आज की दुर्गा
शिवहरे वाणी नेटवर्क
गाजीपुर।
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के गांव कंसाहरिया की प्रियंका जायसवाल की कहानी उन तमाम लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत हो सकती है जो अपने परिवार में ही लैंगिक भेदभाव की शिकार हो जाती हैं, जिसके चलते पढ़ने-लिखने का उनका सपना कभी पूरा नहीं हो पाता। प्रियंका जायसवाल ने भी यदि हार मान ली होती, तो आज समाज में वह सम्मान अर्जित नहीं कर पातीं, जो आज उन्हें हासिल है। प्रियंका इस बात को अच्छी तरह समझती हैं और चाहती हैं कि कम से कम उनके गांव की लड़कियां शिक्षा के लिए उस संघर्ष से न गुजरें, जिससे उन्हें जूझना पड़ा। लिहाजा प्रियंका एक शिक्षिका के रूप में वंचित और गरीब बच्चों खासकर लड़कियों को पढ़ाने का काम कर रही हैं।
प्रिंयंका जायसवाल कंसाहरिया में स्थित आजीवम स्कूल में अध्यापिका है। एक एनजीओ द्वारा संचालित आवीजम स्कूल में गरीब और वंचित परिवारों के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है। एक शिक्षिका के रूप में प्रियंका जायसवाल को आसपास के इलाके में इतनी ख्याति है कि कई प्राइवेट स्कूलों से उन्हें अच्छे वेतन पैकेज पर जॉब के ऑफर आते हैं लेकिन वह इन्हें स्वीकार नहीं करतीं। बीएससी बॉटनी) और बीटीसी कर चुकीं प्रियंका जायसवाल कहती हैं कि वह इस स्कूल में रहते हुए जो कुछ कर पाती हैं, उसके लिए पैसा मायने नहीं रखता। वह चाहती हैं कि गांव की बच्चियों को अच्छी शिक्षा मिले, उन्हें शिक्षा के लिए उस कड़े संघर्ष से करना पड़े, जिस संघर्ष से वह गुजरी हैं।
प्रियंका का परिवार मूल रूप से मऊ जिले के सरहारा गांव का है, लेकिन व्यापार के सिलसिले में पूरा परिवार कोलकाता शिफ्ट हो गया था। प्रियंका का जन्म भी कोलकाता में हुआ। उनकी मां की मानसिक हालत ठीक नहीं थी। लिहाजा प्रियंका का लालन-पालन उनके दादा-दादी ने किया। कोलकाता में 5वीं तक की पढ़ाई की।
तभी दादा-दादी ने गांव लौटने का फैसला कर लिया और अपने साथ प्रियंका को भी ले आए। गांव के ही स्कूल में पढ़ते हुए प्रियंका ने शानदार अंकों के साथ हाईस्कूल पास किया। प्रियंका आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन समस्या यह थी कि गांव के स्कूल में केवल दसवीं तक ही साइंस पढ़ने की सुविधा थी। इंटरमीडियेट में साइंस की पढ़ाई के लिए गांव से दस किलोमीटर दूर स्थित एक इंटर कालेज में जाना होता था।
प्रियंका बताती हैं कि कालेज दूर होने की वजह से गांव में कोई लड़की नहीं थी, जिसने 12वीं कक्षा साइंस और मैथ्स से की हो। गांव के कालेज में इंटरमीडियेट में केवल आर्ट्स सब्जेक्ट थे। लेकिन प्रियंका ने जिद ठान रखी थी जिसके सामने दादा-दादी को झुकना पड़ा। प्रियका रोज दस किलोमीटर दूर चिड़ियापुर बाजार स्थित कालेज जाती थी।
इसी दौरान माता-पिता ने उसकी शादी तक दी। प्रियंका ने किसी तरह परिवारवालों को दो साल के लिए शादी टालने को राजी कर लिया।। कक्षा 12 की परीक्षा प्रियंका ने शानदार अंकों के साथ फर्स्ट डिवीजन में पास की। जैसा कि पहले से तय था, इंटरमीडियेट करते ही प्रियंका की शादी कंसाहरिया के विजय कुमार जायसवाल से हो गई।
सौभाग्य से प्रियंका के ससुरालीजन आधुनिक विचारों के थे, और सास-ससुर ने बहू की इच्छा का सम्मान करते हुए उसे आगे पढ़ने की इजाजत दे दी। प्रियंका ने आजमगढ़ के एक कालेज से बीएससी की फार्म भर दिया। बीएससी द्वितीय वर्ष की परीक्षा से पहले प्रियंका ने एक बेटे को जन्म दिया। तृतीय वर्ष की पढ़ाई के लिए प्रियंका को आजमगढ़ में ही कमरा लेकर बेटे के साथ अकेले रहना पड़ा। वह छह महीने के बेटे को लेकर रेगुलर क्लाज करती थी। इसी तरह के संघर्ष से गुरजते हुए प्रियंका ने बीएससी के बाद बीटीसी भी किया।
इसी दौरान गांव में आजीवम स्कूल स्थापित हुआ जहां प्रियंका को पढ़ाने का मौका मिला। एक शिक्षिका के तौर पर प्रियंका का यही प्रयास रहा कि गांव की अधिक से अधिक लड़कियां स्कूल जाएं, अपनी पढ़ाई पूरी करें। इसके लिए कई बार उन्हें लड़कियों के माता-पिता से बात कर उन्हें राजी करना पड़ा। बकौल प्रियंका, वह नहीं चाहती कि लड़कियों को लैंगिक भेदभाव की वजह से अपनी पढ़ाई से वंचित होना पड़े।
प्रियंका बताती है, मैं बच्चो को कंप्यूटर पढ़ाती हूं और पूरा प्रयास करती हूं कि बच्चों को कंप्यूटर के बारे में जानने के लिए कोई एक्स्ट्रा क्लास या कोचिंग लेनी पड़े। उनके प्रयासों से स्कूल में एक लाइब्रेरी भी स्थापित की गई है जहां गरीब बच्चों को पुस्तकों को निीःशुल्क सुविधा दी जाती है। प्रियंका एमएससी (बोटनी) भी करना चाहती है, हालांकि उसका कहना है कि वह कोई भी डिग्री ले लें, लेकिन आजीवम स्कूल में पढ़ाना नहीं छोड़ेंगी।
हम सब एक बेहतर भारत का सपना देखते हैं, जो किसी भी भेदभाव से मुक्त हो। प्रियंका समाज में लैंगिक भेदभाव मिटाने और महिला शिक्षा के लिए सार्थक प्रयास कर रही हैं। जरा सोचिये..हम सब यदि प्रियंका की तरह ही अपनी अपनी स्थिति में रहते हुए, अपनी-अपनी भूमिका में समाज की बेहतरी के लिए छोटे-छोटे प्रयास करें, तो कोई वजह नहीं कि हमारा समाज सुशिक्षित, सभ्य और संपन्न हो सके।
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