शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा।
मिट्टी के बर्तन बनाने की उपयोगी कला आदिकाल से मानव-जीवन का हिस्सा बनी हुई है, और उसके काफी समय बाद इसने दुनिया की सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों को परिभाषित करने वाली कला का रूप ले लिया। आज इसे सिरेमिक आर्ट कहते हैं। मजे की बात यह है कि सदियां बीतने के बाद, आज के उच्च तकनीक वाले युग में भी मिट्टी के कलाकार नए दृष्टिकोण के साथ आधुनिकता से कदमताल मिलाते हुए आगे बढ़ रहे हैं। भोपाल की सुचिता राय मालवीय भी ऐसी ही कलाकार हैं। सिरेमिक कला के क्षेत्र में बहुत कम समय में उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। हाल ही में उन्हें प्रतिष्ठित कलानंद आर्ट कांटेस्ट के मध्य प्रदेश स्टेट अवार्ड से नवाजा गया है।
सुचिता राय मालवीय देशभर में लगभग सौ प्रतिष्ठित एग्जिबिशन्स में अपनी कलाकृतियों का प्रदर्शन कर चुकी हैं, और हर कहीं कलाप्रेमियों ने उनकी प्रतिभा, दृष्टिकोण और कल्पनाशीलता को खूब सराहा है। वह कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय वर्कशॉप में भी हिस्सा ले चुकी हैं। अपनी कला के लिए उन्हें 2017 मे एमपी स्टेट रुपांकर अवार्ड मिल चुका है. इसके अलावा सेंट्रल जोन गोल्ड अवार्ड-2016, सेंट्रल जोन सिल्वर अवार्ड-2017 समेत कई अवार्ड और स्कॉरशिप मिल चुकी है। सुचिता बताती हैं कि मेरा सिरेमिक वर्क सीधे तौर पर प्रकृति से मेरे प्यार और मेरी सृजनशीलता को दर्शाता है। मिट्टी को मैंने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है जिसको स्पर्श मैं महसूस कर सकती हूं और जिसे कोई भी आकार औऱ रूप दे सकती हूं।
सुचिता कॉमर्स की विद्यार्थी रहीं, और एमकॉम किया। इसके बाद, उन्होंने ड्राइंग-पेंटिंग से एमए करने का फैसला किया। पिता श्री अशोक राय जो एएसएम (भारतीय रेलवे) हैं और मां प्रतिभा राय ने बेटी की अपनी पसंद के क्षेत्र में जाने की इच्छा का सम्मान किया। 2011 में एमए करने करने के बाद सुचिता कालेज मे ही इंटर्नशिप कर रही थीं, इसी दौरान उन्हें भोपाल के भारत भवन जाने का अवसर मिला जहां सिरेमिक आर्ट की कलाकृतियों ने उन्हें इतना प्रभावित किया, कि इसे करियर के रूप में अपना लिया।
शुरू के दो साल उन्होंने इस कला को सीखने में कड़ी मेहनत की। कैसे सिरेमिक यानी मिट्टी तैयार करते हैं, , चाक कैसे चलाया जाता है, किस तरह1280 डिग्री के तापमान पर सिरेमिक वेयर को पकाया जाता है..इन सब पर बेसिक चीजों का बारीक अध्ययन किया। शुरू में उन्होंने साधारण चीजें बनाईं और फिर धीरे-धीरे अपनी इमेजिनेशन को एप्लाई कर मौलिक कलाकृतियां बनाने लगीं। महज दो साल के अंदर वर्ष 2013 में उन्हें उसी भारत भवन की दर्शिनी दीर्घा में सोलो एग्जीबिशन लगाने का सम्मान प्राप्त हो गया।
आज सुचिता किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। चाहे वह म्यूराल हो या कोरल, सर्विंग प्लेटर्स हों या टेबल वेयर, या फिर दीवारों पर सजाने शो-पीस हों, सुचिता की हर कलाकृति में उनकी मौलिकता झलकती है। उनके मधुमक्खियों वाले शो-पीस में खासतौर पर पसंद किए जाते हैं। अपनी इन कलाकृतियों के बारे में सुचिता कहती हैं कि वह मधुमक्खियों से प्रेरणा लेती हैं, जिस तरह वह शहद बनाती हैं और फूलों के खिलने में मदद करती हैं, वह उन्हें प्रेरित करता है। उन्हे मधुमक्खियों का वह श्रम भी प्रेरित करता है जिससे वह अपने शहद को सुरक्षित करने के लिए छत्ते की जादुई संरचना को रचती हैं, और अपनी संतति के साथ ही फूलों के जीवन की निरंतरता को भी सुनिश्चित करती हैं। इसीलिए मैने हमारी प्रकृति और हमारे जीवन में मधुमक्खियों के महत्व को ध्यान में रखते हुए अपनी ये कलाकृतियां तैयार की हैं।
आज सिरेमिक वेयर और कलाकृतियां बनाना महज कला ही नहीं है, बल्कि व्यवसाय की असीम संभावनाओं वाला क्षेत्र भी बन गया है। लेकिन, सुचिता धनार्जन के लोभ में अपना वर्क-लेवल नीचे लाने को तैयार नहीं है। वह नेशनल और इंटरनेशनल लेवल की कृतियां तैयार करती हैं, जिनकी लागत बहुत अधिक होती है, और खरीदार भी कम मिलते हैं।
सुचिता इसे अपना सौभाग्य मानती हैं कि उनके माता-पिता ने उनकी पसंदीदा क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद की, और फिर शादी के बाद पति राहुल मालवीय भी उन्हें प्रेरित करने के साथ ही उनका पूरा सपोर्ट भी करते हैं। ससुराल में सुचिता ने घर की छत पर एक वर्कशाप बना रखी है, जहां वह कलाकृतियां तैयार करने के साथ इस कला के नए कलाकारों को भी हुनर दे रही है।
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