झांसी।
‘जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारो..’ कहने को ये एक फिल्मी गाने के शब्द हैं, लेकिन भारत जैसे देश में सच्चाई को बयां करते हैं, और इस हकीकत को ललितपुर की नेहा से बेहतर कौन जान सकता है भला। ललितपुर जिले के गांव जमालपुर की 18 वर्षीय नेहा शिवहरे कभी एक गंभीर बीमारी से पीडि़त थी, मजदूर पिता की इतनी सामर्थ्य नही थी कि उसका इलाज करा सकें। नेहा तिल-तिल कर मौत की ओर बढ़ रही थी। लेकिन, झांसी के कलचुरी समाजबंधुओं की सहायता से जिंदगी उस पर ऐसी मेहरबान हुई, कि आज वह पूरी तरह स्वस्थ हो चुकी है।
ललितपुर के पोस्ट बांसी के तहत आने वाले गांव जमालपुर में रहने वाले भागीरथ शिवहरे पेशे से मजदूर हैं। उनकी पांच बेटियों में से तीसरे नंबर की बेटी नेहा शिवहरे लगातार कमजोर होती जा रही थी। भागीरथ शिवहरे अपनी क्षमता के हिसाब से उसका उपचार करा रहे थे लेकिन नेहा की हालत कोई सुधार नहीं आया। पूरा परिवार बेटी को बचा न पाने से हताश था। इसी बीच नेहा की बीमारी की जानकारी जमालपुर के ही महेश शिवहरे और दिनेश शिवहरे ने ‘कलचुरी कलार समाज, झांसी’ संस्था के अध्यक्ष ह्रदेश राय और तत्कालीन महासचिव सालिगराम राय को दी। दोनों पदाधिकारियों ने नेहा और उसके परिजनों को झांसी बुलवा लिया। जुलाई 2016 को नेहा के परिजन उसे लेकर ह्रदेश राय और सालिगराम राय से मिले। उस समय 14 साल की नेहा का वजन मात्र 14 किलो था, हाथ-पांव किसी तीन साल के बच्चे के तरह बेहद पतले थे, पेट बहुत ज्यादा बाहर निकला हुआ था। सांसें बेहद कमजोर थीं, ऐसा लग रहा था कि अब नहीं, तो तब…यह जिंदा बचेगी नहीं।
माता-पिता की विपन्नता और लाचारी को देखते हुए संस्था ने नेहा का उपचार कराने की ठानी। संस्था के पदाधिकारियों नेहा को झांसी के सिविल अस्पताल ले गए जहां कलचुरी समाज के चिकित्सक डा. डीएस गुप्ता (शिवहरे) पोस्टेड हैं जिनकी छवि अपने पेशे के प्रति बेहद ईमानदार डाक्टर के रूप में है। डा. गुप्ता ने नेहा की सभी जाचें कराईं, पता चला कि नेहा की किडनी लगभग फेल हो चुकी थी, फेफड़े पानी भरने से गलने लगे थे। नेहा सिविल अस्पताल में दस दिन भर्ती रही, इसके बाद डा. गुप्ता ने उसे मेडिकल कालेज रैफर कर दिया। मेडिकल कालेज में नेहा के फेफड़े से पानी निकाला गया। उसे 6-7 बोतल खून चढ़ाया गया, जिसकी सारी व्यवस्था ‘कलचुरी कलार समाज, झांली’ ने की। इसके बाद भी डाक्टर इस बात की गारंटी लेने के लिए तैयार नहीं थे कि वे नेहा को बचा पाएंगे या नहीं।
लेकिन, ‘कलचुरी कलार समाज, झांसी’ ने उम्मीद नहीं छोड़ी। मेडिकल कालेज में करीब महीना-डेढ़ महीने तक नेहा को भर्ती रखवाया, उसकी दवाइयों और तीमारदार परिजनों के खाने-पीने का इंतजाम करते रहे। करीब डेढ़ महीने बाद नेहा की स्थिति सुधरने लगी। चिकित्सकों का कहना था कि दवाइयां लंबी चलेंगी, तभी कुछ कहा जा सकता है। नेहा को मेडिकल कालेज से छुट्टी दे दी गई, लेकिन तब से उसका नियमित परीक्षण और दवाएं चलीं, जिसकी व्यवस्थाएं ह्रदेश राय और सालिगराम राय द्वारा ‘कलचुरी कलार समाज, झांसी’ और आइका के सहयोग से कराई जाती रहीं।
बीते दिनों सालिगराम अपने परिवार के साथ किसी व्यक्तिगत कार्य के सिलसिले में जमालपुर पहुंचे तो वहां उनकी मुलाकात महेश शिवहरे और दिनेश शिवहरे से हुई जिन्होंने उन्हें नेहा शिवहरे के बारे में जानकारी दी थी। दोनों समाजबंधु सालिगराम राय को नेहा शिवहरे के घऱ ले गए। पहले-पहले तो वह नेहा को देखकर पहले तो पहचान ही नहीं पाए। नेहा अब पूरी तरह स्वस्थ और हष्ट-पुष्ट है, उसके चेहरे पर चमक और आंखों में जीने की उमंग साफ नजर आती है।
नेहा की कहानी इस हकीकत को बया करती है कि सरकार की ओर से समाज के लिए कल्याणकारी पहल तब तक आगे नहीं बढ़ सकती, जब तक कि हम यानी आम नागरिक उसे दिल से आगे न बढ़ाएं। ‘कलचुरी कलार सर्ववर्गीय समाज’ ने एक बेटी को बचाने की जो मुहीम छेड़ी, वह निसंदेह प्रशंसनीय है। स्नेह, हमदर्दी और सामाजिकता की ऐसी मिसालें भारत में ही मिलती हैं, भारत मे ही मिल सकती हैं..क्योंकि यहां लोगों के दिलों में जिंदा है करुणा का भाव…अब तक।
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