त हो उठी।
जन सरोकारों को समर्पित संस्था ‘अभिव्यक्ति’ के बैनर तले रविवार को मूर्धन्य पत्रकार एवं साहित्यकार और ‘शिवहरे वाणी’ के संस्थापक स्व. श्री उदित साहू का स्मृति दिवस मनाया गया। विख्यात साहित्यकार डा. अशोक रावत की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम में श्रोता भी कोरी कल्पना वाली कविता सुनने को तैयार नहीं थे। रचनाकारों ने सिद्ध कर दिया कि आज आंखों से आंसू निकालने वाली नहीं, माथे पर पसीना बहाने वाली कविताओं की जरूरत है।
बरेली से पधारे जनवादी रचनाकार गोपाल विनोदी ने संचालन करते हुए डा. रामगोपाल सिंह चौहान और डा. घनश्याम अस्थाना का स्मरण करके कवि कर्म को बहुत पीछे से जोड़कर आगरा के समृद्ध इतिहास का जिक्र किया। कार्यक्रम में स्व. श्री उदित साहूजी के लेखन पर भी चर्चा की। यही नहीं, आज की कविता और आज की पत्रकारिता पर कई सवाल भी खड़े किए। उनका कहना था कि कविता मूल्यों से गिरी है और पत्रकारिता मानक से। फिर भी कुछ लोग हैं जो मूल्य और मानक से समझौता नहीं करते। समारोह में वरिष्ठ पत्रकार डा. हर्षदेव एवं कवि रमेश पंडित को उदित साहू स्मृति सम्मान प्रदान किया गया।
डा. हर्षदेव ने उदित साहू की पत्रकारीय प्रतिबद्धताओं का जिक्र करते हुए मौजूदा हालात पर गंभीर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि क्या हम ऐसा न्यू इंडिया बनाने जा रहे हैं जिसमें मध्ययुग के हालात होंगे, हम मानवता की तमाम उपलब्धियों को दरकिनार करके एक-दूसरे के खान-पान, रहन-सहन, आदतों पर अपने रिश्तों को निभाएंगे| कबीलाई लोगों की तरह अलग सोच वालों को शत्रु मान लेंगे, जिन्हें हम पसंद नहीं करेंगे उन पर तलवार/गोली तान देंगे| देश के नए सुल्तान तो हमको उसी तरफ ले जा रहे हैं|
कवि रमेश पंडित ने उदित साहू को श्रद्धांजलि के रूप में मौजूदा हालात को बयां करता ताजा गीत प्रस्तुत कियाः-
रुको अभी मैं घूम घाम कर फिर से आता हूँ
बाहर का मौसम कैसा है अभी बताता हूँ
वो देखो वो ठीक सामने भीड़ जु दिखती है
उनके पाँव के नीचे एक सड़क भी चलती है
गांव तुम्हारे यदा कदा ही लगते हों मेले
मेले जैसी भीड़ भाड़ ये अक्सर रहती है
वो देखो वो बीच सड़क पर कुचल गया कोई
किसका मंगल सूत्र चल बसा, देखूँ,आता हूँ/ बाहर का मौसम- –
श्री विनोदी ने बताया कि उदित साहू कविता कला को कला के लिए नहीं, जीवन के लिए स्वीकार करते थे। इसलिए अभिव्यक्ति संस्था जन सरोकारों के लिए समर्पित है। उन्होंने पत्रकारिता के पक्षपातपूर्ण हो जाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
काव्य संध्या में प्रख्यात गीतकार सोम ठाकुर ने उदित साहू के साथ आगरा में साथ पढ़ने और फिर पढ़ाने के दिनों का स्मरण करते हुए प्रभावशाली रचना प्रस्तुत की। जाने-माने कवि चौधरी सुखराम सिंह ने भी इस मौके पर ‘मित्र’ उदित साहू की स्मृतियां साझा करते हुए गीत प्रस्तुत किया। युवा कवि संजीव गौतम ने अपनी गजल से स्पष्ट किया कि आगरा समृद्ध सोच में पीढ़ी-दर-पीढ़ी समृद्ध रहेगा। अमीर अहमद जाफरी ने एक शेर में नमाजियों का मोर्चे पर आह्वान करते हुए नया विचार दिया। रामेंद्र त्रिपाठी ने प्रधानमंत्री की पत्नी यशोदा बेन की अंतर्पीड़ा को लंबी कविता ‘मैं वंचिता हूं’ में व्यक्त किया। डा. कुसुम चतुर्वेदी ने गजल पढ़ी और ज्योत्सना शर्मा ने एक सुंदर लोरी प्रस्तुत की। डा. त्रिमोहन तरल, श्यामबाबू श्याम, शलभ भारती, युवराज सिंह, कै. व्यास चतुर्वेदी और संचालक गोपाल विनोदी ने सारगर्भित रचनाएं प्रस्तुत कीं। अध्यक्षता कर रहे जाने-माने गजलकार अशोक रावत ने बेहतरीन शेर और गजलें प्रस्तुत कीं। अंत में संस्था के अध्यक्ष सीमन्त साहू ने रससिक्त श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। मीडिया समन्वय कुमार ललित ने किया।
इस अवसर पर समाजशास्त्री डा. ब्रजेश चंद्रा, डा. डीएस गौतम, योगेंद्र दुबे, बचन सिंह सिकरवार, अनिल शर्मा, दिलीप रघुवंशी, सुनीत शर्मा, डा. विजय शर्मा, अनिल अरोड़ा, प्रकाश गुप्ता, अमित गुप्ता, मुनेंद्र शंकर त्रिवेदी, सिद्धार्थ चतुर्वेदी की उपस्थिति प्रमुख रही। शिवहरे वाणी के सोम साहू, अविरल गुप्ता, अतुल शिवहरे, अमित शिवहरे के साथ ही वीर प्रताप सिंह, अमित तोमर आदि ने व्यवस्थाएं संभालीं।
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