नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, हिमालय जो अडिग है। यही अडिगता एक भक्त के मन में भगवान के प्रति होनी चाहिए जिसे कोई हिला नहीं सके।
मां शैलपुत्री को सती के नाम से भी जाना जाता है। इनकी प्रचलित कथा यह है कि एक बार सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने यज्ञ कराया। उन्होंने सभी देवी-देवताओं को निमंत्रित किया लेकिन भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। देवी सती यज्ञ में जाना चाहती थी लेकिन भगवान शिव ने मना कर दिया कि उनके पास कोई भी निमंत्रण नहीं आया है, इसलिए वहां जाना उचित नहीं है। इसके बाद भी सती बार बार यज्ञ में जाने का आग्रह करती रहीं। शिव को उनकी बात माननी ही पड़ी ।
सती जब प्रजापित दक्ष के यहां पहुंची तो देखा कि कोई उनसे आदर और प्रेम से बात नहीं कर रहा है। बहनें उपहास उड़ा रहीं थीं और स्वयं दक्ष ने भी अपमान करने का मौका ना छोड़ा। सती को अपना और अपने पति का अपमान सहन नहीं हुआ और उसी यज्ञ की अग्नि में स्वयं को स्वाहा कर दिया। भगवान शिव को जब यह पता चला तो उनके दुख और गुस्से का पारावार न रहा, और उस यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। इसी सती ने फिर हिमालय के यहां जन्म लिया और वहां जन्म लेने की वजह से इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।
मां शैलपुत्री का वास काशी में माना जाता है, जहां उनका बहुत प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि यहां मां शैलपुत्री के दर्शन से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। यह भी मान्यता है कि नवरात्र के पहले दिन जो भक्त मां शैलपुत्री के दर्शन करता है उसके सारे वैवाहिक जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं। मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ है इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। इनके बाएं हाथ में कमल और दाएं हाथ में त्रिशूल रहता है।
पूजा में सबसे पहले मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचे लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं। इसके ऊपर केशर से ‘शं’ लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। तत्पश्चात् हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करते हुए “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।” मंत्र का जाप करें और उसके बाद हाथ के पुष्प मनोकामना गुटिका एवं मां के तस्वीर के ऊपर छोड़ दें। इसके बाद प्रसाद अर्पित करें तथा “ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।”का जप कम से कम 108 बार करें। मंत्र संख्या पूर्ण होने के बाद मां दुर्गा के चरणों में अपनी मनोकामना व्यक्त करके मां से प्रार्थना करें।
मान्यता है कि मां शैलपुत्री का प्रसन्न करने के लिए ध्यान मंत्र जपना चाहिए। इसके प्रभाव से माता प्रसन्न होती हैं और भक्त की कामनाएं पूर्ण करती हैं।
ध्यान मंत्र
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
अर्थात- देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।
स्तोत्र पाठ
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥








Leave feedback about this