December 14, 2025
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
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स्वतंत्रता की सुगंध, दुर्गंध में बदलने से पहले…

—–पवन नयन जायसवाल—–
मेरे महानगर के सांस्कृतिक समारोह में आमंत्रित एक महिला वक्ता द्वारा ‘मेरी दृष्टि में स्त्री स्वतंत्रता- आज के संदर्भ में’ इस विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में “आज हम बेटी को स्वतंत्र बनाने के प्रयास में, उसे स्त्री बनाना ही भूल गए।” इस महत्वपूर्ण बात को कहते हुए अपने उद्बोधन का प्रारंभ किया। उसने अपने संबोधन में आगे बताया, मैं एक ज्योतिषाचार्या हूँ। प्रतिदिन मेरे पास अनेक माता-पिता अपनी संतानों की समस्याएँ लेकर आते हैं विशेषकर अपनी बेटियों के विवाह को लेकर और दुखी मन से कहते हैं “मैडम, हमारी बेटी 30 वर्ष की हो गई है, लेकिन अभी तक शादी के लिए तैयार नहीं है।” कभी कोई कहता है “हम जो भी कहते हैं, उसकी ज़िंदगी में हमारी कोई बात मायने ही नहीं रखती।” कुछ लोग हताशा में यह भी कहते “अब तो लगता है जैसे वो हमारी बेटी रही ही नहीं।” दुर्भाग्यवश, ऐसे मामलों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। जब मैंने इन समस्याओं को गहराई से समझने का प्रयास किया, तो मेरे अनुभव और अंतर्मन ने जो उत्तर दिए उन्हें आज मैं आप सभी के साथ साझा करने के लिए आयी हूँ।
समाज में रहते हुए और संगठन के पदाधिकारी के रूप में कार्य करते हुए हम भी देखते हैं कि आजकल माता-पिता की यह आम शिकायत होती है कि हमारी संतानें हमारी नहीं सुनतीं, उनके जीवन में हम जैसे महत्वहीन हो गए हैं। पर क्या इसमें केवल बच्चों की गलती है? नहीं। जिस उम्र में उसके मन में ममता, सहनशीलता और त्याग के बीज बोने थे, हमने वहां केवल महत्वाकांक्षा का जंगल उगा दिया। सबसे बड़ी गलती वहां हुई, जब आपने अपनी बेटी को सिर्फ़ आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा, पर उसे ‘एक स्त्री’ बनाना ही भूल गए। मैं यह नहीं कह रहा कि शिक्षा देना या स्वतंत्र बनाना गलत है। मेरे ही परिवार में हम दोनों भाई की तीनों बेटियां उच्च शिक्षित हैं और नौकरी भी कर रही हैं पर यह सोच कि जीवन में केवल नौकरी, पदोन्नति और आत्मनिर्भरता ही सब कुछ है, स्वयं एक बड़ी भूल बन जाती है। आज समाज में हम क्या देख रहे हैं? विवाह में अनावश्यक देरी। लड़कियों द्वारा विवाह के लिए अत्यधिक और अव्यवहारिक शर्तें। विवाहित जीवन में असंतुलन और अलगाव, और यहां तक कि एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर।
मां-बाप ने उसे सिर्फ़ आकाश में उड़ना सिखाया, उसे लौटकर अपने घोंसले में आना नहीं सिखाया तो उसने भी लौटकर आना ही नहीं सीखा। बचपन से ही बेटियों को सिखाया गया, पहले पढ़ाई पूरी करो। अब इतना पढ़ लिया है, तो नौकरी भी करनी ही होगी। इतना खर्च और समय लगाया है, तो कुछ बनकर दिखाना भी ज़रूरी है। जब नौकरी मिल गई तो लड़की ने कहा- अब करियर की ग्रोथ ज़रूरी है, प्रमोशन आने वाला है। अभी शादी नहीं करूंगी। शादी तभी करूंगी जब लड़का मेरे शहर में काम करता हो। मैं क्यों अपनी नौकरी छोड़ूं? वो छोड़े। मैं किसी के लिए एडजस्ट नहीं करूंगी।
इस बीच उम्र बढ़ती जाती है। मां-बाप की भी और बेटी की भी। और, साथ ही बढ़ता जाता है तनाव। लेकिन अब बेटियों को इससे कोई अंतर ही नहीं पड़ता। माता-पिता कहते हैं- “हमारी बेटी अब हमारी रही ही नहीं। उसके अंदर हमारे लिए कोई भावना, कोई संवेदना ही नहीं बची है।” पर सोचिए, ऐसा हुआ क्यों? इसलिए कि जब उसके मन और चरित्र में ‘नारी के संस्कार’ रोपित करने का समय था, तब हमने उसके दिमाग़ में एक ही बात बैठा दी कि “तुम्हें अपनी ज़िंदगी खुद बनानी है, तुम्हें किसी पर निर्भर नहीं रहना है।” और इसी प्रक्रिया में उसके भीतर से स्त्रियोचित कोमलता, संवेदनशीलता, त्याग और समर्पण, परिवार के लिए अपनापन, ये सब धीरे-धीरे मिटते चले गए और आज वही बेटी इतनी ‘स्वतंत्र’ हो गई है कि ना उसे माता-पिता की ज़रूरत है, ना जीवनसाथी की।
हमने बेटी को मज़बूत बनाया, लेकिन मुलायम दिल छीन लिया। अब वो जीवन के फैसले लेती है पर दिल से नहीं, दिमाग से। मेरी यह बात न तो बेटियों की शिक्षा के विरोध में है, न ही किसी की भावना को ठेस पहुँचाने के लिए। मैं बस इतना कहना चाहता हूँ- “स्वतंत्रता आवश्यक है पर स्त्रीत्व की पहचान उससे भी अधिक आवश्यक है। बेटी को पढ़ाओ, बढ़ाओ पर साथ ही उसे ‘नारी’ बनाओ, उसके भीतर संस्कार और संवेदना का दीप भी प्रज्वलित करो वरना एक दिन वही बेटी, ना आपकी रहेगी, ना खुद की।
एक पाठक, लेखक और साहित्यकार होने के कारण मैं इस संदर्भ में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने जो कहा वह आपके प्रस्तुत कर रहा हूँ। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर कहते हैं- ‘मिट्टी के बंधन से मुक्ति किसी भी पेड़ के लिए स्वतंत्रता नहीं हो सकती।’
मेरी दृष्टि में सच तो यह है कि स्वतंत्रता की सुगंध वास्तव में मनुष्य के मन को गुलाब की सुगंध की भांति लुभाती है। हालांकि, मनुष्य कभी-कभी भूल जाता है कि गुलाब भी सुगंध तभी तक देता है, जब तक वह अपनी जड़ से जुड़ा रहता है। आपको गुलाब की सुगंध तो तब भी मिल जाती है, जब उसको आप करीब से सूंघते हैं और तब भी जब आप उसे तोड़कर निकल जाते हैं, किंतु जब गुलाब अपनी टहनी से अलग होता है, तब एक अंतराल के बाद वह सुगंध देना बंद कर देता है। इसी तरह हमारे जीवन की स्वतंत्रता भी होती है।
आप जब तक अपने शरीर के साथ, अपने अस्तित्व के साथ, अपनों के साथ हैं, तब तक आपको थोड़ी बेड़ियां अवश्य महसूस होती हैं, लेकिन आपको स्वतंत्रता हमेशा मिलती रहती है। वह बेड़ियां आपके लिए बाधा नहीं, बल्कि परिवार का प्यार और साथ होती हैं। आपको वह कभी मुरझाने नहीं देती हैं, जब तक खुद टूट नहीं जातीं, आपको स्वतंत्रता देती रहती हैं, लेकिन ज्यों ही आप उसके साये से दूर होंगे, आपको उस स्वतंत्रता से भी घुटन होने लगेगी। फिर उस स्वतंत्रता की सुगंध आपके जीवन से दूर होती जाएगी। इसलिए मनुष्य को सदैव स्वयं से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति और बदलती परिस्थितियों के महत्व को समझना चाहिए और अपने जीवन में उनके योगदान का सम्मान करना चाहिए। संभव है कि कुछ बातें आपको जरा असहजता का अहसास कराती हों, लेकिन अंततोगत्वा उनसे आपका ही भला होगा। आप जब अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं तो नए-नए लोग मिलते जाते हैं। अच्छे वक्त में लोग आपके साथ रहते हैं, क्योंकि आपसे उनको फायदा होता है। हालांकि बाद में वही लोग आपके जीवन में बाधा बनकर समस्या उत्पन्न करने में पीछे नहीं रहते। इन बाधाओं से पार पाने में आपके वही लोग काम आते हैं, जो वास्तविक रूप से आपके अपने होते हैं। इसलिए अपनी स्त्रीत्व की रक्षा करते हुए स्वतंत्रता की सुगंध को दुर्गंध में बदलने से पहले अपनी इस तथाकथित स्वतंत्रता पर विचार करें।
मेरा यह मानना है कि विवाह व्यवस्था को नकारना, संतति को जन्म ना देना, मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक मूल्यों और प्रकृति के दमन के साथ नैतिक अपराध भी है। समाज के संगठनों को विशेषकर महिला पदाधिकारियों को इस दिशा में कदम उठाते हुए जनजागृति करने की आवश्यकता है अन्यथा हमारा पारिवारिक ताना-बाना अस्त-व्यस्त ही नहीं, ध्वस्त हो जाएगा।
एक मित्र से प्राप्त पोस्ट के आधार पर मैंने समाज में जागरुकता के लिए संशोधन, परिवर्तन और नए संदर्भों को लेकर, विस्तार के साथ इस लेख को लिखा है। प्रत्येक सनातनी हिन्दू कन्या के माता-पिता को इस विषय पर चिंतन-मनन और मंथन करना चाहिए, ऐसा मुझे लगता है।
पवन नयन जायसवाल
राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष- अखिल भारतीय जायसवाल (सर्ववर्गीय) महासभा
सुसंवाद, संदेश- 94217 88630
अमरावती, विदर्भ, महाराष्ट्र

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