by Som Sahu August 26, 2017 आलेख 134
गणेश चतुर्थी से शिवहरे वाणी ने गणेश-कथा श्रृंखला शुरू की है जिसमें गणेशजी की महिमा एवं महात्म से जुड़ी एक कहानी प्रतिदिन प्रस्तुत करेंगे। आज इसी श्रृंखला के अंतर्गत प्रस्तुत कर रहे हैं तीसरी कड़ी
श्रीगणेश के जन्म को लेकर कई कथाएं हैं। वराहपुराण में दिया गया है कि भगवान शिव बड़ी तल्लीनता के साथ पंचतत्वों से गणेश का निर्माण कर रहे थे। इस कारण गणेश अत्यंत रूपवान और विशिष्ट बन रहे थे। ऐसे तो गणेशजी आकर्षण का केंद्र बन जाएंगे, इस भय और आशंका से सारे देवताओं में हड़कंप मच गया। देवताओं के इस भय को भांप शिवजी ने भांप लिया और उन्होंने बालक गणेश का पेट बड़ा कर दिया और सिर को गज का रूप दे दिया।
शिवपुराण के मुताबिक देवी पार्वती ने एक बार अपने उबटन से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। उन्होंने इस प्राणी को द्वारपाल बना कर बैठा दिया और किसी को भी अंदर न आने देने का आदेश देते हुए स्नान करने चली गईं।
संयोग से इसी दौरान भगवान शिव वहां आए। उन्होंने अंदर जाना चाहा, लेकिन बालक गणेश ने रोक दिया। नाराज शिवजी ने बालक गणेश को समझाया, लेकिन उन्होंने एक न सुनी।
इस पर क्रोधित शिवजी ने त्रिशूल से गणेश का सिर काट दिया। पार्वती को पता चला कि शिव ने गणेश का सिर काट दिया है, तो वे कुपित हुईं।
पार्वती की नाराजगी दूर करने के लिए शिवजी ने गणेश के धड़ पर हाथी का मस्तक लगा कर जीवनदान दे दिया। तभी से शिवजी ने उन्हें तमाम सामर्थ्य और शक्तियां प्रदान करते हुए प्रथम पूज्य और गणों का देव बनाया।
गणेश के पास हाथी का सिर, मोटा पेट और चूहा जैसा छोटा वाहन है, लेकिन इन समस्याओं के बाद भी वे विघ्नविनाशक, संकटमोचक की उपाधियों से नवाजे गए हैं। कारण यह है कि उन्होंने अपनी कमियों को कभी अपना नकारात्मक पक्ष नहीं बनने दिया, बल्कि अपनी ताकत बनाया। उनकी टेढ़ी-मेढ़ी सूंड बताती है कि सफलता का पथ सीधा नहीं है। यहां दाएं-बाएं खोज करने पर ही सफलता और सच प्राप्त होगा। हाथी की भांति चाल भले ही धीमी हो, लेकिन अपना पथ अपना लक्ष्य न भूलें। उनकी आंखें छोटी लेकिन पैनी है, यानी चीजों का सूक्ष्मता से विश्लेषण करना चाहिए। कान बड़े है यानी एक अच्छे श्रोता का गुण हम सबमें हमेशा होना चाहिए।
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