November 1, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
शिक्षा/करियर समाचार

औरैया: एमए की छात्रा इति शिवहरे बनी हिंदी की असिस्टेंट प्रोफेसर: नेट परीक्षा में शानदार प्रदर्शन

औरैया।
औरैया के ट्रांसपोर्ट व्यवसायी सुशील कुमार शिवहरे की 23 वर्षीय पुत्री इति शिवहरे ने ‘कठिन’ नेट परीक्षा में 97.37 प्रतिशत अंक प्राप्त कर असिस्टेंट प्रोफेसर बनने की योग्यता प्राप्त कर ली है। मजे की बात यह है कि इति शिवहरे ने अभी अपना पोस्टग्रेजुएशन भी पूरा नहीं किया है। हिंदी साहित्य की होनहार छात्रा इति शिवहरे इस वर्ष एमए फाइनल की परीक्षा देंगी। 
औरैया के मोहल्ला खिड़की साहब राय निवासी सुश्री इति शिवहरे फिलहाल सीबीएसई बोर्ड से संबद्ध एक प्रतिष्ठित स्कूल में हिंदी पढ़ाती भी है। शिवहरेवाणी से बातचीत में इति ने बताया कि वैसे तो हिंदी साहित्य से उनके परिवार का कोई नाता नहीं रहा, वह स्वयं भी इंटरमीडियेट तक साइंस-मैथ्स की सीबीएसई स्टूडेंट रहीं। हाईस्कूल में 90 प्रतिशत अंक प्राप्त कर स्कूल टॉप किया था। लेकिन, हिंदी हमेशा से उनका सबसे प्रिय विषय था। खुद भी गीत, कविताएं लिखनी थीं। लिहाजा, इंटरमीडियेट के बाद उन्होंने हिंदी साहित्य से बीए करने का निर्णय किया। इति अपनी सफलता का पहला श्रेय अपने गुरु श्री गोविंद द्विवेदी को देती हैं, पिता सुशील कुमार और मां श्रीमती संगीता शिवहरे ने उनको हमेशा प्रोत्साहित किया। 
इति शिवहरे का अपना एक फेसबुक पेज है जिस पर वह अपनी गीत-कविताएं शेयर करती हैं। अब औरैया के साहित्य जगत में उनकी विशिष्ट पहचान बन गई है। रामधारी सिंह दिनकर और महादेवी वर्मा उनके पसंदीदा कवि हैं। छायाववाद से काफी प्रभावित हैं जो उनकी रचनाओं में भी दिखाई देता है। स्थानीय कवि सम्मेलनों और काव्य गोष्ठियों में उन्हें बुलाया जाता है। कई पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रमुखता से प्रकाशित हो चुकी हैं, वहीं कई मंचों और चैनलों पर भी उन्होंने काव्यपाठ किया है। उनकी कुछ रचनाओं को संगीतबद्ध भी किया गया है। उनका एक गीतः-

कुंडली तो मिल गई है, 
मन नहीं मिलता, पुरोहित!
क्या सफल परिणय रहेगा?

गुण मिले सब जोग वर से, गोत्र भी उत्तम चुना है।
ठीक है कद, रंग भी मेरी तरह कुछ गेंहुआ है।
मिर्च मुझ पर माँ न जाने क्यों घुमाये जा रही है?
भाग्य से है प्राप्त घर-वर, बस यही समझा रही है।
भानु, शशि, गुरु, शुभ त्रिबल, गुण-दोष,
है सब-कुछ व्यवस्थित,
अब न प्रति-पल भय रहेगा?

रीति-रस्मों के लिए शुभ लग्न देखा जा रहा है।
क्यों अशुभ कुछ सोचकर, मुँह को कलेजा आ रहा है?
अब अपरिचित हित यहाँ मंतव्य जाना जा रहा है।
किंतु मेरा मौन ‘हाँ’ की ओर माना जा रहा है।
देह की हल्दी भरेगी,
घाव अंतस के अपरिमित?
सर्व मंगलमय रहेगा?

क्या सशंकित मांग पर सिंदूर की रेखा बनाऊँ?
सात पग भर मात्र चलकर साथ सदियों का निभाऊँ?
यज्ञ की समिधा लिए फिर से नए संकल्प भर लूँ?
क्या अपूरित प्रेम की सद्भावना उत्सर्ग कर दूँ?
भूलकर अपना अहित-हित,
पूर्ण हो जाऊँ समर्पित?
ये कुशल अभिनय रहेगा!
क्या सफल परिणय रहेगा?
-इति शिवहरे

 

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