November 23, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
शख्सियत समाचार

स्वयं में संस्था हैं श्री जयनारायण चौकसे; जन्मदिन पर विशेष

सोम साहू
व्यक्ति को कुछ काम अपने समाज के लिए भी करने चाहिए। व्यक्ति ने जिस समाज में जन्म लिया, पला-बढ़ा, काम-धंधा कर तरक्की पाई, उस समाज को बेहतर बनाने में योगदान करना उसका कर्तव्य है। इसके लिए जरूरी नहीं कि वह बहुत धनवान हो या रसूखवाला हो। ऐसा भी नहीं कि किसी संस्था या संगठन से जुड़कर ही ऐसा करना संभव हो। बल्कि, व्यक्ति किसी भी स्थिति-परिस्थिति में रहते हुए समाज की सेवा कर सकता है। श्री जय नारायण चौकसे जैसी शख्सियतें मेरी इस सोच को विश्वास में बदलती हैं।
श्री जयनारायण चौकसे का नाम मैंने पहली बार करीब 20-22 वर्ष पहले सुना था। आगरा में शिवहरे-जायसवाल समाज का सामूहिक विवाह था और मैं अमर उजाला के रिपोर्टर की हैसियत से वहां गया था। सभी जोड़े निर्धन वर्ग से थे। आयोजकों से चर्चा में बात निकली कि समाज के धनी-मानी लोगों को भी अपने बच्चों, भाई-बहनों या रिश्तेदारों की शादियां सामूहिक विवाहों में करानी चाहिए, तभी ऐसे आयोजनों को प्रोत्साहन मिल सकता है। इसी दौरान किसी सज्जन ने जय नारायण चौकसेजी का नाम लिया, बताया कि भोपाल में एक ‘बड़े आदमी’ हैं, उन्होंने अपने भाई की शादी सामूहिक विवाह में करवाई थी, वो भी 15-20 साल पहले। सुनकर अच्छा लगा था। इसके करीब दस साल बाद, 2011 में ग्वालियर में सत्यनारायण की टेकरी पर हुए एक परिचय सम्मेलन में श्री चौकसेजी से पहली बार मिलना हुआ। मैंने उनसे बातचीत की जिसमें उन्होंने इस बात की तस्दीक भी की। यह साक्षात्कार शिवहरेवाणी के उस माह के अंक में प्रकाशित किया था, और अब हमारे पोर्टल www.shivharevani.com  पर उपलब्ध है।
इसी तरह, करीब दो वर्ष पूर्व आगरा में हमने ऐसी व्यवस्था बनाने का विचार किया, कि समाज के उद्योगपति, व्यापारी अपने प्रतिष्ठानों में वैतनिक सेवाओं के लिए योग्य स्वजातीय युवाओं को प्राथमिकता दें। तब हमारे सामने यह भी आया कि जो करने की हम आज सोच रहे हैं, श्री चौकसे वर्षों से ऐसा कर रहे हैं और उनके एलएनसीटी में बड़ी संख्या में समाज के युवा काम कर रहे हैं। यानी जिसे हम अपनी पहल समझ रहे थे, दरअसल वह अनुसरण था श्री चौकसेजी का। दिल बाग-बाग हो गया, यही होती है समाज की सच्ची सेवा।
जहां तक मैं जानता हूं, श्री जयनारायण चौकसे युवावस्था से ही समाज की निःस्वार्थ सेवा करते रहे हैं। सामाजिक जीवन के शुरूआती दौर में ही उन्होंने समाज की धर्मशाला, मंदिर, कालोनियों का निर्माण कराने का काम किया। निःशुल्क वैवाहिक सम्मेलन कराए, युवक-युवती परिचय सम्मेलनों के आयोजन कराए। अपने संस्थान में समाज के बच्चों को उच्च शिक्षित करने के साथ उन्हें कई तरह की रियायतें दीं। फिर अपने संस्थान की वैतनिक सेवाओं में भी समाज के युवाओं को तरजीह दी। एलएनसीटी में काम करने वाले एक स्वजातीय बंधु ने बताया कि संस्थान में ज्यादातर भवनों के नाम समाज की पहचान से जुड़े हुए हैं। मैं कोलार रोड स्थित एलएनसीटी परिसर में गया तो यह बात भी सही पाई। श्री चौकसेजी संभवतः समाज के पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने घर के मंदिर में भगवान सहस्रबाहु की अखंड ज्योत प्रज्ज्वलित की जिसे वह महेश्वर से लाए थे।
अपने समाज के लिए इतना प्रेम और लगाव बहुत कम लोगों में देखने को मिलता है, और इसे इस हद तक व्यवहार में उतारने का काम तो श्री चौकसेजी ही कर सकते हैं। मैं यह बताना जरूरी नहीं समझता कि किन-किन संस्थाओं और संगठनों से वह जुड़े हैं या उन्हें जोड़ा गया है। हां, इतना जरूर है कि कई संस्थाओं और संगठनों ने उनके नाम को जोड़ कर प्रतिष्ठा अर्जित की है। मैं शिवहरेवाणी की ओर से आज  2 फरवरी को  श्री चौकसेजी को  उनके 76वें जन्मदिन पर ह्रदय से शुभकामनाएं देता हूं और उनके स्वास्थ्य व दीर्घायु की कामना करता हूं।

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