January 31, 2025
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
धरोहर

ओल्ड इज गोल्डः परिवार की विरासत और गांधीजी की यादों को संजो रहे आदित्य विक्रम जायसवाल

शिवहरे वाणी नेटवर्क
रांची।
नई पीढ़ी आज जहां अत्याधुनिक और विदेशी कारों के पीछे पागल नजर आती है, वहीं कुछ युवा ऐसे भी हैं जो पुरानी विंटेज कारों का संरक्षण कर रहे हैं। ऐसे ही लोगों में एक हैं रांची के सामाजिक कार्यकर्ता आदित्य विक्रम जायसवाल। रांची की जानी-मानी जायसवाल फैमिली के युवा सदस्य आदित्य अपने परिवार के विंटेज कार कलेक्शन को संवारने में जुटे है। मर्सिडीज बेंज 170वी कैब्रियोलेट, फोर्ड 1922 मॉडल. शैवरले एस 1918 मॉडल, विलिस नाइट, फियेट रोल्स रोयस 1912  मर्लीन प्रिंसेज, डेसोटो और ऐसी कुछ अन्य कारों के साथ उनका शुमार देश में विंटेज कार कलेक्शन वाले टॉप 10 लोगों में होता हैं।
झारखंड राज्य कांग्रेस समिति के पूर्व सचिव के पास 1921 मॉडल की ‘फोर्ड ए’ कार है जिसे लोग गांधी-कार भी करते हैं। दरअसल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 1940 के रामगढ़ कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए रांची आए थे, और इसी कार में सवार होकर रांची से रामगढ़ गए थे। यह कार वर्तमान में जायसवाल के घर में बनी गैराज मे है जो कारों की मरम्मत के लिए जरूरी सभी उपकरणों और सुविधाओं से सुसज्जित है। कई दफा इस कार के स्पेयर पार्ट्स अमेरिका में फोर्ड कंपनी से मंगाए गए, और कई बार ऐसा भी हुआ कि फोर्ड कंपनी  ने स्वयं ही इसके स्पेयर पार्ट्स भेज दिए ।
लाल रंग की विंटेज कार आदित्य विक्रम जायसवाल के परदादा रायसाहब लक्ष्मी नारायण जायसवाल ने सीधे फोर्ड से खरीदी थी। देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद, डा. जाकिर हुसैन, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और वायसराय लार्ड इर्विन भी इस कार  में सफर कर चुके हैं। रायसाहब स्वतंत्रता सेनानी थे और 1932 में कांग्रेस के विधायक थे। अंग्रेजों ने साजिश करके उन्हें जहर दे दिया था। 
मर्सिडीज बेंज 170वी केब्रियोलेट गाड़ी भी उनकी गैराज का शान है जिसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय मार्केट में सात करोड़ से अधिक है। नाजी-जर्मनी युग मे हिटलर के जखीरे में यही कारें इस्तेमाल होती थीं। मर्सिडीज कंपनी आज भी जायसवाल फैमिली को अपना प्रॉयोरिटी कस्टमर (वरीयताप्राप्त ग्राहक) मानती है और 2015 में उसने जायसवाल फैमिली को इस कार के स्पेयर पार्ट्स निःशुल्क उपलब्ध कराये थे। खास बात  यह है कि पूरी दुनिया में इस कार के केवल सात मॉडल बचे हैं।
1912 की फीयेट रोल्स रोयस को मर्लीन प्रिंसेज के नाम से भी जाना जाता है और विश्व में यह अपनी तरह की अकेली कार शेष है। आदित्य कहते हैं, ‘मेरे लिए ये बड़े गर्व की बात है कि मैं न केवल अपनी पैतृक विरासत को संजो रहा हूं, बल्कि रोल्स रोयल की विरासत की भी देखभाल कर रहा हूं।’
मूल रूप से उत्तर प्रदेश की रहने वाली जायसवाल फैमिली एक दशक पूर्व अपने शराब के कारोबार के लिए रांची आए थे। जल्द ही उनका कारोबार पूरे देश में फैल गया। 1930 और 1940 के दशकों में फोर्ड टी सीरीज से लेकर मर्सिडीज बेंज वी, एस, एसबी और डीएस मॉडल्स जैसी विदेशी कारें खरीदी थीं। धीरे-धीरे परिवार के कई बिजनेस हो गए और कई सदस्य यहां से बाहर चले गए लेकिन कारों का जखीरा यहीं रह गया। कारें इस्तेमाल न होने से कूड़ा हो रही थीं। तब रांची में जायसवाल परिवार की पांचवी पीढ़ी के आदित्य विक्रम ने इन बेशकीमती कारों की विरासत को संवारने का बीड़ा उठाया। आदित्य को उनके दादा श्यो नारायण जायसवाल जो रांची के मेयर भी रहे थे, का मार्गदर्शन मिला और आज उसे अंजाम पर पहुंचा दिया।
 

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