(शिवहरेवाणी के लिए पवन नयन जायसवाल का आलेख)
कुछ महीने पहले सोशल मीडिया पर एक बयान में एक क्रिकेटर के लिए उसकी पूर्व पत्नी ने कहा- “उसका चेहरा तो कुत्ते के जैसा है लेकिन उसे पत्नी चाहिए थी कैटरीना कैफ जैसी। अब उस क्रिकेटर का करोड़ों रुपए चुकाकर विवाह संबंध विच्छेद हो चुका है। किसी मैच में उस क्रिकेटर को खेलता देखकर उसकी पूर्व पत्नी का बयान बार-बार याद आता है। उसका अपने पूर्व पति के प्रति ऐसी प्रतिक्रिया देना मुझे उचित नहीं लगा लेकिन लड़की भी कहीं दुखी होगी तभी तो वह सारी हद पार कर ऐसा कह रही है।
यह उदाहरण मैं इसलिए दे रहा हूँ क्योंकि आजकल हर विवाह योग्य युवक-युवती अपना जोड़ीदार फिल्मी हीरो-हीरोइन की तरह चाहते हैं। सपने देखना बुरा भी नहीं है लेकिन उससे पहले उन्होंने अपनी कद-काठी, शक्ल-सूरत, रंग-रूप, काया और उम्र का ध्यान रखते हुए जीवन की वास्तविकता को, धरातल की सच्चाई को स्वीकार करना भी जरूरी है। बहुत बार लड़की को नापसंद करने पर लड़की के माता-पिता के मुंह से यह शब्द सुनने को मिलते हैं कि “पहले अपनी सूरत तो एक बार आइने में देख लेते?”
माँ-बाप की संपत्ति या अपने नौकरी के ‘पैकेज’ के घमंड के कारण आजकल विवाह का जुड़ना बहुत कठीन कार्य हो गया है। कमाई करने वाली संतानें माँ-बाप या परिवार, नाते-रिश्तेदारों की बात को सुन नहीं रहीं और ‘इससे अच्छा’, ‘इससे और अच्छा’ मिलने की चाहत में प्रतिक्षारत बच्चे अधेड़ हो रहे हैं। स्वजातीय वैवाहिक समूहों पर ‘बायोडाटा’ में उम्र पढ़कर अब तो डर भी लगने लगा है। कई बार तो बताई गई उम्र भी गलत होती है। आजकल विवाह ना होने का सबसे बड़ा कारण असिमित अपेक्षा ही है। करीब-करीब सभी बायोडाटा में ‘हैडसम’ लड़का और ‘ब्यूटीफुल’ लड़की की चाहत और अपेक्षा होती है भले ही वह खुद और उनके परिवार में कोई भी व्यक्ति ‘हैडसम’ और ब्यूटीफुल ना हो। अपने ‘पैकेज’ में ‘पैक’ बच्चों के लिए बड़ी-बड़ी अपेक्षा करनेवाले कई माता-पिता तो ऐसे भी होते हैं जिन्होंने खुद दसवीं तक भी पढ़ाई नहीं की है और ना ही उनकी दूसरी संतानें उच्च शिक्षित हैं। इसी चक्कर में युवा लड़के-लड़कियाँ अधेड़ होते जा रहे हैं।
इस बार हमारे अमरावती महानगर के भगवान श्री सहस्रार्जुन मंदिर परिसर में आयोजित सहस्रार्जुन जन्मोत्सव कार्यक्रम में अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में मैंने इसी बात को प्रमुखता से रखते हुए कहा कि “आज समाज के सामने यह सबसे बड़ी समस्या है।” जिसे मेरे साथ मंच पर विराजमान अन्य अतिथियों ने भी अपने उद्बोधन में इस विषय पर अपने विचार रखे।
विशेष बात यह है कि हमारे ज्यादातर फिल्मी हीरो-हीरोइन के अपने जीवन साथी हीरो-हीरोइन की तरह ना ‘हैंडसम’ होते हैं और ना ही ‘ब्यूटीफुल’, इसके ढेर सारे उदाहरण हमारे सामने है। ‘रील’ और ‘रीयल’ जीवन को वह अच्छी तरह समझते हैं।
एक अपरिचित स्वजातीय द्वारा छह वर्ष में छह बार एक लड़की का ‘बायोडाटा’ योग्य चुनाव के लिए बहुत बड़ी-बड़ी अपेक्षा, परिवार उच्च शिक्षित, कुछ सदस्य विदेश में स्थाई और बड़े पदों पर जैसी पृष्ठभूमि के साथ मुझे प्राप्त हो रहा है। इस बीच उस लड़की का दो-तीन बार ‘पैकेज’ भी बढ़ गया लेकिन आश्चर्य उसकी उम्र दो-तीन दिन भी आगे नहीं बढ़ी। उस बायोडाटा में हर बार वही पुराने फोटो के साथ जन्मतिथि की जगह उम्र लिखी होती है।
अपने बच्चों के विवाह के लिए योग्य रिश्ता बताने के लिए बड़ी-बड़ी अपेक्षा वाले बायोडाटा माता-पिता अपने परिचित और रिश्तेदारों को भेजते हैं तो रिश्ते बताने और जोड़ने में निपुण व्यक्ति भी उसे देखकर हताश और निराश हो जाते हैं। यही कारण है कि आजकल कोई इस कार्य में आगे नहीं आता और ना ही कोई रिश्ता बताता है। अभी कुछ दिन पहले स्वजातीय समूहों में एक लड़की का बायोडाटा देखकर तो सिर ही चकरा गया। अपेक्षा में लिखा था लड़का भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में हो। मजे की बात यह है कि लड़की स्नातक पाठ्यक्रम का अंतिम वर्ष की छात्रा है। ऐसे में आप ही सोचिए IAS, IPS, IRS गजेटेड अधिकारी की अपने लिए क्या अपेक्षा हो सकती है?
पिछले वर्ष एक कार्यक्रम में एक स्वजातीय से मुलाकात होने पर मैंने सहज ही पुछ लिया बेटे का विवाह हो गया? उनके “अभी नहीं” कहने पर मैंने पूछा- “क्यों देरी कर रहे हो भाई?” तो वह बोले- “हम तो करने को तैयार बैठे हैं लेकिन कोई लड़की वाला ही रिश्ता लेकर नहीं आता।” विशेष बात यह है कि उच्च शिक्षित परिवार का उच्च शिक्षित, विदेश में बड़े पैकेज पर कार्यरत लड़का उस समय तक 35-36 वर्ष का हो चुका था। पता नहीं अब भी उसका विवाह हुआ या नहीं।
*बहुत से व्यक्ति अपने उच्च शिक्षित और बड़े पैकेज वाले बेटा-बेटी के बारे में गर्व से कहते हैं- “अपने समाज में उसके योग्य कोई मिल ही नहीं रहा।” तब भारत भूमि पर करोंड़ों की जनसंख्या वाला समाज भी छोटा लगने लगता है। अगर आप भी मेरी तरह सामाजिक क्षेत्र में और समाज संगठनों में कार्य करने वाले व्यक्ति हैं तो निश्चित ही आप भी इन अनुभवों से गुजर चुके होंगे ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।
अंत में- हो सकता मेरे इस लेख को पढ़कर कुछ लोगों को बुरा लगे। सच तो यह है कि मैंने लिखा भी इसलिए ही है कि ‘चयन प्रक्रिया में निष्णात’ ऐसे व्यक्तियों को बुरा लगे क्योंकि सच कड़वा होता है और वह कड़वा लगना भी चाहिए। ऐसे व्यक्ति अपने बच्चों के भविष्य के साथ-साथ प्रकृति और धर्म के साथ भी अन्याय कर रहे हैं।
पवन नयन जायसवाल
सुसंवाद, संदेश-94217 88630
अमरावती, विदर्भ, महाराष्ट्र
समाचार
समाज
साहित्य/सृजन
विवाह तय करने में सबसे बड़ी रुकावट है अपेक्षा
- by admin
- November 11, 2025
- 0 Comments
- Less than a minute
- 1 month ago









Leave feedback about this