संजय कुमार जायसवाल
(जैसा कि शिवहरे वाणी को बताया)
कोलकाता।
पिता और पुत्र का रिश्ता भी बड़ा अजीब होता है। आमतौर पर हर पिता अपने पुत्र के लिए पहला हीरो होता है। हर पुत्र अपना जीवन पिता के दिए संस्कारों के साथ जीता है। अच्छा-बुरा देखने का नजरिया भी पिता से ही मिलता है। उसकी सोच, आचार-व्यवहार और काम करने के सलीखे में भी उसका पिता झलकता है। इसीलिए, दुनिया का कोई पिता कभी मरता नहीं है, वह अपने पुत्र के अंदर जिंदा रहता है। मेरे पिता श्री जगदीश प्रसाद साव इस दुनिया में नहीं रहे। बीती एक मार्च को उनका स्वर्गवास हो गया। सोमवार 11 मार्च को उनका श्राद्ध भोज है। आज शिवहरेवाणी के माध्यम से अपने पिता को श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहता हूं।
मेरे पिता स्व. श्री जगदीश प्रसाद सावजी ने कारोबारी, समाजिक और परिवारिक जीवन में जो उपलब्धियां हासिल कीं, वह मुझ सहित उनकी सभी संतानों के लिए एक माइल स्टोन बन गई हैं, जिनका पीछा हम जिंदगीभर करते रहेंगे । कोलकाता के एक प्रसिद्ध लौह व्यापारी स्व. जगबंधन राम साव की छठवीं संतान थे। संपन्नता जन्म से देखी थी। पढ़ाई में होनहार थे और उस दौर में स्नातकोत्तर किया, जब समाज में गिनती के ही पढ़े-लिखे लोग थे। इसके बाद भी धन-दौलत या शिक्षा का घमंड उन्हें छूकर भी नहीं गया था। वह बहुल सरल ह्रदयी औऱ मिलनसाल व्यक्तित्तव के धनी थे और पहली मुलाकात में ही सामने वाले को प्रभावित कर लेते थे, उन्हें अपना बना लेते थे। उनका यह गुण कारोबार में बहुत काम आया। उन्होंने रेलवे लाइन के नीचे लगने वाले स्लीपर बनाने की कंपनी स्थापित की और अपने कुशल संचालन से उसे ऊंचाइयों पर ले गए।
पिताजी लोगों के बीच वकील साहब के नाम से लोकप्रिय थे। मैंने जब से होश संभाला, उन्हें अपने कारोबार में और समाज-सेवा में व्यस्त पाया। वह अपनी प्रगति में समाज को भागीदार मानते थे, उनकी सोच थी कि व्यवसाय में उन्होंने जो भी तरक्की की है, दरअसल वह समाज की ही देन है। लिहाजा हर सफल कारोबारी का समाज के हित में कार्य करने का एक नैतिक दातिय्व बनता है । इसी सोच के साथ उन्होंने समाजसेवा औऱ शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किए।
वह कोलकाता में स्वजातीय कलचुरीसमाज के दातव्य चिकित्सालय के अध्यक्ष रहे जहां अब तक 5 लाख से अधिक मरीजों का उपचार किया जा चुका है। उनकी अध्यक्षता में ही मलिकतल्ला कोलकाता में जायसवाल समाजभवन एवं एजुकेशन ट्रस्ट की स्थापना हुई। आज के स्मार्टफोन और इंटरनेट के दौर में भी लोग अपने कारोबार से फुर्सत नहीं पाते, और मैं उनके टाइम मैनेजमेंट के बारे में सोचकर आश्चर्य करता हूं कि वह कैसे कारोबार, समाज और परिवार पर समान ध्यान दे पाते थे । एक मार्च को उनके निधन की सूचना मिलने पर हावड़ा, रायपुर, रांची, भिलाई, जमशेदपुर समेत देशभर से लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने कोलकाता आए। दुःख की घड़ी में हमारे परिवार को हौंसला बंधाने के लिए मैं ह्रदय से उनका आभारी हूं। मैं उनका बड़ा पुत्र, और मेरे दोनों छोटे भाई अनिल और विनीत के लिए उनकी स्मृतियां एक सूर्य की तरह हमेशा हमारे जीवन को ऊर्जित और प्रकाशित करती रहेंगी।
(लेखक श्री संजय कुमार जायसवाल रायपुर में रहते हैं, और भारतीय कलचुरी जायसवाल समवर्गीय महासभा (बीकेजेएसएम) के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में संरक्षक हैं।)
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