नई दिल्ली।
सामाजिक चिंतक, पत्रकार और समाजसेवी श्री पन्नालालजी जायसवाल नहीं रहे। वह 98 वर्ष के थे और कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे जिसके चलते उन्हें मैक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सोमवार 16 जनवरी, 2023 को शाम करीब 4.30 बज उनका देहांत हो गया। उनके निधन से सूचना से जायसवाल समाज में शोक की लहर दौड़ गई है।
मूल रूप से वाराणसी के श्री पन्नालाल जायसवाल पिछले सात दशकों से समय से दिल्ली में रह रहे थे। उनका वर्तमान निवास ‘सी-3, गुलमोहर पार्क, दिल्ली-110049’ है। 5 नवंबर, 1924 को वाराणसी में जन्मे श्री पन्नालालजी का शुरुआती जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा। बचपन में ही मां का निधन हो गया था। पिता की देखरेख में पढ़ाई की। 1940 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने के साथ ही महात्मा गांधी से प्रेरित होकर वह स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए। कुछ समय बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए और पूरे समर्पण भाव से संगठन के लिए कार्य किया। धीरे-धीरे संघ में पद ग्रहण करते हुए भाऊराव देवरस के मार्गदर्शन में कार्य करने लगे। 1946 में संघ ने उन्हें प्रचारक के तौर पर चुनारगढ़ (जिला मिर्जापुर) भेजा, जहां उन्होंने एक इंटर कालेज में सुपरवाइजर की नौकरी की। 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद पुलिस ने संघ पर बड़ी कार्रवाई की जिसमें संघ के कई कार्यकर्ताओं को जेल में डाला गया था। श्री पन्नालालजी को छह महीने जेल में रहना पड़ा।
जेल से निकलने के बाद श्री पन्नालालजी ने वाराणसी से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र दैनिक आज में काम किया। इसी बीच पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ से हिंदी की पाक्षिक पत्रिका ‘चेतना’ निकाली जिसमें श्री पन्नालालजी की सेवाएं भी लीं। इसके बाद वाजपेयीजी उन्हें लखनऊ ले आए और स्वदेश अखबार का प्रकाशन शुरू किया। लेकिन जल्द ही यह अखबार बंद हो गया। 1951 में पं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की तो श्री पन्नालालजी को वाराणसी का प्रभार दिया गया। 1951 के आम चुनाव में जनसंघ ने उन्हें पूरे जिले का दायित्व सौंप दिया। अत्यधिक परिश्रम और अनियमित जीवनचर्या की वजह से उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया, लिहाजा उन्हें प्रचारक का दायित्व छोड़ना पड़ा। 1953 में श्री पन्नालालजी की नियुक्ति भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में हुई जहां से 1986 में वह संपादक के पद से रिटायर हुए। आपकी लिखी पुस्तक ‘उन्नत कृषि की ओर’ को यूनेस्को द्वारा पुरस्कृत किया गया। 1968 में मोटे अनाज पर आपकी दूसरी पुस्तक प्रकाशित हुई जिसकी भूमिका तत्कालीन कृषि मंत्री बाबू जगजीवन राम ने लिखी थी।
सन 1978 में महामना मालवीय मिशन की स्थापना हुई तो भाऊराव देवसर ने इसकी जिम्मेदारी श्री पन्नालालजी को सौंप दी। आपने पूरे देश में इस मिशन का विस्तार किया और दिल्ली में मालवीय स्मृति भवन का निर्माण कराया। आप जायसवाल समाज की प्रमुख पत्रिका ‘जायसवाल जागृति’ से जुड़े और स्वजातीय समाज के उत्थान के कार्यों में भी जुटे रहे। आप जायसवाल जागृति के आजीवन संरक्षक रहे।
कवि एवं आध्यात्मिक गुरु सीए श्री राजीव जायसवाल ने शिवहरेवाणी को बताया कि उनसे पिछली मुलाकात कुछ महीने पहले अस्पताल में हुई थी जहां वह उनके पिता बाबूजी श्री वेदकुमार जायसवाल जी से मिलने आए थे। तब उन्होंने बड़े जोश के साथ श्री वेद कुमार जायसवाल से कहा था कि हमें और तुम्हें उम्र का सैकड़ा मारना है। अफसोस….कि वह दो वर्षों से चूक गए। सीए राजीव जायसवाल ने श्री पन्नालालजी की शख्सियत को याद करते हुए कहा कि वह मृदुभाषी, सरल स्वभाव वाले औऱ सभी मित्रवत व्यवहार रखने वाले कर्मठ समाजसेवी और प्रखर चिंतक थे। उनका जाना जायसवाल समाज की अपूर्णणीय क्षति है।
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