November 25, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाज

हिचक किस बात की…थम क्यों गई आगरा के शिवहरे समाज की पहल

शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा। 
हमारे जीवन को आसान बनाना ही तकनीकी का लक्ष्य होता है। जरा सोचिये…क्या हम तकनीकी का सही प्रयोग कर रहे हैं, जो  हमारे पढ़े-लिखे, ज़हीन और प्रगतिशील होने की तस्दीक भी है। हमारे पास अब मोबाइल और स्मार्टफोन्स के रूप में ऐसा सशक्त माध्यम है जिससे सूचनाओं का त्वरित प्रसार कर सकते हैं। व्हाट्सएप जैसे एप्लीकेशन भी हैं जिसने सूचनाओं के साथ भावनाओं के आदान-प्रदान को भी संभव बना दिया है। फिर हिचक किस बात की है? यूं सड़कों पर जाम में फंसने, पसीना बहाने, धूल-धक्कड़ खाने, पेट्रोल बर्बाद करने और वक्त जाया करने की जरूरत क्या है?
संदर्भ यह है कि इन दिनों शादियों का सीजन चल रहा है। आगरा में कई शिवहरे परिवारों में शादी के संयोग हैं। एक शादी में सौ-सौ काम होते हैं…बाजार से वाजिब दामों में भारी खरीदारी, वैन्यू का इंतजाम, खान-पान, मेहमानों की आवभगत और ठहराने की व्यवस्था जैसे कई झमेले हैं। लेकिन शादी वाले हर घर के मर्दों की मजबूरी है कि शादी से ऐन पहले, जब इन इंतजामों को अंतिम रूप देने की बारी आती है, तब उन्हें ये सारे काम छोड़कर परिचितों को इनविटेशन कार्ड देने के लिए निकलना पड़ता है। 
आपके हाथ में मोबाइल या स्मार्टफोन है, मित्रों और रिश्तेदारों के नंबर हैं तो इस कवायद की जरूरत क्या है। खासकर तब, जबकि यह उपयोगी पहल हो चुकी है, जब नाई की मंडी निवासी कांट्रेक्टर नवनीत गुप्ता ने इस साल फरवरी में अपनी बहन अनीता की शादी में कार्ड न छपवाते हुए सभी मित्रों और रिश्तेदारों को व्हाट्सएप से ई-कार्ड भेजकर निमंत्रित किया था। और उत्साहनजक बात यह थी कि सभी ने ई-कार्ड को व्यक्तिगत निमंत्रण मानते हुए शादी समारोह में शिरकत की। लेकिन, यह पहल वहीं थमकर रह गई। 
आगरा में लोहामंडी स्थित शिवहरे समाज की धरोहर मंदिर श्री राधाकृष्ण के अध्यक्ष श्री अरविंद गुप्ता का कहना है कि यह एक शानदार पहल थी जिसे अब तक परंपरा बन जाना चाहिए था। उनका मानना है कि समाज के सभी जिम्मेदार लोगों को बैठक कर ई-कार्ड को मान्यता देने का प्रस्ताव पारित करना चाहिए, साथ ही लोगों को ऐसा करने के लिए लोगों को प्रेरित भी किया जाना चाहिए। 
बता दें कि देशभर में कई समाजों ने इस तरह के संकल्प लिए है, खासकर दिल्ली और हरियाणा में ई-कार्ड का चलन अब आम होता जा रहा है। ई-कार्ड के कई फायदे हैं। एक तो यह इको-फ्रेंडली हैं, क्योंकि इससे प्लास्टिक और कागज का इस्मेमाल बच जाता है। दूसरे,  देवी-देवताओं को अपमान भी नहीं होता क्योंकि हर कार्ड में देवी-देवता का चित्र या श्लोक छापा जाता है और महंगे से महंगा कार्ड अंततः कूड़ेदान में अंतिम आश्रय पाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें छपाई का खर्च नहीं होता और कीमती समय बचता है।
नवनीत गुप्ता बताते हैं कि इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपनी बहन की शादी में ई-कार्ड का विकल्प अपनाया था। वह कहते हैं कि शुरू में ई-कार्ड का निर्णय लेते समय उन्हें भी हिचक हो रही थी, लेकिन फिर सोचा कि आज नहीं तो कल, ई-कार्ड तो चलन में आकर ही रहेगा, क्यों न हम ही पहल कर दें।
हर समाज में एक वर्ग ऐसा होता है जो परपंराओं से हटने का विरोध करता है। हाल ही में हरियाणा के हिसार से एक समाचार आया था कि एक व्यक्ति को अपने मित्र की ओर से ई-कार्ड निमंत्रण भेजना रास नहीं आया। वह इतना खिसिया गया कि शादी समारोह में नहीं गया, और शगुन के तौर पर दो हजार रुपये के नोट का फोटो व्हाट्सएप से भेजकर अपनी खुन्नस निकाली। लेकिन, कैसी भी नकारात्मक प्रतिक्रिया किसी अच्छी पहल को रोक नहीं सकती। उपयोगिता अपना रास्ता स्वयं बना लेती है। 
ई-कार्ड के लिए जरूरी है कि आपके पास अपने सगे-संबंधियों, रिश्तेदारों और दोस्तों के, जिन्हें आपको निमंत्रित करना है, मोबाइल नंबर होने चाहिए। स्वयं या किसी अच्छे डिजाइनर से ई-कार्ड बनवाइये और उनके नंबरों पर भेज दीजिये। बाद में एक-एक करके सभी को कॉल कर उन्हें भेजे ई-कार्ड का हवाला देते हुए औपचारिक रूप से निमंत्रित कर दीजिये। कोई तकनीकी दिक्कत हो या समाज के किसी व्यक्ति का नंबर नहीं मिल पा रहा हो, तो शिवहरेवाणी आपकी सहायता के लिए हमेशा तत्पर है। 

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