November 21, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार समाज

आगराः शालिग्राम की हुई गुप्ताजी की तुलसी; ट्रांसयमुना में शिवहरे परिवार ने धूमधाम से किया तुलसी विवाह

आगरा।
आगरा में ट्रांसयमुना निवासी श्री महेशचंद्र गुप्ता (शिवहरे) परिवार ने रविवार को विष्णुप्रिया तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ पूर्ण श्रद्धाभाव से संपन्न कराया। सांसारिक विवाह की तर्ज पर मंत्रोच्चार के साथ विवाह की सभी रस्मों के पश्चात परिवार ने अश्रुपूरित नेत्रों ने अपनी तुलसी को वृंदावन से पधारे शालिग्राम के साथ विदा किया। 

बता दें कि तुलसी विवाह कार्तिक एकादशी के अगले दिन मनाया जाता है। माना जाता है कि इससे पहले सभी देवी देवता सोए होते हैं और देवउठनी पर उठते हैं, जिसके बाद ही सारे मुहूर्त खुलते हैं और तुलसी विवाह होता है। मान्यता है कि अगर किसी को अपने मन की बात भगवान तक पहुंचानी हो तो वो तुलसी के जरिये पहुंचा सकता है। भगवान तुलसी मां की बात कभी नहीं टालते। तुलसी विवाह के लिए श्री महेशचंद्र गुप्ता ने अपने निवास ‘एफ-6ए, ट्रांसयमुना कालोनी, आगरा’ को फूलों की आकर्षक सजावट से लकदक करवा दिया था। उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री अश्वनी गुप्ता (कांट्रेक्टर) और पुत्रवधु श्रीमती पिंकी गुप्ता ने तुलसी के माता-पिता की भांति सभी विवाह की सभी रस्मों का निर्वहन किया। 

वृंदावन के पंडित श्री राजेश शर्माजी अपने परिवारीजनों के साथ शालिग्राम को लेकर पहुंचे तो गुप्ता परिवार ने दरवाजे पर ढोल-धमाकों के साथ बारात का स्वागत किया। द्वाराचार की रस्मों के बाद शालिग्राम महाराज को घर के अंदर लाया गया जहां तुलसी का मंडप सजा था। मंडप में मंत्रोच्चार के साथ विवाह की सभी रस्में की गईं। सर्वप्रथम श्री अश्वनी गुप्ता एवं श्रीमती पिंकी गुप्ता ने कन्यादान किया। इसके पश्चात उनके पिता श्री महेशचंद्र गुप्ता एवं माताजी श्रीमती शकुंतला देवी, अनुज एवं अनुजवधु श्री अवनीश गुप्ता-शालिनी एवं तरुण गुप्ता-रश्मि, बहन-बहनोई श्रीमती सुमन-राजीव गुप्ता एवं श्रीमती पूनम-अमित गुप्ता ने भी कन्यादान की रस्म की। फिर वहां उपस्थित कई अन्य रिश्तेदारों, संबंधियों, समाजबंधुओं और मित्रों ने भी तुलसी का कन्यादान लेकर स्वयं को कृतार्थ किया। इसके पश्चात शालिग्राम के साथ तुलसी ने पवित्र अग्नि-फेरे लिए। बारातियों और घरातियों के प्रीतिभोज के पश्चात परिवार ने तुलसी को भेंट-उपहार देकर शालिग्राम के साथ विदा किया। विदाई में पूरा परिवार भावुक नजर आया।

तुलसी विवाह के पीछे क्या है मान्यता
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु को दैत्यराज जालंधर से युद्ध करना पड़ा। काफी दिन युद्ध के बाद भी दैत्यराज परास्त न हुआ। श्री हरि ने विचार किया तो पता चला कि दैत्यराज की रूपवंती पत्नी वृंदा का तप-बल ही उसकी मृत्यु में बाधा बना हुआ है। जब तक वृंदा के तप-बल का क्षय नहीं होगा, तब तक दैत्यराज को हरा पाना नामुमकिन होगा। तब श्री हरि ने दैत्यराज जालंधर का रूप धारण किया और वृंदा के तप-बल के साथ उसके सतीत्व को भी भंग कर दिया। इस तरह प्रभु ने जालंधर का वध कर युद्ध में सफलता प्राप्त की। जब वृंदा को प्रभु के इस छल का पता चला तो उसने उन्हें श्राप दे दिया कि तुम पत्थर के हो जाओ। प्रभु को वृंदा से अनुराग हो चुका था। उन्होंने श्राप को स्वीकार करते हुए वृंदा से कहा कि तुम वृक्ष बनकर मुझ पत्थर को अपनी छाया प्रदान करना। इसके बाद भगवान श्रीहरि शालिग्राम बन गए और वृंदा तुलसी के रूप में पृथ्वी पर उत्पन्न हुईं। इस प्रकार कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी-शालिग्राम का प्रादुर्भाव हुआ। देवउठनी एकादशी से छह महीने तक देवताओं के दिन प्रारंभ होते हैं। अतः श्रद्धालु तुलसी का विवाह शालिग्राम के स्वरूप में भगवान श्रीहरि के साथ कर उन्हें बैकुंठ के लिए विदा करते हैं। 
 

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video