शिवहरे वाणी नेटवर्क
इंदौर।
देश में आधार नंबर की परिकल्पना सबसे पहले प्रस्तुत करने का दावा करने वाले इंदौर के सुनील जायसवाल एक बार फिर चर्चा में हैं। अपने दावे पर लंबी लड़ाई लड़ने वाले सुनील जायसवाल ने शिवहरेवाणी को बताया है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) को लिखे उनके पत्र पर संज्ञान लिया है जिसमें उन्होंने UIDAI के पूर्व चेयरमैन नंदन नीलेकणी पर षडयंत्र कर श्रेय हड़पने का आरोप लगाया है। CVC ने UIDAI से इस मामले की गहनता से जांच कर तीन महीने के अंदर जवाब मांगा है।
सुनील जायसवाल को आधिकारिक रूप से आधार कार्ड का जनक माना जाएगा या नहीं, यह तो भविष्य ही बताएगा लेकिन वह जिस शिद्दत के साथ 14 साल से अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं, वह रोचक है। उन्होंने अपने संघर्ष को अपनी पहचान बनाया है, अपनी तमाम चीजों पर आधार की छाप लगाई है, आधारायण ग्रंथ के जरिये आधार के जन्म की अपनी कहानी लिखी, सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर वह आधार की बात करते हैं और यहां तक कि अपने पौत्र और धेवते का नाम भी क्रमशः आधार और कार्ड रखा है।
सुनील जायसवाल ने शिवहरेवाणी को बताया कि देश के हर नागरिक की एक खास संख्या से पहचान का विचार उनके दिमाग में काफी पहले से चल रहा था और इस दिशा में वह बड़ी गहनता से शोध कार्य किया। अगस्त 2005 तक उन्होंने पहचान संख्या जिसे आज हम आधार संख्या कहते हैं, को लेकर एक शोध पत्र तैयार कर लिया था। शोध पत्र- ‘कर लो इंसान को मुट्ठी में’, ‘सपने जो देश की तकदीर बदल सकते हैं’ अर्थात ‘नम्बर से होगी अब हर इंसान की पहचान’ को उन्होंने 15 अगस्त 2005 को तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को अनुमोदन के लिए भेजा। 29 सितंबर, 2005 को राष्ट्रपति सचिवालय ने उनके पत्र को संज्ञान में लिया और उसे प्रधानमंत्री कार्यालय भेज दिया। इसके बाद केंद्रीय कैबिनेट ने इसे पूरे भारत में लागू करने का निर्णय किया।
इंदौर के इस्पात कारोबारी सुनील जायसवाल ने आगे बताया कि इन सबके समानान्तर वह उन नंबरो (संख्या) की खोज भी कर रहे थे जिन्हें इस पहचान संख्या में इस्तेमाल किया जा सके। उन्होंने अपने अपनी पहली खोज संख्या को स्टेनलेस स्टील प्रोडक्ट पर अंकित किया। इसके पश्चात 3 मार्च 2006 में यूनिक आईडी की दिशा में भारत सरकार ने बड़ी पहल करते हुए विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के नाम से एक नए विभाग का गठन किया जिसका चेयरमैन नंदन निलेकणि को बनाया गया। इसके बाद यूनिक आईडी की नाम बदलकर आधार रखा गया और 29 सितंबर 2010 को महाराष्ट्र के नंदुरबार में आधार संख्या का शुभारंभ हो गया।
इस तरह आधार तो अस्तित्व में आ गया लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में उनकी किसी भूमिका का कोई जिक्र नहीं हुआ। तब से सुनील जायसवाल अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। गत वर्ष सितंबर माह में सुनील जायसवाल ने इंदौर के सदर बाजार थाने और वाणगंगा थाने से लेकर मध्य प्रदेश शासन, केंद्र सरकारके विभिन्न मंत्रालयों, प्रधानमंत्री कार्यालय, राष्ट्रपति सचिवालय और सीबीआई समेत कई महत्वपूर्ण दफ्र्तरों में अपनी शिकायत ‘आधारायण ग्रंथ बुक पिटिशन’ के माध्यम से भेजी थी, जिसमें आधार का जनक होने का दावा करते हुए उन्होंने अपने शोध ग्रंथ प्रस्तुत किए। इसी शिकायत पर संज्ञान लेते हुए CVC ने एक सूचना पत्र जारी किया है।
सुनील जायसवाल ने शिवहरेवाणी से बातचीत में भरोसा जताया है कि शीघ्र ही फैसला उनके पक्ष में आएगा और कलचुरी समाज तथा मां अहिल्या की पावन नगरी इंदौर का एक बड़ा सम्मान प्राप्त होगा।
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