November 1, 2024
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धरोहर समाचार

सांवलिया सेठ को चढ़ाया चांदी का पेट्रोल पंप; नागदा के लखन जायसवाल ने बंद पड़ा पेट्रोल पंप फिर से चालू होने पर ठाकुरजी का माना आभार

चित्तौड़गढ़/नागदा।
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ स्थित सांवलिया सेठ मंदिर में मध्य प्रदेश के नागदा निवासी युवा कारोबारी लखन जायसवाल ने चांदी से बना पेट्रोल पंप का चढ़ावा चढ़ाया है। दरअसल लखन जायसवाल ने अपने बंद पड़े पेट्रोल पंप के दोबारा चालू होने की मन्नत मांगी थी, और कुछ समय बाद उन्हें दोबारा लाइसेंस मिल गया। लिहाजा पेट्रोल पंप फिर से चालू होने पर उन्होंने 1.083 किलो चांदी से बना पेट्रोल पंप ठाकुरजी को चढ़ाया है।
बीते रोज लखन जायसवाल अपने पूरे परिवार के साथ चित्तौड़गढ़ सॆ उदयपुर की ओर राष्ट्रीय राजमार्ग पर 28 किमी दूरी पर भादसोड़ा ग्राम स्थित सांवलिया सेठ मंदिर आए और चांदी से बने दो पेट्रोल पंप भेंट किए। एक पंप पेट्रोल का है, दूसरा डीजल का। मंदिर प्रबंधन ने उनका स्वागत करते हुए उनकी भेंट किए रसीद भी प्रदान की। लखन जायसवाल का नागदा में एक पेट्रोल पंप था जो डेढ़ साल से बंद पड़ा था। लखन की तमाम कोशिश के बाद उन्हें दोबारा लाइसेंस नहीं मिल रहा था। अंत में लखन जायसवाल सांवलिया सेठ की शरण में गए। बीते दिनों वह सांवलिया सेठ मंदिर आए और पेट्रोल पंप फिर से चालू करने की मन्नत मांगी। मजे की बात यह कि इसके कुछ ही दिनों बाद उन्हें दोबारा लाइसेंस मिल गया और उनका पेट्रोल पंप फिर से चालू हो गया। इस पर लखन जायसवाल ने सांवलिया सेठ पर यह चांदी का पेट्रोल पंप चढ़ाया है। 
सांवलिया सेठ मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भक्त खजाने में जितना देते हैं सांवलिया सेठ उससे कई गुना ज्यादा भक्तों को वापस लौटाते हैं। सांवलिया सेठ की व्यापार जगत में उनकी ख्याति इतनी है कि लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए उन्हें अपना बिजनेस पार्टनर बनाते हैं। यदि आप सांवलिया सेठ मंदिर के बारे में नहीं जानते हैं तो आपको बता दें कि भगवान श्री सावलिया सेठ का संबंध मीरा बाई से है। किवदंतियों के अनुसार, सांवलिया सेठ ही मीरा बाई के गिरधर गोपाल हैं, जिनकी वह पूजा करती थी और संत-महात्माओं के बीच इन मूर्तियों के साथ घूमती थी। बताते हैं कि ये मूर्तियां दयाराम नामक संत के पास रह गई थीं। जब औरंगजेब की सेना मंदिरों में तोड़-फोड़ कर रही थी, तब मेवाड़ में पहुंचने पर मुगल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा और वे इसकी तलाश करने लगे। कहा जाता है कि मुगलों के हाथ लगने से पहले ही संत दयाराम ने इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर पधरा दिया।  कालांतर में सन 1840 मे मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नाम के ग्वाले को सपना आया कि भादसोड़ा-बागूंड गांव की सीमा में भगवान की तीन मूर्तिया जमीन मे दबी हुई हैं। जब उस जगह पर खुदाई कराई गई तो सपना सही निकला और वहां से एक जैसी तीन मूर्तिया प्रकट हुईं। सभी मूर्तियां बहुत ही मनोहारी थी। ये खबर फैलने पर लोग यहां पहुंचने लगे और मंदिर का निर्माण हो गया।

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