by Som Sahu June 30, 2017 जानकारियां, शख्सियत 533
- 2 जुलाई को शिवहरे शिक्षा रत्न से होंगे सम्मानित
- बेमिसाल है शिक्षा के लिए प्रो. एसबी शिवहरे का संघर्ष
सोम साहू
आगरा।
शिक्षा और संघर्ष हमेशा से साथ-साथ चले हैं। हमारे ही देश में एक दौर ऐसा था जब विद्यार्थी को शिक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ता था। आज दौर है कि बच्चे की शिक्षा के लिए उनके परिजनों को कहीं अधिक संघर्ष करना पड़ता है। शिक्षा के प्रचार प्रसार का ही परिणाम है कि आज समाज का हर आम बच्चा स्कूल में दाखिला लेता है। वैज्ञानिक प्रगति के दौर में, जब हर काम का मशीनीकरण हो चुका है, रोबोटिक्स के क्षेत्र में नित-नए प्रयोग और अविष्कार हो रहे हैं, बच्चों की अच्छी से अच्छी शिक्षा पर होने वाला खर्च माता-पिता के लिए एक तरह से इनवेस्टमेंट यानी निवेश बनता जा रहा है। ज्यादा पुरानी बात नहीं है, जब शिक्षा के लिए बच्चे को कई स्तरों पर मुश्किलों और संघर्षों से गुजरना पड़ता था। इस लिहाज से आज का आम शिक्षार्थी एक कम्फर्ट जोन में हैं, और इसके लिए उसे जिंदगीभर अपने माता-पिता का आभारी रहना चाहिए। शिवहरे समाज एकता परिषद 2 जुलाई को समाज के मेधावी छात्र-छात्राओं को सम्मानित करने जा रहा है और परिषद ने इसी समारोह में प्रो. श्याम बाबू शिवहरे का सम्मान करने का निर्णय इसीलिए लिया है, ताकि आज के बच्चों को अहसास हो कि समाज में शिक्षा को इस स्तर तक पहुंचाने में पुरानी पीढ़ी ने कितना संघर्ष किया है। प्रो. श्यामबाबू शिवहरे शिक्षा के लिए संघर्ष की एक जीती-जागती सनद हैं।
प्रो. श्यामबाबू शिवहरे का जन्म 1933 में आगरा के नाई की मंडी में हुआ था। उनके पिता स्व. श्री सुखलाल शिवहरे एक भांग के ठेके पर नौकरी करते थे। छह बच्चों का लालन-पालन उनकी छोटी सी तनख्वाह में बमुश्किल होता था। तब सुखलाल शिवहरेजी ने अपने बालक श्यामबाबू का दाखिला एक स्कूल में यह सोचकर कराया, कि पांच जमात पढ़ जाएगा तो थोड़ा-बहुत लिखना पड़ना और हिसाब करना सीख लेगा, फिर किसी दुकान में नौकरी पर लगवा देंगे।
लेकिन बालक श्यामबाबू ने बचपन से ही पढ़ाई की ओर अपना रुझान दिखाया और कक्षा में हमेशा अव्वल रहे। पांचवी कक्षा के बाद पिता सुखलाल शिवहरे ने बालक श्यामबाबू की पढ़ाई छुड़वाकर उन्हें एक दर्जी की दुकान पर काम सीखने के लिए बैठा दिया।
बालक श्यामबाबू ने पढ़ने की जिद पकड़ ली, रो-रोकर बुरा हाल कर लिया। तब मां केसर देवी को लगा बच्चे का मन रखना चाहिए। उन्होंने अपने पति सुखलालजी से बात की। तय हुआ कि बालक श्यामबाबू सुबह स्कूल जाएगा और दोपहर को स्कूल से लौटने के बाद दर्जी की दुकान पर। बालक श्यामबाबू की खुशी का ठिकाना न रहा, छठवीं में दाखिला लेकर अपना पहला सपना पूरा किया।
आठवीं कक्षा तक यही रुटीन चला। सुबह स्कूल, दोपहर बाद दर्जी की दुकान और रात को पढ़ाई। उस समय घर में बिजली नहीं थी। एक सरकारी लैप पोस्ट हल्का मदन क्षेत्र में लगा था। रात को बालक श्यामबाबू की खटिया उसी लैंप पोस्ट के नीचे डाल दी जाती है। लैंप पोस्ट की रोशनी में उनकी किताबें खुल जाती थीं, अक्सर देर रात तक पढ़ाई होती थी और कभी-कभी तो अलसुबह पौ फटने तक। छठी से आठवीं तक बालक श्यामबाबू ने हर कक्षा अव्वल पास की।
आठवीं पास होते ही पिता सुखलाल को लगा कि घर के खर्चे बढ़ गए हैं, बड़े बेटे यानी श्यामबाबू का फर्ज बनता है कि अब कुछ कमाई करे, वैसे भी आगे की पढ़ाई हम झेल नही सकते..फिर क्या करेगा पढ़कर, दर्जी का काम तो अब सीख ही गया है। लेकिन, पढ़ाई की ओर बालक श्यामबाबू की ललक और लगन ने सीधे तौर पर उनके विरोध को हतोत्साहित कर दिया। अंत में उन्होंने लाला गोपीचंद से बात की, जिनकी भांग की दुकान पर वे नौकरी करते थे। लाला गोपीचंद ने सलाह दी कि बच्चे को पढ़ने दें, उसका कमाना जरूरी है तो उसे मेरे नंद टाकीज भेज दिया करो। हर शो से आधे घंटे पहले नंद टाकीज में आ जाए और टिकट बांट दे। पैसा मिल जाया करेगा, कम से कम अपनी पढ़ाई का खर्च को उठा ही लेगा।
ऐसा ही हुआ। बालक श्यामबाबू ने नौवीं कक्षा में दाखिला लिया और नंद सिनेमा के टिकट बांटने शुरू कर दिए। हर रोज दोपहर, मैटनी, शाम और रात के शो से आधे घंटे पहले टाकीज पहुंचना होता था। इसके लिए कई दफा क्लास भी छोड़नी पड़ती थी। हाई स्कूल, इंटरमीडिएट, बीएससी, एमएससी..सभी कक्षाएं नंद सिनेमा में टिकट बांटते हुए अव्वल दर्जे में पास की। उनकी मेधा से प्रभावित होकर आगरा कालेज प्रशासन ने एमएससी के बाद उन्हें वहीं कैमिस्ट्री के लेक्चरर पद पर नियुक्त कर दिया, जहां से वे कैमिस्ट्री के हैड ऑफ द डिपार्टमेंट के पद से रिटायर हुए।
प्रो.श्यामबाबू शिवहरे कैमिस्ट्री के क्षेत्र में एक बड़ा नाम रहे। उनकी लिखी कई किताबें आज भी विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं। प्रो. श्यामबाबू शिवहरे ने आगरा शहर को कई नामी डाक्टर दिए जो आज भी उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। प्रो. श्यामबाबू ने धाकरान चौराहे पर अपने पिता स्व. सुखलाल शिवहरे की स्मृति में सुखलाल शिवहरे जूनियर हाईस्कूल शुरू किया, इसके बाद स्कूल की एक अन्य शाखा केदारनगर मे स्थापित की, जहां वे इन दिनों रहते हैं।
अपनी अस्वस्थता के बावजूद प्रो. श्यामबाबू शिवहरे ने सम्मान समारोह में आने की स्वीकृति प्रदान की है, इसके लिए शिवहरे समाज एकता परिषद और शिवहरे वाणी उनकी आभारी है।
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