by Som Sahu October 14, 2017 आलेख, घटनाक्रम 286
सोम साहू
हमारे पोर्टल पर कलचुरी समाज के आराध्य भगवान सहस्त्रबाहु जी के बारे अधिकतम संभव जानकारियां उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की गई सीरीज ‘जयंती विशेष’ के प्रथम अंक के बारे में पाठकों से उत्साहजनक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई हैं। इसके लिए शुक्रिया। हालांकि कुछ लोगों ने अपने संदेश में एक सामान्य सवाल किया है कि हमें महापुरुषों की जयंती किस तरह मनानी चाहिए। इस बारे में हमारा मत है कि जिन्हें हम महापुरुष मानते हैं, अक्सर उन्हें हमने कभी देखा नहीं होता है, कभी मिले नहीं होते क्योंकि हम समकालीन नहीं होते। लिहाजा महापुरुषों की पहली छवि हमारे जेहन में उनके काल्पनिक अथवा प्रतीकात्मक या फिर वास्तविक चित्रों से बनती है। दूसरी छवि कायम होती है उनके विचारों और आदर्शों से, जो कि सबसे महत्वपूर्ण है। जब हम किसी महापुरुष की जयंती मनाते हैं तो इसका सीधा सा अर्थ यह होता है कि हम उनके विचारों और आदर्शों का सम्मान करते हैं। लिहाजा जयंती समारोह मनाते समय हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि कोई कृत्य अनजाने में भी हमसे ऐसा न हो जाए, जो उस महापुरुष के आदर्शों के विपरीत हो जिसकी जयंती हम मना रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, बीती 27 सितंबर में शहीद भगत सिंह की जयंती देशभर में मनाई गई। जगह-जगह उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया, यहां तक तो ठीक था। कहीं-कहीं से उनकी प्रतिमा पर तिलक करने और दीप प्रज्ज्वलित किए जाने की भी खबरें मिलीं, जो करना सही नहीं है। सरदार भगत सिंह की जयंती मनाने वालों को पहले उनके आदर्शों और सिद्धांतों की जानकारी जरूर कर लेनी चाहिए। सरदार भगत सिंह के विचारों का झुकाव साम्यवाद यानी कम्युनिज्म की ओर था, जो नास्तिकता के करीब है। वे तिलक नहीं लगाते थे, पूजा-पाठ नहीं करते थे। जब वे ऐसा नहीं करते थे, तो उनकी प्रतिमा पर तिलक करना क्या उनके प्रति सम्मान का प्रदर्शन कर सकता है?
एक पाठक की ओर से व्यक्तिगत तौर पर पूछे गए इस सवाल का यहां उल्लेख करने के पीछे हमारा मंतव्य यह समझाने का है कि हम भगवान सहस्त्रबाहु की जयंती मनाने जा रहे हैं, तो जरूरी है कि उनके बारे में हमें अधिक से अधिक जानकारी हो, उनके आदर्शों और विचारों की हमें समझ हो। और, ‘जयंती विशेष’ सीरीज शुरू करने के पीछे हमारा उद्देश्य भी यही है – भगवान सहस्त्रबाहुजी के बारे में अपनी सर्वश्रेष्ठ जानकारी प्रस्तुत करना। भगवान सहस्त्रबाहु जी के बारे में यदि आपके पास कोई विशेष जानकारी या ज्ञान है तो हम आपसे आलेख आमंत्रित करते हैं जिन्हें आपके क्रेडिट से इस सीरीज में प्रकाशित किया जाएगा। फिलहाल प्रस्तुत है जयंती विशेष सीरीज का दूसरा अंक, जयंती विशेष-2
(गतांक से आगे)
महाराज सहस्त्रबाहु उक्त वरदानो से विभूषित हो अपनी राजधानी महिष्मति वापस चले आये, प्रजा ने अपने प्रिय महाराजा सहस्त्रबाहु का हार्दिक अभिनन्दन किया एवं मंगल उत्सव मनाया। इसके बाद महाराज सहस्त्रबाहु ने अनेक राजाओ के राज्यों पर चढाई कर उन्हें परास्त करते हुए ” महाराजा चक्रवर्ती सम्राट ” पद की उपाधि से विभूषित हुए पराजित राजाओ ने अपनी कन्याओ का विवाह महाराज सहस्त्रबाहु से किया। उनमे से कुछ रानियों के नाम इस प्रकार से है-
१- सुकृती
२- पुरागंधा
३- यमघंटा
४- वशुमती
५- विष्टभडा
६- म्रगावती, इत्यादि
जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है कि महाराज सहस्त्रबाहु ने पूरे भारत के सभी राजाओ को पराजित कर ” महाराजा चक्रवर्ती सम्राट ” की उपाधि प्राप्त की। कुछ पुराणों से ऐसा भी ज्ञात होता है कि उन्होंने भारत ही नहीं वरन सम्पूर्ण पृथ्वी पर अपनी विजय पताका फहराई थी एवं आप ” विश्व विजेता ” भी कहे जाते है। प्रमाण महाभारत में लिखे इस श्लोक से देखा जा सकता है:–
” कार्तवीर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्र वान
येन सागर परयन्ता धनुषा निर्जिता माहि ”
यानी कार्तवीर्य अर्जुन ने अपने बाहुबल से समुद्र के सहित सम्पूर्ण वसुंधरा को जीत लिया था। यदि हम महाभारत के युद्ध को पौराणिक होने के साथ ही ऐतिहासिक भी मानते हैं, (जैसा कि कई जगह इसके प्रमाण मिले हैं) तो यह भी मानना होगा कि भगवान सहस्त्रबाहु दुनिया के पहले विश्व विजेता थे। ऐतिहासिक तौर सिकंदर को पहला विश्व विजेता माना जाता है, जबकि उसने दुनिया के 30 प्रतिशत हिस्से पर भी अधिकार नहीं किया था। आधुनिक काल में नेपोलियम को यह हैसियत हासिल है, लेकिन वह पूरा यूरोप तक नहीं जीत पाया था। भारत में गुप्त साम्राज्य में समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन माना जाता है, जो कभी पराजित नहीं हुए और भारत की भौगोलिक सीमा से बाहर के विदेशी राजाओं को पराजित किया था। भगवान सहस्त्रबाहु सिकंदरा से कई हजार वर्ष पूर्व हुए थे, उन्होंने विश्व के कितने भूभाग पर विजय प्राप्त की थी, यह अज्ञात है लेकिन पौराणिक उल्लेखों की मानें तो उनके द्वारा विजयी क्षेत्र प्राचीन काल में सिकंदर तथा समुद्रगुप्त और आधुनिक काल में नेपोलियन द्वारा जीते गए भूभाग से कहीं अधिक रहा होगा।
इस संबंध में वायु पुराण के इस श्लोक का उल्लेख ले सकते हैं
तेनयं प्रथ्वी क्रतस्ना सप्त द्वीपा सपत्तना !
सप्तो दधि परिक्षिप्ता क्षात्रेना विधिना जिता!!
कार्तवीर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान !
तस्य स्मरण मात्रेण ह्रतं नसतं च लभ्यते!!
यानी आपने सातों द्वीप और सातों समुन्द्र से घिरी यह प्रथ्वी अपने क्षात्र धर्म की विधि से विजय की। महाराजा सहस्त्रबाहु ऐसे महा प्रतापी राजा हो गए कि जिनका एक हजार बार नाम का जप करने से नष्ट हुई, खोयी हुई वस्तु प्राप्त हो जाती है।
क्रमशः
(इंटरनेट पर उपलब्ध साम्रगी के आधार पर संकलित)
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