November 22, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार

दीपावली पर लक्ष्मी ही क्यों..राम क्यों नहीं

शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा।
भारत को त्योहारों का देश भी कहा जाता है। यहां धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषीय और तमाम अन्य विविधताओं के बीच अनगिनत त्योहार मनाए जाते हैं। लेकिन, दीपावली की बात ही निराली है। कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाने वाली दीपावली दरअसल पांच दिन का दीपोत्सव है जो धनतेरस से आरंभ होकर दौज तक चलता है। इनमें कार्मिक मास की अमावस्या को दीपावली के रूप में मनाते हैं जो इस पंचोत्सव का सबसे अहम दिन होता है। कहा जाता है कि कार्तिक मास की अमावस्या को ही भगवान राम लंका दहन करके 14 साल के वनवास से लौटे थे, तब अयोध्या वासियों ने इस खुशी में दीप जलाकर प्रकाश किया था। तब सवाल यह कि अगर ऐसी बात है तो दीपावली पर भगवान राम की पूजा क्यों नहीं की जाती है, लक्ष्मीजी को क्यों पूजा जाता है। 

admin
दरअसल दीपावली ऐसा त्योहार है जिसे मनाए जाने का कोई एक कारण नहीं है, मनाने का कोई एक तरीका भी नहीं है। भारत में जन्मे हर धर्म में दीपावली का महत्व है। कहा जाता है कि देवी लक्ष्मी कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही समुद्र मंथन से अवतरित हुई थीं। अतः इस दिन यानी कार्तिक अमावस्या के दिन दीपावली मनाते हैं और लक्ष्मीजी की पूजा करते हैं। चलो यह तो रही लक्ष्मी पूजन की बात, अब सवाल उठता है कि गणेशजी की पूजा क्यों होती है। गणेशजी बुद्धि के देवता माने जाते हैं और लक्ष्मीजी धन की देवी। यदि बुद्धि और विवेक न हो तो धन व्यक्ति को मदांध कर सकता है। इसलिए गणेशजी और सरस्वती की पूजा साथ की जाती है। वैसे भी भगवान गणेश प्रथम पूज्य देवता हैं तो किसी भी पूजा से पहले उनकी पूजा अनिवार्य होती है।

admin
एक अन्य मान्यता है कि राक्षसों का वध करने के लिए मां देवी ने महाकाली का रूप धारण किया था लेकिन राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ, तो भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई। इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान है।

admin
दीपावली की एक कथा भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास की अमावस्या को ही राक्षसों के राजा नरकासुर का वध करके सोलह हजार स्त्रियों को मुक्त कराया था। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की 16008 रानियां थीं, इनमें 16000 पटरानियां नरकासुर के चंगुल से मुक्त कराई गईं स्त्रियां थीं। 

admin
एक अन्य मान्यता यह है कि महाभारत काल में पांडव पुत्र इसी दिन 12 वर्ष का वनवास काटकर लौटे थे। आपको पता होगा कि कौरवों और पांडवों के बीच द्युत यानी जुआ खेला गया था जिसमें पांडव अपना सबकुछ हार गए थे। और, उन्हे 12 वर्ष के वनवास पर जाना पड़ा था। 

admin

दीपावली के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं लेकिन अन्य धर्मों में भी इसका महत्व है। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के समर्थकों एवं अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में हजारों-लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई थी।

admin
जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने भी दीपावली के दिन ही बिहार के पावापुरी में अपना शरीर त्यागा था।  महावीर-निर्वाण संवत्‌ इसके दूसरे दिन से शुरू होता है। इसलिए अनेक प्रांतों में इसे वर्ष के आरंभ की शुरुआत मानते हैं। 

admin
1619 में सिक्ख गुरु हरगोबिंदजी को ग्वालियर के किले से 52 राजाओं के साथ मुक्त किया गया था जिन्हें मुगल बादशाह जहांगीर ने नजरबंद करके रखा था। इसे सिक्ख समाज बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है। इसके अलावा स्वर्ण मंदिर के निर्माण का शुभारंभ भी दीपावली के दिन हुआ था।

ऐतिहासिक तथ्यों की बात करें तो कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही उज्जैन के न्यायप्रिय राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था विक्रमादित्य को उनकी प्रजा भगवान के बराबर मानती थी। 

admin
30 अक्टूबर 1983 को कार्तिक मास की अमावस्या पर ही महर्षि दयानंद सरस्वती के आर्य समाज की स्थापना की थी।  महर्षि दयानन्द ने दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। 
 

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video