शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा।
आगरा में शिवहरे समाज 3 नवंबर को भगवान सहस्त्रबाहु का जन्मोत्सव मनाएगा। शिवहरे समाज की धरोहर मंदिर श्री दाऊजी महाराज में सहस्त्रबाहु जन्मोत्सव प्रातः 10 बजे पूजन के साथ शुरू होगा और विचारगोष्ठी के बाद दोपहर 1 बजे भोजन के साथ समापन होगा। आगरा में सहस्त्रबाहु जन्मोत्सव की परंपरा दो साल पहले से शुरू हुई है, अच्छी बात यह है कि लगातार तीसरे वर्ष यह आयोजन किया जा रहा है। जिन लोगों को भगवान सहस्त्रबाहु के आगरा की भूमि से जुड़े पौराणिक उल्लेखों की जानकारी है, उन्हें इस पर आश्चर्य हो सकता है। आगरा में रुनकता के पास झगड़ैला ताल आज भी भगवान सहस्त्रबाहु और परशुराम के बीच हुए भयानक युद्ध की गवाही देता है।
आगरा का रुनकता भगवान परशुराम की जन्मभूमि है, और यहां उनके पिता जमदग्नि अपने विशाल आश्रम में रहते थे। जमदग्नि और भगवान सहस्त्रबाहु के बीच साढ़ू का रिश्ता था यानी सहस्त्रबाहु दरअसल परशुराम के मौसा थे।
सहस्त्रबाहु एक शूरवीर और प्रतापी राजा थे। उन्होंने एक बार नर्मदा नदी के तट पर लंकापति रावण को बंधक बनाकर उसके अभिमान को चूर-चूर कर दिया था। इसके बाद से सहस्त्रबाहु के शौर्य की धाक पूरी दुनिया में जम गई।
पौराणिक उल्लेख यह है कि राजराजेश्वर सहस्त्रबाहु अर्जुन एक बार अपनी सहस्त्रणी सेना के साथ एक सामरिक अभियान से अपनी राजधानी महिष्मति लौट रहे थे। रास्ते में रुनकता पहुंचने पर उनकी सेना ने विश्राम की इच्छा प्रकट की। सहस्त्रबाहु ने अपने साढ़़ू जमदग्नि के आश्रम में विश्राम लिया।
उस समय जमदग्नि के पुत्र परशुराम आश्रम में नहीं थे। सहस्त्रणी सेना की खातिरदारी के इंतजाम को लेकर जमदग्नि असमंजस में थे, लेकिन उनकी कामधेनु गाय ने समस्या का समाधान कर दिया। कामधेनु गाय की मदद से जमदग्नि ने सहस्त्रबाहु की सेना की खूब खातिरदारी की, खान-पान का राजसी प्रबंध किया।
कानधेनु का यह चमत्कार देख सहस्त्रबाहु अर्जुन उस पर मुग्ध हो गए और जमदग्नि से कामधेनु मांग ली। जमदग्नि इसके लिए राजी नहीं हुए तो सहस्त्रबाहु ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे कामधेनु को बलपूर्वक अपने साथ ले चलें। सहस्त्रबाहु के आदेश पर उनकी सेना ने कामधेनु को कब्जे में ले लिया और महिष्मती की ओर रुख कर दिया।
कुछ ही देर बाद परशुराम आश्रम में पहुंचे तो कामधेनु को आश्रम में न पाकर क्रुद्ध हो गए। पूरे घटनाक्रम की जानकारी होने परशुराम आगबबूला हो उठे और अपना परशु कंधे पर रखकर महिष्मती की ओर चल पड़े। कुछ ही दूर झगड़ैला ताल पर परशुराम का सामना सहस्त्रबाहु और उनकी सेना से हो गया, जो पानी पीने के लिए वहां रुके थे। झगड़ैला ताल पर ही भीषण युद्ध हुआ जिसमें सहस्त्रबाहु की सेना को परास्त होना पड़ा
हालांकि भगवान सहस्त्रबाहु के जीवन की इस महत्वपूर्ण घटना से जुड़े होने के बाद भी आगरा में सहस्त्रबाहु जयंती मनाने की परंपरा दो वर्ष से ही शुरू हुई है। पहला आयोजन 2017 में मंदिर श्री दाऊजी महाराज में हुआ था, जबकि दूसरा आयोजन गत वर्ष लोहामंडी स्थित मंदिर श्री राधाकृष्ण में किया गया था।
मंदिर श्री दाऊजी महाराज प्रबंध समिति के अध्यक्ष भगवान स्वरूप शिवहरे ने सभी समाजबंधुओं को अपने इष्टदेव के जन्मदिवस पर उनकी पूजा-अर्चना के लिए आमंत्रित किया है। इस बार जन्मोत्सव में अधिक से अधिक स्वजातीय बंधुओं को जोड़ने का प्रयास समिति द्वारा किया गया है। समाजबंधुओं को पैपलेट्स वितरित किए गए हैं, व्यक्तिगत रूप से भी आमंत्रित किया है। मंदिर श्री राधाकृष्ण प्रबंध समिति, शिवहरे-जायसवाल युवा मंच, शिवहरे समाज एकता परिषद, दाऊजी महाराज महिला समिति और शिवहरे महिला समिति के पदाधिकारी एवं सदस्यों को भी आयोजन में आमंत्रित किया है।
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