आगरा।
पूरा कलचुरी समाज अपने आराध्य सहस्रबाहु अर्जुन का जन्मोत्सव मनाने की तैयारियों में जुटा है। दीपावली के बाद सप्तमी को भगवान सहस्रबाहु का प्राकट्य दिवस मनाया जाएगा जो इस बार 31 अक्टूबर को पड़ रहा है। कलवार, कलाल, कलार समाज के तमाम स्थानीय संगठन और राष्ट्रीय संगठनों की स्थानीय इकाइयां अपने यहां आयोजनों की तैयारियों में जुटी हैं। सोशल मीडिया ग्रुपों पर इन समारोहों की जानकारियां जोर-शोर से साझा की जा रही हैं। यह जोश और उत्साह देखकर कौन कह सकता है भला कि यह वही समाज है जिसने महज तीन महीने पहले अपने आराध्य के अपमान पर चुप्पी ओढ़ ली थी। क्यों?
क्या सिर्फ इसलिए कि मनोज मुंतशिर नाम के जिस तथाकथित राष्ट्रवादी कवि और गीतकार ने भगवान सहस्रबाहु के लिए बेहद आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया था, उसका विरोध करना समाज के इन संगठनों के नेतृत्वकर्ताओं के राजनीतिक हित या स्वार्थ के अनुकूल नहीं था? क्या वे घोर ब्राह्मणवादी मनोज शुक्ला मुंतशिर का विरोध करने से सिर्फ इसलिए पीछे हट गए कि भारत को विश्वगुरू बनाने की बात कहने वाले उनके आदर्श नेता इस नफरती चिंटू के प्रशंसक हैं। या इसलिए, कि वह उस राजनीतिक दल और उसके नेतृत्व का न केवल प्रशंसक है, बल्कि अक्सर उसका प्रचार करता नजर आता है, और तमाम मंचों से ‘झूठा इतिहास’ व नफरती बातें बक कर उसे राजनीतिक लाभ पहुंचाने का प्रयास भी करता है। आखिर क्यों?
बमुश्किल तीन महीने पहले दैनिक भास्कर के संपादकीय पृष्ठ पर मनोज मुंतशिर ने अपने नियमित कॉलम में लिखे आलेख में भगवान सहस्रबाहु के लिए बेहद आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया था। भोपाल में राष्ट्रीय कलचुरी एकता महासंघ के पदाधिकारी श्री युवराज सिंह राय ने इस पर सबसे पहले आवाज उठाई। शिवहरेवाणी ने इसके खिलाफ तीखे तेवरों में कई आलेख प्रकाशित किए, जिसके बाद राष्ट्रीय कलचुरी एकता महासंघ और कलचुरी सेना म.प्र. की कई जिला इकाइयो ने अपने यहां प्रदर्शन किए और जिला प्रशासन को ज्ञापन देकर अपना विरोध दर्ज कराया। उस समय लगा था कि 8 करोड़ की आबादी वाले कलवार, कलाल, कलार समाज के अन्य राष्ट्रीय संगठन भी अपनी आवाज उठांएंगे और यह बड़ा मुद्दा बन जाएगा, लेकिन कहीं कोई मजबूत आवाज नहीं उठी।
कलचुरी सेना के एक प्रतिनिधिमंडल ने भोपाल में दैनिक भास्कर दफ्तर में स्थानीय संपादक से मिलकर माफीनामा प्रकाशित करने की अपील की, राष्ट्रीय कलचुरी एकता महासंघ की राष्ट्रीय संयोजिका श्रीमती अर्चना जायसवाल ने भी भास्कर ग्रुप के शीर्ष प्रशासन से इस बारे में बात की। नतीजा यह हुआ कि दैनिक भास्कर ने एक दिन बहुत छोटे फोंट में खेद प्रकाशित कर इतिश्री कर ली। मनोज मुंतशिर ने सीधा कोई खेद व्यक्त नहीं किया। और इतने भर से ही मामला पूरी तरह शांत हो गया।
मनोज मुंतशिर को तो उसकी वफादारी का इनाम मिल रहा है, हाल ही में उसे सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीतकार के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है, मगर आपको क्या मिला भगवान सहस्रबाहु के वंशजों! मनोज मुंतशिर से तो आप माफी तक नहीं मंगवा पाए। हो सके तो भगवान सहस्रबाहु के जन्मोत्सव पर उनकी मूर्ति या चित्र पर माल्यार्पण के साथ अपनी ओर से एक लिखित माफीनामा भी अर्पित कर दीजिएगा, उनके अपमान पर अपनी चुप्पी का इतना प्रायश्चित तो कर ही सकते हैं न।
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