हिंडोली।
वह जमाना गुजर गया जब लोग मानते थे कि पुत्र के बिना गति नहीं होती। वक्त के साथ समाज की सोच भी बदल रही है, कलवार समाज भी इस प्रगतिशील परिवर्तन के साथ कदमताल कर रहा है। राजस्थान में बूंदी जिले के हिंडोली कसबे में नजारा सामने आया, जिसे देख लोग भावुक तो हुए ही, साथ ही बेटियों पर गर्व का अहसास भी हुआ। सात बेटियों ने अपने पिता के पार्थिव शरीर को अपने कंधों पर अंतिम यात्रा कराई और उनकी चिता को मुखाग्नि दी।
हिंडोली में मोहल्ला बाबाजी का बरड़ा निवासी 95 वर्षीय रामदेव कलाल का निधन बीती 25 जनवरी को हो गया था। पेशे से किसान थे, सात बेटियां थीं, कोई पुत्र नहीं था। पिता के निधन का समाचार पाकर सातों बेटियां वहां पहुंच गईं। मुखाग्नि कौन देगा, यह सवाल जब समाज के बुजुर्गों ने उठाया तो बेटियों ने पिता का अंतिम संस्कार स्वयं करने की इच्छा व्यक्त की। हिंडोली के कलाल समाज के गणमान्य एवं बुजुर्ग लोगों आपस में विचार-विमर्श किया और फिर इस पर राजी हो गए। रामदेव कलाल की सातों पुत्रियों कमला, मोहिनी, गीता, मूर्ति, पूजा, श्यामा व ममता ने अपने पिता की अर्थी को कंधे पर उठाकर कलाल समाज के मुक्तिधाम तक की यात्रा की। समाजबंधु भी यात्रा में साथ रहे। अंतिम यात्रा जहां-जहां से गुजरी, नजारा देखकर लोग भावुक हो गए। मुक्तिधाम में सातों बहनों ने मिलकर पिता की चिता मुखाग्नि दी।
श्री रामदेव कलाल की देखभाल उनकी सातों बेटियां मिलकर करती थीं। कभी कोई बेटी उन्हें अपने साथ ले जाती, तो कभी कोई बेटी। बड़ी बेटी कमला देवी कलाल ने बताया कि हमारा भाई नहीं थी, मगर पिता ने हमें भाई की कमी कभी महसूस नहीं होने दी और हाथ से हाथ मिलाकर बराबरी करना सिखाया। आज उन्हीं की दी हुई शिक्षा और प्रेरणा है कि हम सातों बहनों ने मिलकर उनका अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया। हिंडोली के समाज बंधुओं ने बेटियों के निर्णय की सराहना करते हुए कहा कि पुरानी परंपराओं को तोड़कर वर्तमान के अनुसार समाज को दिशा देनी आवश्यक है। पुत्र और पुत्री में कोई अंतर नहीं होता।
साभारः धर्मेंद्र सुवालका, बूंदी
Leave feedback about this