February 22, 2025
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार

विष्णु पुराण सीरियल के खिलाफ एकवोकेट आरके जायसवाल ने तेज की कानूनी जंग

शिवहरे वाणी नेटवर्क
प्रयागराज। 
राष्ट्रीय टीवी चैनल डीडी भारती पर धारावाहिक 'विष्णु पुराण' जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे इसके विवादित एपीसोड्स (43 से 61 तक)  के प्रसारण पर रोक लगाने की कलचुरी समाज की मांग भी जोर पकड़ती जा रही है। आरोप है कि इन एपीसोड्स में कलचुरी समाज के आराध्य श्री सहस्त्रबाहु अर्जुन के चरित्र को बेहद आपत्तिजनक, अपमानजनक, असत्य, भ्रामक और मनगढ़ंत तरीके से फिल्माया गया है, जो विष्णु पुराण के मूल पाठ के विपरीत भी है। 
कलचुरी समाज के विभिन्न संगठनों की ओर से इसे लेकर लगातार ज्ञापन दिए जा रहे हैं,  सोशल मीडिया पर भी आवाज उठाई जा रही है। और इन सबके बीच सबसे अहम लड़ाई कानूनी मोर्चे पर लड़ी जा रही है। वरिष्ठ अधिवक्ता आरके जायसवाल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपनी 17 वर्ष पुरानी लंबित याचिका पर शीघ्र सुनवाई के लिए एक अर्जेंसी एप्लीकेशन दाखिल करने की तैयारी कर ली है। 
एडवोकेट आरके जायसवाल के मुताबिक, दोनों पक्षों की ओऱ से जवाबों (काउंटर-रिज्वाइंडर) के आदान-प्रदान के बाद अब मामले की सुनवाई अंतिम चरण में है। उन्होंने कलचुरी समाजबंधुओं से धैर्य बनाए रखने की अपील करते हुए आश्वस्त किया है कि मामले में आवश्यकता होने पर सुप्रीम कोर्ट के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ अधिवक्ताओं को बहस के लिए लाया जाएगा। 
बहरहाल, बुधवार तक सीरियल के 13एपीसोड प्रसारित हो चुके हैं। देखना यह होगा कि इस सीरियल के विवादित एपीसोड्स के प्रसारण पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय क्या निर्णय करता है? कलचुरी समाज की भावनाओं का सम्मान करते हुए इस धारावाहिक पर रोक लगाई जाएगी या उनकी वाजिब मांग को अनसुना कर दिया जाएगा? और, क्या एडवोकेट आरके जायसवाल की कानूनी लड़ाई समय रहते अपने अंजाम पर पहुंच पाएगी?
राष्ट्रपति पदक प्राप्त वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट आरके जायसवाल ही इस कानूनी लड़ाई के प्रमुख सूत्रधार हैं। उन्होंने अगस्त, 2003 में माननीय इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी। जैसा कि एडवोकेट जायसवाल ने शिवहरे वाणी को बताया, इसके लिए उन्होंने 18 पुराणों, महाभारत, वाल्मीकि रामायण, रामचरित मानस आदि 22 ऐसे ग्रंथों में सहस्त्रबाहु अर्जुन के उल्लेखों का अध्ययन किया। 
इन सभी ग्रंथों में सहस्त्रार्जुन के चरित्र को एक पराक्रमी, दानवीर, प्रजापालक, हजारों अश्वमेध यज्ञ करने वाले चक्रवर्ती सम्राट, शरणागत आश्रयदाता, लोकप्रिय एवं न्यायप्रयि राजा के रूप में चित्रित किया गया है। इस तरह कई महीनों के अथक प्रयासों के बाद उन्होंने इन ग्रंथों से प्राप्त तथ्यों के आधार पर एक सशक्त जनहित याचिका तैयार की, जिसमें सीरियल के विवादित एपीसोड को रोकने, उसके कैसेट को नष्ट करने, पुनः सही तथ्यों के आधार पर सीरियल का निर्माण करने और हर्जाने की मांग की। 
एडवोकेट जायसवाल के मुताबिक, विष्णु पुराण धारावाहिक के निर्माता निर्देशक बीआर चोपड़ा ने केवल पैसा कमाने की गरज से मुंबइया स्टाइल में भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन के चरित्र को मनगढ़ंत कहानियों के आधार पर विकृत करके प्रस्तुत किया गया है। यहां तक कि एक स्थान पर हमारी धार्मिक भावनाओं को आहत करते हुए सहस्त्रबाहु अर्जुन को राक्षसी काली पोशाक पहनाकर शराबी की मुद्रा में दिखाते हुए उन्हें बलात्कारी और आततायी कहा गया है। 
अखिल भारतीय सहस्त्रार्जुन प्रसार समिति (रजि.) के महासचिव एडवोकेट आरके जायसवाल ने यह पूरा केस अपने नाम से और अपने खर्चे पर तैयार किया। मामले की पहली सुनवाई 21 अगस्त, 2003 को हुई, जिसमें याची अधिवक्ता आरके जायसवाल और विपक्षी अधिवक्ता की बहस सुनने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीआर चोपड़ा एंड कंपनी के 8 पक्षकारों, भारत सरकार और दूरदर्शन सहित सभी विपक्षियों को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह के अंदर जवाब दाखिल करने के आदेश दिए थे।  इसके बाद सीरियल का प्रसारण दूरदर्शन से बंद हो गया। 
उधर, प्रतिवादी पक्ष की ओर से अदालत में जवाब (काउंटर एफिडेविट) दाखिल कर दिया गया, जिसके बाद याची ने भी का जवाब (रिज्वाइंडर एफिडेविट) दाखिल कर दिया। लेकिन, केस के सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने से पहले ही बीआर चोपड़ा का देहांत हो गया, जिसकी सूचना विपक्षी वकील ने याची और अदालत को समय पर नहीं दी। इस बीच केस 9 अक्टूबर, 2012 को सुनवाई हेतु सूचीबद्ध हो गया। एडवोकेट आरके जायसवाल को जैसे ही पता चला कि केस के विपक्षी संख्या-3 बीआर चोपड़ा का निधन हो चुका है तो उन्होंने तत्काल श्री संतोष कुमार जायसवाल को मुंबई भेजकर बीआर चोपड़ा के विधिक उत्तराधिकारियों के नाम-पते की जानकारी हासिल की और उन्हें बीआर चोपड़ा के स्थान में प्रतिस्थापित करने हेतु एक प्रार्थना पत्र निर्धारित समयसीमा के अंदर 8 नवंबर, 2012 को हाईकोर्ट में दाखिल कर दिया। इसके बाद से यह केस लंबित है, जिसका स्टेटस इलाहाबाद हाईकोर्ट की वेबसाइट पर भी देखा जा सकता है।
 

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