शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा।
चाहे कृष्ण कहो या राम..नाम में क्या रखा है, नाम तो बस रूप का बोध मात्र है। श्री राधाजी कहती हैं कि दोनों (राम और कृष्ण) के नाम लेने का एक ही फल है..कल्याण..कल्याण और बस कल्याण। मंदिर श्री राधाकृष्ण प्रबंध समिति ने विगत दिवस बुजुर्गों द्वारा स्थापित एक महान परंपरा के निर्वहन में इसी से प्रेरित होकर अपनी कल्पनाशीलता से ऐसा ट्विस्ट दिया, कि श्रद्धालु दंग रह गए। भगवान राम के स्वरूपों के स्वागत में मंदिर के श्रीकृष्ण स्वयं राममय हो गए। कंधे पर गांडीव लटकाए बांसुरी बजाते श्रीकृष्ण की अदभुत छटा ने श्रद्धालुओं को अभिभूत कर दिया।
लोहामंडी में आलमगंज स्थित शिवहरे समाज की धरोहर मंदिर श्री राधाकृष्ण में दशहरे पर एक गौरवशाली परंपरा चली आ रही है। सेंट जोंस चौराहे पर रावण दहन के लिए जटपुरा से निकलने वाली भव्य शोभायात्रा पूरे मार्ग पर केवल मंदिर श्री राधाकृष्ण पर ही रुकती है। यहां भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण और रामभक्त हनुमान के स्वरूप कुछ देर विश्राम करते हैं। मंदिर प्रबंध समिति ने बीते रोज इस उपलक्ष्य में राधाकृष्ण की प्रतिमा का विशेष श्रंगार किया। मुरलीधर को आकर्षक हरी पोशाक में सजाकर उनके कंधे पर गांडीव भी सजा दिया गया। रात करीब साढ़े नौ बजे शोभायात्रा मंदिर पर पहुंची तो मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष अरविंद गुप्ता, उपाध्यक्ष अशोक शिवहरे अस्सो भाई, महासचिव मुकुंद शिवहरे और कोषाध्यक्ष कुलभूषण गुप्ता रामभाई ने कार्यकारिणी के अन्य सदस्यों के साथ भगवान के स्वरूपों और वानर सेना की अगवानी की। मंदिर परिसर में भगवान राम की आरती उतारी गई। स्वादिष्ट दूध से स्वागत किया गया।
इस दौरान मंदिर परिसर में पहुंचे विधायक श्री पुरुषोत्तम खंडेलवाल, पार्षद शरद चौहान और शोभायात्रा कमेटी के विनय अग्रवाल समेत अन्य आगंतुक राधाकृष्ण के राममय स्वरूप से एकबारगी दुविधा मे पड़ गए कि यह राममय श्रीकृष्ण हैं, या फिर कृष्णमय राम। कुछ देर विश्राम के बाद भगवान के स्वरूप और वानर सेना रवाना हो गई। प्रबंध कमेटी ने स्वरूपों को लिफाफा भेंटकर उन्हें विदाई दी।
बप्पू के आदेश का अब तक हो रहा है पालन
दरअसल मंदिर श्रीराधाकृष्ण में यह गौरवशाली परंपरा इसके निर्माण के साथ ही जु़ड़ी है। दरअसल स्व. श्री चिरंजीलालजी शिवहरे ईंटभट्टे वालों ने 1962 में मंदिर के लिए जमीन दान की थी और रातों-रात वृंदावन से राधाकृष्ण की प्रतिमा यहां स्थापित कराई थी। सम्मान में लोग उन्हें बप्पू कहते थे। अपने मृदु व्यवहार के चलते वह हरदिल अजीज थे और लोगों के दिल में उनके लिए बहुत सम्मान था। शिवहरे समाज ही नहीं, अन्य समाज के लोग भी बप्पू की बात को इतना तवज्जो देते थे कि उनके सुझाव को आदेश मान लेते थे। बुजुर्गों के मुताबिक, मंदिर निर्माण के बाद पहले दशहरे पर बप्पू ने जटपुरा स्थित राममंदिर से निकलते वाली इस शोभायात्रा के प्रबंधकों को सुझाव दिया था कि शोभायात्रा को संक्षिप्त विश्राम मंदिर परिसर में दिया जाए। ऐसा कभी हुआ नहीं था, शोभायात्रा का रास्ते में कहीं ठहराव नहीं था। लेकिन बप्पू कहें और मानी न जाए, ऐसा तो संभव ही नहीं था। लिहाजा उस साल पहली बार यह शोभायात्रा मंदिर परिसर में रुकी। तब से अब तक बप्पू की बात मानी जा रही है। शोभायात्रा आज भी कहीं नहीं रुकती, मंदिर श्री राधाकृष्ण के सिवाय।
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