डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे की कहानी-‘एक बार’
by Som Sahu May 21, 2017 सृजन 741
जबलपुर की कहानीकार डॉ.राजलक्ष्मी शिवहरे की यह कहानी दर्शाती हा कि व्यक्ति का अतीत जीवी होना दूसरों के वर्तमान को किस कदर कष्टदायी बना देता है….और तब उनसे निजात पाने का एक ही रास्ता है….भविष्य के सुनहरे सपने। पढ़िये मन को गुदगुदा देने वाली कहानी…
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‘अरे इस तरह विचारों मे क्या सोच रहे हो?’ मोहन, आकाश के सामने की कुर्सी पर बैठता पूछ रहा था। वह जैसे ही कॉफी पीने रेस्टोरेंट में आया तो एक कोने की टेबल पर उसे आकाश बैठा दिखा।
’कुछ नहीं यार।’ वैसे परेशानी आकाश के चेहरे पर टपक रही थी। उसने राख ऐशट्रे मे बुझाई
’क्या ये सब सिगरेंटे तुम्हीं ने पी थी?’ ऐशट्रे टुकड़ों से भरा था।
‘क्या बात है आकाश, क्या ऑफिस में किसी से कुछ?’
’नहीं यार…ऑफिस में सब ठीक है।’
’तो फिर क्या बात है…भाभी से तुम परेशान हो नहीं सकते, अभी एक महीन पहले ही तो तुम्हारी शादी हुई है।’
’एक महीने पहले शादी होने से क्या होता है?’ मोहन की समझ में बात आई।
’क्या भाभी से परेशान हो?’
’नहीं यार, उससे नहीं…. उशकी एक बार वाली बेमतलब की बातों ने परेशान कर दिया है।’ उसने सिगरेट केस से नई सिगरेट निकाली।
’एक बार वाली बेमतलब की बातें…। यार समझा नहीं।’ माथे पर बल डालते हुए मोहन ने पूछा।
’हां यार ’एक बार’, उससे कुछ भी बात करने की कोशिश करता हूं यह ’एक बार’ रास्ते में टांग अड़ा देता है।’
मोहन की समझ में बात नहीं आ रही थी।
’अब परसों की बात लो। ऑफिस के लिए तैयार हो रहा था, कमीज में पता नहीं कहां से लाल चीटी पहुंच गई। जैसे ही पहनी वैसे ही काट खाया। उसकी जलन से मैं चीख दिया। वह दौड़ते हुए आई और पूछा क्या हो गया? जब मैंने कहा कि चीटीं ने काटा तो बेतहाशा हंसने लगी। बांह पर क्रीम लगाते हुए कहा-जानते हो ’एक बार’ क्या हुआ था, मां कहीं गई थीं, तब मैं छोटी थी। मौसी का लड़का है ना प्रमेंद्र वह मेरे पास ही सो रहा था। मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैंने सोचा क्या किया जाए? उसकी बांह पर एक जोरदार चुटकी ली और जल्दी से पलंग पर सो गई। वह बेचारा आंख उठकर बैठ गया। उसे मुझे जागते देखकर अपनी बांह मलते हुए पूछा बादल क्या तुम्हारे यहां लाल चीटियां हैं? वह पुरानी बातो को याद करके हंस रही थी। मैने मायूस बनकर कहा…क्यों क्या हुआ तुम्हें क्या चीटी ने काट लिया। हां वह बेचारा फिर दो-चार घंटे सो नहीं सका।’
’जानते हो मोहन यह बात जो मैंने तुम्हें दो-चार मिनटों में बताई उसने कितनी देर में बताई..थी।’
’कितनी देर में?’ मोहन के ओठों पर मुस्कुराहट आकर खेलना चाहती थी किंतु उसे भय था इससे आकाश चिढ़ जाएगा।
’पूरे एक घंटे में और उस दिन ऑफिर पूरे पैंतालीस मिनट लेट पहुंचा।’
’अच्छा…।’ लाख दबाने पर भी हल्के से वह मुस्करा दिया।
’कल क्या हुआ जानते हो?’
’क्या हुआ?’
’फिर वही ’एक बार’ और क्या होगा। मैं बाजार से गुजर रहा था, मुझे एक सुंदर सी साड़ी दिखी तो मैंने सोचा चलो पहली बार उसके लिए कुछ लिया जाए। बड़े रोमांटिक मूड में साड़ी लेकर घर पहुंचा। सोचा था उसे पहनाकर देखूंगा कैसी लगती है।’ कहकर आकाश चुप हो गया।
बैरा ने लाकर दो कॉफी रख दीं थीं। आकाश परेशानी बताने में इस कदर खोया था कि उसे पता भी नहीं चला था कि कब बैरा कॉफी का आर्डर लेकर चला गया था।
कॉफी की चुस्की लेते हुए आखिर मोहन से सब्र नहीं हुआ और पूछ बैठा-’फिर क्या हुआ?’
’होता क्या यार, फिर वही ढाक के तीन पात ’एक बार’ ने फिर मेरा जमा जमाया मूड उखाड़ दिया।’ आकाश ने मुंह बिगाड़ कर इस तरह कप अपनी ओर बढ़ाया कि मोहन को लगा यह पीने के लिए नहीं फेंकने के लिए अपनी ओर बढ़ा रहा है।
’ जैसे ही मेरे हाथ में पैकेट देखा बड़ी खुश हुई। उसने पैकेट खोलकर देखा तो कहा हाय कितनी प्यारी साड़ी है ना, आपकी पसंद बिल्कुल पापा से मिलती है। जानते हैं ’एक बार’ क्या हुआ था। जो हाथ मेरे उठे थे वह फिर नीचे गिर गए…सारा मूड खत्म हो गया किंतु वह वर्तमान को भूले अतीत मे खोई थी। बिना मेरी ओर ध्यान दिए बोले जा रही थी-
’एक दिन मैं सबेरे उठी, घर पर सन्नाटा था। मम्मी-पापा की वह हंसी जो सुबह सबेरे रोज मुझे आकर उठाती…कहीं नहीं थी। मम्मी अपने कमरे में और पापा अपने कमरे में थे, मैं बड़ी देर तक अपने कमरे में बैठी सोचती रही क्या करूं? आखिर धीमे से बिना मम्मी को पता चले पापा के कमरे में गयी तो वे बेचारे उदास बैठे थे…मैंने उसने पूछा पापा क्या बात है? तब पापा ने बताया रात क्लब में उन्हें ज्यादा देर लग गई थी इसलिए मम्मी उनसे गुस्सा हैं। तब मैंने पापा से कहा था शाम को जब वे ऑफिस से लौटें तो कोई अच्छी सी चीज मम्मी के लिए लेते आएं वे खुश हो जाएंगी।’
’फिर जानते हो पापा शाम को ठीक उसी तरह की साड़ी लेकर लौटे थे। जब उसने अपनी बात खत्म करके मेरी ओर देखा तो कहा क्या बात है क्या आपकी तबियत ठीक नहीं…मैं भी क्या बात ले बैठी। चलिये आपके लिए चाय बनाऊं। कहकर वह साड़ी वहीं टेबल पर रखकर चली गई और मैं पलंग पर लेटा रहा। सारा मूड खराब करके रख दिया।’ यह कहकर उसने बुझ गई सिगरेट को ऐशट्रे में मसल दिया।
’इसमें परेशान होने की क्या बात है आकाश। उस बेचारी को अपनी पुरानी बातें याद आती होंगी।’
’लेकिन उसकी पुरानी बातें ही तो मेरा मूड उखाड़ देती हैं।’
शाम ढल रही थी। मोहन सोच रहा था- शीला उसका इंतजार कर रही होगी, पर आकाश की परेशानी का हल ढूंढना बाकी था। उसे एक उपाय सूझा और उसने आकाश को जो कुछ बताया उससे आकाश का चेहरा सामान्य स्थिति में आ गया।
’चलें शायद तुम्हारा यह उपाय मेरा मूड बना दे।’
दोनों ने आकर अपने-अपने स्कूटर स्टार्ट किए और दो दिशाओं में चले गए। घर पहुंचकर आकाश ने देखा, बादल वही कल वाली साड़ी पहनकर उसका इंतजार कर रही है।
’आज आपको देर हो गई।’ स्कूटर रखकर आते ही बादल ने पूछा।
’हां आज ऑफिस में काम कुछ ज्यादा था।’ कहकर उसने अपना बैग बादल को थमा दिया और उसे एक हाथ से बांधे अंदर आया।
’चलिये हाथ-मुंह धोकर चाय पी लीजिए।’
गरम-गरम कटलेट और चटनी देखकर आकाश का मूड बहुत हद तक ठीक हो गया।
’एक और लो ना।’ कहते हुए बादल ने जबरदस्ती एक कटलेट उसकी प्लेट में डाल दिया।
टिकोजी को हटाकर अलग रखते हुए बादल ने कहा- ’जानते हैं आज क्या हुआ?’
’क्या हुआ?’ आकाश ने कटलेट में चटनी लगाते हुए पूछा।
’सतीश उपाध्याय हैं ना अपने पड़ोसी, उनके घर लड़का हुआ।’
’अच्छा चलो उन्हें बधाई दे आएं।’ चाय का कप अपनी ओर बढ़ाते हुए आकाश ने कहा।
’चाय पीने के बाद चलेंगे, ’एक बार’ जानते हो क्या हुआ था?’
आकाश के दिमाग में चीटियां सी रेंगने लगी थीं। मन ही मन गाली दी उसने। ऐसी की तैसी साला ’एक बार’ हमेशा बीच में कूद जाता है।
’जब मैं बहुत छोटी थी मम्मी घर में नहीं थी। पापा से पूछा तो उन्होंने बताया कि मम्मी एक छोटा सा भैया लेने अस्पताल गई हैं। जब मम्मी बाजार से लौटीं तो साथ में छोटा सा भैया था, मैं बार-बार मम्मी-पापा से पूछती रही जब अस्पताल में इतने प्यारे-प्यारे भाई मिलते हैं तो आप पहिले से क्यों नहीं ले आईं।’ अपनी चाय समाप्त करके कप-प्लेट समेटते हुए बादल ने कहा।
’अब जानती हो क्या होगा?’ किसी तरह अपना मूड संभालते हुए आकाश ने कहा- ’ ’एक बार’ जितनी भी बातें हुई वह तो सब तुम्हें याद हैं किंतु ’इस बार’ क्या होगा जानती हो….’
’अपने घर में भी ’एक बार’ इसी तरह….सतीश उपाध्याय के घर की तरह…।’
’ओह आप बड़े वो हैं।’ कहकर बादल वहां से भाग गई। मोहन के बताए उपाय ने आकाश का मूड संवार दिया।
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