118वें जन्मदिवस पर विशेष
समाज सेवा महत्वाकांक्षाओं की सीढ़ी नहीं, बल्कि एक तपस्या है। इस तप की सिद्धी के लिए ‘कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ’ जैसा जज्बा होना चाहिए और, चाहिए सब कुछ त्यागकर फकीरी अपना लेने का हौसला।
काशी विद्यापीठ के पूर्व कुलपति तथा वाराणसी के सांसद रहे प्रो. राजाराम शास्त्री के जीवन का भी यही फलसफा था। उनके हर दिन का एक-एक पल अध्ययन, अध्यापन, लेखन और स्वाध्याय के अलावा जनसेवा को समर्पित था। विधि की ओर से प्राप्त दिन-रात के 24 घंटों का एक-एक क्षण किस तरह समाज हित में काम आए, इसी की मिसाल थे समाजशास्त्र के अध्येता प्रो. राजाराम शास्त्री। उनका संपूर्ण जीवन महात्मा गांधी के सिद्धांतों से प्रेरित था। उन्होंने गांधीवाद को न सिर्फ विचारों में अपितु दैनिक जीवन के आचार व्यवहारों में बड़ी शिद्दत से उतारा था।
4 जून 1904 को वाराणसी के एक कलचुरी परिवार में जन्मे प्रोफेसर राजाराम शास्त्री को 1991 में भारत सरकार के प्रतिष्ठित पद्मभूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया था। इसी वर्ष उनकी 21 अगस्त 1991 को 87 वर्ष की अवस्था में उनकी मृत्यु हो गई थी। अफसोस इस बात है कि कलचुरी समाज जब भी अपनी महान विभूतियों का जिक्र करता है, प्रो. शास्त्री को अक्सर भुला दिया जाता है। इसकी एक वजह उनके नाम के साथ शास्त्री जुड़ा होना भी है। जबकि शास्त्री उनका उपनाम नहीं था, बल्कि उनकी डिग्री थी जो उन्होंने काशी विश्वविद्यालय से ग्रहण की थी। इसके बाद काशी विद्यापीठ में अध्यापन कार्य किया, काशी विद्यापीठ में ही जीवन गुजारा और यहीं अंतिम सांस ली। एक समाजसेवी के रूप में, एक अध्यापक के रूप में और एक सांसद के रूप में भी, जीवन के हर मोर्चे पर प्रो. शास्त्री अदभुत ऊर्जा के साथ खड़े रहते थे। दिन हो रात जब भी काशीवासियों को उनकी जरूरत महसूस हुई वे जनता के कंधा से कंधा जोड़कर मजबूती के साथ खड़े रहे। सांसद बनना उनके लिए समाजसेवा का अवसर और दायित्व था, और इस ध्येय के लिए वह मजबूत संकल्प के साथ समर्पित रहे। वे अक्सर कहा करते थे कि समाजसेवा के क्षेत्र में धैर्य ही सबसे बड़ी जरूरत है।
मूल रूप से मिर्जापुर के चुनार क्षेत्र के रहने वाले प्रो. राजाराम शास्त्री ने 1926 में बतौर प्राध्यापक काशी विद्यापीठ में नौकरी शुरू की थी। इनके साथ चंदौली के सांसद रहे टीएन सिंह और पं. नेहरू सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे बालकृष्ण की भी नियुक्ति हुई थी। 1967 में काशी विद्यापीठ को डीम्ड यूनीवर्सिटी का दर्जा मिलने के बाद वह पहले औपचारिक कुलपति नियुक्त किए गए थे। 1971 में कांग्रेस से लोकसभा का टिकट मिलने के बाद वह कैंपस में रहते हुए ही चुनाव भी जीते। उन्होंने दिग्गज नेता सत्यनारायण सिंह को शिकस्त देकर लोकसभा का सफर तय किया। सत्यनारायण सिंह 1967 के चुनाव में यहां से सांसद चुने गए थे।
लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने कुलपति पद से इस्तीफा दे दिया था। 1977 का चुनाव हारने के बाद वह एक बार फिर काशी विद्यापीठ के कुलपति बने। इस बार भी वह चार साल तक कुलपति रहे। प्रो. राजाराम शास्त्री के पुत्र प्रो. गिरीश कुमार अपनी पत्नी प्रो. गायत्री के साथ लंका के भगवानपुर में रहते हैं। दोनों काशी विद्यापीठ से रिटायर हो चुके हैं। प्रो. गिरीश कुमार बताते हैं कि पिताजी केचुनाव प्रचार में इंदिरा गांधी आई थीं। बेनियाबाग में सभा हुई थी। पं. कमलापति त्रिपाठी उनके अच्छे मित्र थे। वह भी चुनाव प्रचार करते थे। प्रो. राजाराम शास्त्री ने विद्यापीठ से सेवानिवृत्त होने के बाद सिगरा में मकान बनवाया था लेकिन वहां वह कभी रहे नहीं। अंतिम सांस तक वह विद्यापीठ स्थित आवास में ही रहे।
प्रो. राजाराम शास्त्री ने कई चर्चित पुस्तकें लिखी हैं जिनमें मन के भेड़, व्यैक्तिक मनोविज्ञान, समाज विज्ञान, सोशल वर्क ट्रेडिशन्स इन इंडिया और स्वप्न दर्शन शामिल हैं। समाज विज्ञान और स्वप्न दर्शन के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से श्रेष्ठ लेखक के रूप में सम्मानित भी किया गया।
अखिल भारतीय प्रबुद्ध जायसवाल महासभा (दिल्ली चेप्टर) ने प्रो. राजाराम शास्त्री की पुण्यतिथि पर बीती 4 जून को एक वर्चुअल मीटिंग की गई जिसमें देशभर से प्रबुद्ध समाजबंधुओं ने भाग लिया। प्रो. रिचा चौधरी ने मुख्य वक्ता ने रूप में अपने संबोधन में प्रो. शास्त्री के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।
( दिल्ली निवासी समाजसेवी एवं विचारक श्री अवधेश कुमार साहा द्वारा उपलब्ध कराए गए इनपुट पर आधारित आलेख)
शख्सियत
Kalchuri Icon प्रो. राजाराम शात्री, एक महान शख्सियत जिन्हें आज भी याद करती है काशी
- by admin
- June 7, 2022
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