लखनऊ।
उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां जोर पकड़ रही हैं। राजनीतिक दलों ने जातीय वोट बैंकों को साधने की कवायद शुरू कर दी है और, राजनीतिक दलों के एजेंडे में ओबीसी वैश्य समाज भी शामिल है। दूसरी तरफ विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से निरंतर अनदेखी से आहत ओबीसी वैश्य समाज इस बार उन्हें सबक सिखाने को तैयार बैठा है, और उसकी कोशिश किसी पार्टी के साथ होने के बजाय अपना खुद का राजनीतिक वजूद दिखाने की है। सूत्रों की मानें, ओबीसी वैश्य के सभी वर्गों के शीर्ष संगठनों ने सहभागिता के आधार पर मिलकर एक राजनीतिक पार्टी बनाने पर विचार-विमर्श शुरू कर दिया है। जाहिर है, कि तमाम स्तरों पर विमर्श के बाद यदि ऐसा कोई राजनीतिक दल आकार लेता है तो सर्वाधिक जनसंख्या के आधार पर कलवार-कलार-कलाल समाज की उसमें सबसे अहम भूमिका होगी।
सोशल वर्कर श्री कृष्णकांत जायसवाल (मुंबई) ने शिवहरेवाणी को ओबीसी वैश्य समाज के बीच राजनीतिक दल के गठन को लेकर विचार-विमर्श शुरू होने की जानकारी दी है। मूलतः यूपी के भहोई निवासी श्री कृष्णकांत जायसवाल का कहना है कि 425 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में अब तक की लगभग सभी सरकारों ने ओबीसी वैश्य समाज की भागीदारी को नकारा है, और वर्तमान योगी सरकार भी इसमें पीछे नहीं है। ओबीसी वैश्य समाज अब अपनी संख्या के आधार पर सम्मानजनक प्रतिनिधित्व चाहता है, और इसके लिए उसका एकजुट होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि यूपी में ओबीसी वैश्य समाज (कलार, कलाल, कलवार, पोरवाल, गुलहरे, कसौधन, गहोई, केसरवानी, अग्रहरि, स्वर्णकार, तैलिक वैश्य समेत कई वैश्य जातियां) की संख्या कुल आबादी का 15 प्रतिशत से अधिक है।
वहीं, अखिल भारतीय जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा के राष्ट्रीय महासचिव श्री अटल कुमार गुप्ता ने ओबीसी वैश्य समाज के राजनीतिक दल के गठन को लेकर बातचीत चलने की तस्दीक तो की लेकिन कहा कि यह अभी बहुत प्रारंभिक स्तर पर है। बातचीत कहां तक आगे बढ़ती है, उसका क्या परिणाम निकलता है, इसके बारे में अभी से कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन, यह सत्य है कि इन राजनीतिक दलों ने ओबीसी वैश्य समाज को छला है, उन्हें टिकट वितरण में उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया और सरकारों में आने के बाद नियुक्तियो और मनोनयनों में इस समाज की अनदेखी की। राजनीतिक दलों के इस रवैया से ओबीसी वैश्य समाज क्षुब्ध है। अब समय आ गया है कि वह अपना राजनीतिक दल बनाए। अपने स्वाभिमान और हक की रक्षा के लिए ओबीसी वैश्य समाज के लोग अलग-अलग राजनीतिक खेमों को छोड़कर एक प्लेटफार्म पर एकजुट होंगे।
वहीं महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्री अजय कुमार जायसवाल (लखनऊ) ने ऐसे किसी प्रकार की बातचीत की जानकारी होने से इनकार करते हुए कहा कि यदि ऐसा है तो वह स्वागतयोग्य है लेकिन, यह आसान काम नहीं है। ओबीसी वैश्य समाज को पहले अपने अंदर के मतभेदों को दूर करना होगा। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि दूसरों की तो छोड़िये ओबीसी वैश्य के सबसे बड़े घटक कलचुरी वंश (कलार, कलाल, कलवार) के ही विभिन्न वर्गों के बीच काफी मतभेद नजर आते हैं, इसीलिये पहले जायसवाल, शिवहरे समेत कलचुरी वंश के विभिन्न वर्गों को आपस में मतभेदों और दूरियों को पाटने का प्रयास करना चाहिए। इसके बगैर एकजुटता की किसी भी कवायद का अंजाम तक पहुंचना नामुमकिन ही होगा।
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