by Som Sahu August 15, 2017 आलेख, घटनाक्रम 128
सोम साहू
आगरा।
आज हमारी आजादी की वर्षगांठ के दिन यानी 15 अगस्त को ही इतिहास में ‘स्वतंत्रता’ के सबसे पहले उपदेशक औऱ पैरोकार भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिवस (श्रीकृष्ण जन्माष्टमी) भी हैं। हालांकि यह कोई दुर्लभ संयोग नहीं है, पहले भी ऐसा कई बार हुआ है। लेकिन इस बार यह संयोग ऐसे वक्त पर है कि जब आजादी को लेकर एक अप्रिय सी बहस छिड़ी हुई है। और, इस बहस के बीच मॉब लिंचिंग, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और हिंसा की वारदातें आएदिन हो रही हैं, लोगों के खाने-पीने और पहनने को लेकर नसीहतें दी जा रही है, और सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि समाज में सहिष्णुता कमजोर पड़ती जा रही है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि हम स्वतंत्रता दिवस पर अपने स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए आजादी के सही अर्थ और मूल्य को गहराई से समझें।
महाभारत के रणक्षेत्र में अर्जुन कौरवों के पक्ष मे अपने सगे संबंधियों को खड़ा देख विचलित हो गए थे, तब उनके सारथी बने भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेशों के माध्यम से उन्हें सही रास्ता दिखाया। फिर भी उन्होंने अर्जुन को किसी एक मार्ग पर चलने का आग्रह कभी नहीं किया। भगवान श्रीकृष्ण गीता के अठाहरवे अध्याय (अंतिम अध्याय) में अर्जुन से कहते हैं- मैंने तुम्हें सारे रास्ते बता दिए हैं, इन पर गहन विचार करो और फिर जो ठीक लगता हो (तार्कित रूप से जो ठीक हो) वह करो। विचार स्वतंत्रता का इससे बड़ा उदाहरण इतिहास में नहीं मिलता। इसी विचार स्वतंत्रता के कारण ही भारत मनीषी अपने विचारों को ऊंचाई तक ले गए। वैचारिक स्वतंत्रता ही स्वतंत्र समाज का मूल है। जिस समाज में विचार की स्वतंत्रता होती है, उस समाज में हमेशा शांति और स्थिरता का वास होता है और वह प्रगति की ओर उन्मुख होता है। स्वतंत्र भारत में अपने विचार रखने की स्वतंत्रता हर किसी को है। कोई भी व्यक्ति दूसरे पर अपने विचार नहीं थोप सकता। आइये इस स्वतंत्रा दिवस पर संकल्प लें कि हमें अपनी वैचारिक स्वतंत्रता को खोने नहीं देना है। भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश को आत्मसात करें और किसी को इस हैसियत में न आने दें कि वे अपने विचार हम पर थोप सके। चाहें कितने भी दबाव क्यों न आएं, हमें अपने और दूसरों के विचारों को तर्कों की कसौटी पर कसना है, और इस आधार पर जो ठीक लगे, वह करना है। यही तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है। भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों से प्रेरणा लें और अपनी नौकरी या व्यवसाय को समाज हित की पवित्र भावना के साथ अंजाम देते हुए अपने निर्धारित कर्तव्यों-दायित्वों का पालन करें और न्यायपूर्ण जीवन जीकर न्यायपूर्ण समाज के निर्माण में योगदान करें। यही वक्त की तकाजा है।
70 साल पहले जब हमें आजादी मिली थी, तब कुछ सपने देखे गए थे। अंग्रेजों से मुक्ति तो एक छोटा पक्ष था, बड़ा सपना था भूख, गरीबी, बीमारी, अशिक्षा से आजादी का। लेकिन आज जब हम स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, तो दो-तीन हालिया घटनाओं ने हमें झकझोर कर रख दिया है। एक घटना गोरखपुर की जहां मेडिकल कालेज अस्पताल में आक्सीजन नहीं मिलने पर कई बच्चों की जान चली गई। दूसरी घटना फतेहपुरसीकरी के एक गांव की है जहां गरीबी और बेकारी से आजिज आकर एक जवान बेटे ने कबाड़ी को प्लास्टिक की कट्टी बेचकर कुछ पैसे जुटाए और उससे जहर खरीद लिया, फिर पहले मां को जहर खिलाया और फिर खुद भी खाकर जीवनलीला समाप्त कर ली। यह कैसा समाज बना रहे हैं हम लोग, कुछ लोग आजादी को एंजॉय कर रहे हैं तो एक बड़ा तबका आज भी बुरे हालात की गुलामी में छटपटा रहा है। क्या इस आजादी की सपना देखा था हमारे शहीदों ने! बेशक, हमने तरक्की की है, ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में हम बहुत आगे बढ़ चुके हैं। स्पेस टैक्नोलॉजी में हमने कामयाबी के झंडे गाड़ दिए हैं। लेकिन जब तक जमीन के मसायल (भूख, गरीबी, बीमारी, अशिक्षा) का हल नहीं हो जाता, हमारी तरक्की बेमानी मानी जाएगी। यही आजादी का सही अर्थ है, यही धर्म है।
शिष्य अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि प्रभु! आपका धर्म क्या है? भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि मैं सारी सृष्टि का सृजनहार हूँ। इसलिए मैं सारी सृष्टि से एवं सृष्टि के सभी प्राणी मात्र से बिना किसी भेदभाव के प्रेम करता हूं। इस प्रकार मेरा धर्म अर्थात कर्तव्य सारी सृष्टि तथा इसमें रहने वाली मानव जाति की भलाई करना है। इसके बाद अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि भगवन् मेरा धर्म क्या है? भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम मेरी आत्मा के पुत्र हो। इसलिए मेरा जो धर्म अर्थात कर्तव्य है वही तुम्हारा धर्म अर्थात कर्तव्य है। अतः सारी मानव जाति की भलाई करना ही तुम्हारा भी धर्म अर्थात् कर्तव्य है। भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि इस प्रकार तेरा और मेरा दोनों का धर्म अर्थात् कर्तव्य सारी सृष्टि की भलाई करना ही है। यह सारी धरती अपनी है तथा इसमें रहने वाली समस्त मानव जाति एक विश्व परिवार है। इस प्रकार यह सृष्टि पूरी की पूरी अपनी है परायी नहीं।
आज स्वतंत्रता दिवस है और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भी। आइये ‘स्वतंत्रता के इतिहास’ और ‘स्वतंत्रता के धर्म’ के इन दो अहम मौकों पर विचार करें कि हमें कैसे भारत का निर्माण करना है,कैसा समाज बनाना है। मानवता के धरातल पर खड़े होकर खुद से तर्क-वितर्क करें, और रास्ता निर्धारित करें। याद रखें, स्वतंत्रता का अर्थ सिर्फ अधिकार प्राप्त होने से ही नहीं है,बल्कि इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण अपने कर्तव्य के निर्वहन से है।
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