October 7, 2025
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाज समाचार

63 वर्षों से सिर-माथे बप्पू का आदेश; रावण दहन से पहले राधाकृष्ण के दरबार में आते हैं ‘भगवान राम’; ऐतिहासिक शोभायात्रा में सिर्फ शिवहरे समाज को मिलता है यह सम्मान

आगरा।
आगरा में शिवहरे समाज की धरोहर राधाकृष्ण मंदिर में दशहरा पर हर बार की तरह इस बार भी बीते 63 साल से चली आ रही एक गौरवशाली परंपरा का पूरी शिद्दत से निर्वहन किया गया जो बुजुर्गों के प्रति सम्मान की जीती-जागती मिसाल है। सेंट जोंस चौराहा पर होने वाले ‘रावण दहन’ के लिए जटपुरा स्थित राममंदिर से निकली भव्य शोभायात्रा में भगवान राम, लक्ष्मण, हनुमान और उनके साथ वानर सेना के स्वरूपों ने मंदिर परिसर में ‘अनिवार्य’ विश्राम लिया। इस दौरान मंदिर प्रबंध समिति के पदाधिकारियों ने स्वरूपों की आरती की, मेवा-दूध से स्वागत किया और भेंट देकर श्रद्धापूर्वक विदा किया।

इस परंपरा की नींव स्व. श्री चिरंजीलालजी शिवहरे ‘ईंट-भट्टे वाले’ के एक आदेश पर पड़ी थी और तब से अब तक जारी है। बता दें कि 1962 में ही राधाकृष्ण मंदिर का निर्माण हुआ। स्व. श्री चिरंजीलालजी शिवहरे ने 1962 में मंदिर निर्माण के लिए अपनी जमीन दान की थी, और रातों-रात वृंदावन से राधाकृष्ण की मूर्ति लाकर यहां स्थापित करा दी गई। स्व. श्री चिरंजीलालजी शिवहरे लोकप्रिय समाजसेवी थे, लोग उन्हें ‘बप्पू’ कहा करते थे। पूरे लोहामंडी क्षेत्र के लोगों के दिल में उनके प्रति विशेष आदर और सम्मान का भाव था। शिवहरे समाज ही नहीं, अन्य समाजों के लोग भी बप्पू का इतना आदर करते थे कि उनकी कोई बात, सुझाव या कोई इच्छा उनके लिए आदेश बन जाती थी।

बुजुर्गों के मुताबिक, मंदिर निर्माण के बाद पहले दशहरे पर बप्पू ने जटपुरा के राममंदिर से निकलने वाली शोभायात्रा के प्रबंधकों से इच्छा जाहिर की, कि नवनिर्मित राधाकृष्ण मंदिर परिसर में शोभायात्रा को विश्राम दिया जाए। शोभायात्रा के प्रबंधकों के लिए मुश्किल खड़ी हो गई। क्योंकि सालों से यह शोभायात्रा जटपुरा मंदिर से शुरू होती तो कहीं विश्राम किए बिना क्षेत्र का भ्रमण करते हुए सेंट चौराहा पहुंचती थी और शोभायात्रा में शामिल भगवान के स्वरूप कहीं भी विश्राम नहीं लेते थे। लेकिन बप्पू के कहे को कौन टाल सकता था भला। लिहाजा उस साल पहली बार यह शोभायात्रा राधाकृष्ण मंदिर परिसर में रुकी। तब से अब तक 63 साल हो गए। लेकिन आज भी बप्पू के ‘आदेश’ का अनुपालन हो रहा है।

2 अक्टूबर को दशहरे पर यह शोभायात्रा शाम करीब 7 बजे जटपुरा से शुरू हुई जिसमें 50 से ज्यादा झांकियां थीं जो एक-दूसरे से थोड़ी-छोड़ी दूरी बनाकर अपने-अपने बैंडबाजों की धुनों पर आगे बढ़ रही थीं। शोभायात्रा की पहली झांकी राधाकृष्ण के मंदिर के आगे से रात करीब 9 बजे गुजरी। सबसे आखिरी झांकी में राम-लक्ष्मण और हनुमानजी रथ पर सवार थे, रथ के आगे वानर सेना रावण की राक्षसी सेना से युद्ध करती आगे बढ़ रही थी। रात करीब 10.30 बजे यह झांकी राधाकृष्ण मंदिर पहुंची तो मंदिर अध्यक्ष श्री अरविंद गुप्ता, वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री अशोक शिवहरे अस्सो, महासचिव श्री मुकुंद शिवहरे, कोषाध्यक्ष श्री कुलभूषण गुप्ता ‘रामभाई’ के साथ समिति के वरिष्ठ पदाधिकारी श्री संजय शिवहरे भगवान के स्वरूपों को रथ से उतारकर मंदिर लेकर आए, जहां राधाकृष्ण के दरबार के सामने उनके लिए सजाए विशेष आसन पर उन्हें बिठाकर उनकी पूजा अर्चना की। मंदिर परिसर में भगवान के स्वरूपों, वानर सेना व राक्षसी सेना के स्वरूपों और शोभायात्रा के पदाधिकारियों का स्वागत गरम-गरम मेवा-दूध से किया गया। यहां कुछ देर विश्राम के बाद स्वरूप प्रस्थान करने लगे तो उन्हें लिफाफे में भेंट प्रदान कर विदा किया गया। इस दौरान राधाकृष्ण मंदिर समिति के सदस्य और खासी संख्या में समाजबंधु उपस्थित रहे।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video