भोपाल।
आज बसंत पंचमी है, विद्या की देवी मां सरस्वती की आराधना का दिन। इसीलिए आज बात करेंगे शिक्षा की, और ‘मां सरस्वती’ की। आपको एक ऐसी शिक्षिका से मिलवाते हैं जिनसे अपने बच्चों (स्टूडेंट्स) के कष्ट को देखा नहीं गया और अपनी जमापूंजी में से 12 लाख रुपये खर्च करते अपने सरकारी स्कूल में मध्याह्न भोजन कक्ष का निर्माण करवा दिया। अब इस कक्ष में स्कूल के नन्हे-मुन्ने बच्चे तसल्ली से बैठकर मध्याह्न भोजन करते हैं।
यह हैं भोपाल की श्रीमती द्रोपदी चौकसे। बाबडिया कला के सरकारी सकूल में हिंदी और संस्कृत पढ़ाती हैं। स्कूल की बिल्डिंग काफी छोटी है जिसकी वजह से दो शिफ्टें लगती हैं। इसके बावजूद बच्चों को मध्याह्न भोजन के लिए काफी परेशान होना पड़ता था। बच्चों को कभी ग्राउंड में तो कभी कक्षाओं के सामने गैलरी में, कभी कड़ी धूप में भी, जहां भी जगह मिलती, वहीं भोजन करना पड़ता था।
बच्चों के इस कष्ट से द्रोपदी का मन को कचोटता था। मन दुखी होता था कि हम साक्षरता और शिक्षा का स्तर बढ़ने पर नाज कर सकते हैं, लेकिन हकीकत यह भी है कि संरचना की दृष्टि से आज भी हमारे स्कूल काफी पिछड़े हुए हैं, हम अपनी भावी पीढ़ी को शिक्षा की बेहतर सहूलियतें तक उपलब्ध नहीं करा पाए हैं। यही सोचते हुए एक दिन उन्होंने अपनी जमा पूंजी से बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन कक्ष का निर्माण कराने का फैसला कर लिया।
द्रोपदी चौकसे ने पहले अपने परिवार में इस बारे में बातचीत की। उनके पति श्री जयनारायण चौकसे जो मध्य प्रदेश इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड से रिटायर हुए हैं, ने इस पुण्य कार्य के लिए तत्काल हामी भर दी। अमेरिका में जॉब कर रहे बड़े बेटे नवीन चौकसे और शिल्पा ने भी मां की इच्छा का सम्मान किया। मुंबई में जॉब कर रहे छोटे बेटे सुनील चौकसे और बहू नंदिता को भी इस पर कोई आपत्ति नहीं थी।
फिर क्या था, परिवार को राजी कर श्रीमती द्रोपदी चौकसे ने स्कूल प्रबंधन से बात कर बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन कक्ष बनवाने की बात कही और इसके लिए 12 लाख रुपये की जमा-पूंजी प्रबंधन को सौंप दी। 1100 वर्गफुट में यह भोजन कक्ष 8 महीने में बनकर तैयार हो गया। श्रीमती द्रोपदी चौकसे बताती हैं कि अब बच्चों को तसल्ली से बैठकर भोजन करते देखती हूं तो मन बहुत प्रसन्न होता है, भरोसा होता है कि यह भोजन बच्चों के अंग लगेगा, शिक्षा के प्रति उनमें लगाव पैदा होगा। रायसेन जिले के बगसपुर गांव में जन्मी श्रीमती द्रोपदी चौकसे जल्द ही रिटायर हो जाएंगी लेकिन उनके द्वारा कराए निर्माण से आने वाली पीढ़ियां लाभ लेती रहेंगी।
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