शिवहरे वाणी नेटवर्क
हावड़ा।
टीवी और इंटरनेट के दौर में खतरनाक बेव गेम्स ही नहीं, टीवी पर आने वाली कार्टून फिल्में भी बच्चों के लिए घातक हो सकती है। कार्टून फिल्मों के लिए 10 साल के प्रत्यूष जायसवाल की दीवानगी ने उसकी जान ले ली। पांचवी कक्षा के छात्र प्रत्यूष का शव उसके घर के बाथरूम में लटका मिला, गले में स्कूल बेल्ट बंधी थी। बेटे की असमय और अस्वाभाविक मौत ने परिजनों को इतना मौका ही नहीं दिया, कि वे कुछ कर पाते। उनका रो-रोकर बुरा हाल है।
यह मामला पश्चिम बंगाल के हावड़ा का है। यहां बैकुंठनाथ चटर्जी लेन में रहने वाले राकेश जायसवाल और कंचन का दस वर्षीय पुत्र पास ही मारिया डे स्कूल में कक्षा 5 का छात्र था। मंगलवार 24 सितंबर की दोपहर को वह स्कूल से घर लौटा और मां से खाना देने की कहकर बाथरूम में चला गया। काफी देर तक प्रत्यूष जब बाथरूम से नहीं निकला तो मां कंचन जायसवाल ने उसे आवाज दी। कोई जवाब नहीं आने पर उसने बाथरूम का दरवाजा जोर-जोर से खटखटाना शुरू कर दिया। इस पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं होने पर कंचन ने किसी तरह दरवाजा तोड़ दिया। अंदर बाथरूम में प्रत्यूष का शव उसकी स्कूल बेल्ट से लटका हुआ था। परिजनों ने तत्काल प्रत्यूष को उतारा और पास के अस्पताल ले गए जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया। प्रत्यूष की इस तरह अस्वाभाविक मौत ने सभी को हैरान और दुखी कर दिया।
दस साल का बच्चा आत्महत्या जैसा घातक कदम क्यों उठाएगा भला, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। परिजनों का कहना है कि प्रत्यूष अक्सर टीवी पर आने वाले कार्टून्स देखता था और फिर उनकी आवाजों और हरकतों की नकल भी करता था। बीते कुछ दिनों में वेब गेम्स के चक्कर में कई बच्चों और युवाओं की मौत की घटनाएं हो चुकी है। लेकिन, कार्टून के शौक के चलते जान जाने का यह शायद पहला मामला हो।
पेरेंट्स अक्सर यह सोचते हैं कि कार्टून फिल्में देखने से बच्चों का ज्ञान बढ़ता है और वे दुनियादारी को बेहतर तरीके से समझ लेते हैं। यह बात एक हद तक तो ठीक है लेकिन जब यह कार्टून एक नशा बन जाता है, तो ऐसे खतरनाक परिणाम सामने आते हैं जो बच्चे के जीवन के लिए अभिशाप बन जाते हैं। आइये जानते हैं बच्चों पर कार्टून के दुष्प्रभावों के बारे में जो बच्चे के व्यक्तित्व, स्वास्थ्य और उसके भविष्य पर असर डालते हैंः-
1. अनेक अध्ययनों से पता चला है कि कार्टून देखने की आदत से बच्चों की काल्पनिक शक्ति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। वे वास्तविक विश्व और वास्तविक जीवन से दूर होते जाते हैं।
2. अधिकतर कार्टून्स उचित शब्दों का उपयोग नहीं करते। और, बच्चे कार्टून का अनुकरण करते हैं। बात करने के बजाय वे अपने पसंदीदा कार्टून करेक्टर की आवाजें निकालते हैं, उसकी तरह भाषा बोलने लगते हैं।
3. कार्टून फिल्मों के लिए देर तक टीवी स्क्रीन पर आंखे गढ़ाए रखने से नजर की समस्या भी आने लगती है। इसके चलते छोटे-छोटे बच्चों के चश्मे लग जाते हैं।
4. कार्टून के शौक के चलते बच्चे ज्यादातर समय घर के अंदर बिताते हैं, बाहर जाकर नहीं खेलते। इसके चलते उन्हें प्रकृति का वास्तविक ज्ञान का हो सके और वे सक्रियता और ऊर्जावान नहीं रहते।
5. बच्चों में अलगाव और उदासीनता का एक प्रमुख कारण उनका कार्टून्स के सामने बहुत अधिक समय व्यतीत करना है। अपने आसपास होने वाली बातों को वे नहीं जानते। यह उनके सामाजिक व्यवहार को भी प्रभावित करता है।
6. बच्चे जिन्हें कार्टून देखने की आदत होती है वे केवल स्क्रीन के सामने ही खाना खाते हैं। यह भी एक प्रमुख कारण है जिससे बच्चों को खाने की गलत और अस्वास्थ्यप्रद आदतें लगती हैं। बच्चों को बचपन में खाने की जो आदतें लगती हैं वह पूरी उम्र उनको प्रभावित करती हैं।
7. जीवन कार्टून की आदत बच्चों के सामाजिक जीवन को प्रभावित करती है। वे अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलना पसंद नहीं करते तथा इसके कारण वे सामाजिक जीवन से अलग हो जाते हैं। जब भविष्य में उन्हें समाज के साथ घुलने मिलने का मौका आता है तो उन्हें परेशानी होती है।
8. मां बाप से ज़्यादा बच्चे आधुनिक होते हैं! कभी हमें भी टॉम जेरी पसंद आता था परंतु हमारे बच्चे कार्टून्स और वीडियो गेम्स के पीछे पागल हैं जो हिंसा पर आधारित होते हैं। यह कार्टून्स का बच्चों पर पड़ने वाला एक गंभीर प्रभाव है।
इसीलिए परिजनों के लिए जरूरी है कि वे अपने बच्चों में कार्टून का नशा पैदा नहीं होने दें। बच्चे कार्टून देखें लेकिन थोड़ी देर के लिए इजाजत दें। इसके बजाय बच्चों में आउटडोर या इनडोर गेम्स में रुचि पैदा करें जिसे वह अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेल सके।
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