November 21, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
साहित्य/सृजन

कथा काव्यः मंदिर श्री राधाकृष्ण

by Som Sahu May 27, 2017  सृजन 211

श्री त्रिलोकीनाथजी गुप्ता की लिखी यह कविता 1974 में प्रकाशित पत्रिका शिवहरे संदेश से ली गई है। श्री त्रिलोकीनाथजी उस  समय 23/191 बल्देवगंज, लोहामंडी में निवास करते थे, और आलमगंज में मंदिर श्री राधाकृष्ण के निर्माण के पीछे तत्कालीन युवा पीढ़ी की संघर्षयात्रा के गवाह ही नहीं, बल्कि सहयात्री भी थे। चूंकि 4 जून को मंदिर श्री राधाकृष्ण की कार्यकारिणी के अध्यक्ष पद का चुनाव होना है, लिहाजा शिवहरे वाणी यह कविता आप लोगों के समक्ष इस उद्देश्य से प्रस्तुत कर रही है कि हम बुजुर्गों के उस श्रम, त्याग औऱ समर्पण के भाव का अहसास कर सकें जो मंदिर निर्माण के लिए उन्होंने किया। बेशक इस संघर्ष गाथा की इतनी संक्षिप्त औऱ सुंदर प्रस्तुति संभव नहीं थी। बेशक यह रचना श्री त्रिलोकीनाथजी की काव्य कुशलता को भी दर्शाती है।

 

थी सबके मन मे लालसा, था भारी अरमान

आलमगंज के दरम्यान, बने कोई देवस्थान।

बने देवस्थान सभी ने कोशिश कीनी भारी,

पैसे भी एकत्र किए पर जगह की लाचारी।

बहुत दिनों बाद खुश भए राधारमन बिहारी

सेठ चिरंजीलाल से सब मिल अरज गुजारी।

अब आखिरी वक्त आपका मानो बात हमारी,

मंदिर बनवा दो बस्ती में सब रहेंगे आभारी।

यश रहे आपका और बहुत दिनों तक नाम,

की कृपा भगवान ने आलमगंज के दरम्यान।

लाला दुलीचंद के पुत्र के ह्रदय विराजे आन,

ह्रदय विरोज आन ध्यान से सुनी अरज हमारी।

श्री राधाकृष्ण मंदिर की सब मिल कीनी तैयारी,

चंदा किया घर-घर से नहीं किनी जरा भी देरी।

लाला चिरंजीलाल ने दान लिख दी जमीन सारी

लड़कों ने तोड़-फोड़ झट की मंदिर की तैयारी।

ले आए मूर्ति मथुरा से तुरंत जाकर उसे पधारी

की स्थापना सभी ने मिलकर पूजा करें पुजारी।

हो रही आरती मंदिर में सब जन खुशी मनाते हैं

लाल दुलीचंद स्वर्ग से देव फूल बरसाते हैं।

 

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